इस्लामिक स्टेट

     डा. सुरेंद्र सिंह
छोटे और नासमझ बच्चे जमीन पर रेंगते चीटों को पकड़ कर जब चाहे तब रगड़ देते हैं, उन्हें मार देते हैं। वे अपने मन में समझते हैं कि वह हमारा भगवान है तो हम चीटों के। उसके हाथ में हमारा जीवन है तो हमारे हाथ में इनका जीवन। देखो मैंने इसकी टांग तोड़ दी, इसकी गर्दन तोड़ दी, इसकी जीवन लीला समाप्त कर दी, मैं चाहूं तभी तक इनका जीवन है।  इस्लामिक स्टेट, तहरीक-ए-तालिबान सरीखे आतंकवादी संगठन ऐसे ही भ्रम का शिकार लगते हैं।
 १२ मई को जिस इस्लामिक स्टेट ने पाकिस्तान के कराची शहर में बस में सवार ४५ लोगों को गोलियों से भूना वह बहुत ज्यादा पुराना संगठन नहीं है। इसके तार बेशक अलकायदा स भीे जुड़े रहे है,  लेकिन वर्ष २००६ में इराक में इसकी नींव पड़ी।  अबू बकर अल बगदादी इसके नेता बने। जब तक वहां अमेरिकी सेनाएं रहीं, इसे सिर नहीं उठाने दिया गया।  २०१० में इसे ताकत मिली। २०१३ में इसका विस्तार इराक से बढ़कर सीरिया तक हुआ। तब इसका नाम इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड लेवंट (एलएसआईएस) हो गया। इसके बाद उसी साल दिसंबर में इसने इराक में शिया आधारित सरकार बनाई। इसका पहला केंद्र इराक का फलूजा शहर बना। इसके बाद मौसूल, बगदाद और दर्जनों शहरों को कब्जा लिया। ुफिरअपना नाम  बदलकर इस्लामिक स्टेट कर लिया। इसका उद्देश्य पूरी दुनिया में इस्लामिक कानून से इस्लामिक शासन स्थापित करना है। इसके तहत ये केवल एक दल और धार्मिक नेता का शासन चाहता है। इसकी गतिविधियों का दायरा बढ़ रहा है। ये सीरिया और ईराक के अलावा जार्डन और  लेबनान की सीमा को भी तोड़ने के लिए प्रयासरत है, अमेरिका इसके निशाने पर है। पाकिस्तान में यह उनका नया और पहला हमला है। नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान इराक नहीं है, दोनों में बहुत अंतर है।  जंगल राज में अपनी सत्ता कायम करना एक बात है और किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था को हथियाना दूसरी। 
जिस स्थान से और जिस तरह से ये लोग सोचते हैं वहां से दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी है। सैकड़ों सालों का फासला है। वहां से पीछे लौटना अब दुनिया के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव भी है। अब न तो किसी एक दल की सत्ता से देश चल सकता है और नहीं किसी धार्मिक समुदाय का शासन हो सकता है। मिलजुल कर सबके हित में काम करने का जमाना है। इंसानियत का जमाना है।
यदि इस्लामिक स्टेट वाले कुछ लोगों को मारकर और डरा धमका कर बाकी लोगों को अपने प्रभाव में लेना चाहते हैं तो यह इनकी भारी भूल है। पूरी दुनिया इराक या सीरिया नहीं है। इस दुनिया को यदि हथियारों के बल पर जीता जा सकता होता तो कितने ही लोग अब तक जीत चुके होते। शेष दुनिया शांति के साथ  बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। मानवीय मूल्यों ें भी विस्तार हो रहा है। दुनिया के किसी भी हिस्से में विपदा आती है, शेष पूरी दुनिया उसके दु:ख को बांटने और उसकी सहायता में जुट जाती है। चंद नामसझ और सिरफिरे लोग पूरी दुनिया से टक्कर नहीं ले सकते।
यदि ये आतंकी संगठन अपने को बहुत ताकतवर समझते हैं तो उसका इस्तेमाल दूसरी जगह अच्छाई के लिए करें। ये ताकत लोगों के काम आ सकती है। लोग दिल से प्यार करेंंगे। तब इन्हें गीदड़ की तरह छुप-छुप कर रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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