यह उनका काम है

    
    डा. सुरेंद्र सिंह
ऐसे लोगों को ‘सलाम’ करने का मन करता है, ये हैं ही इस लायक। सरकार खोजती है, खोजती रहे, यह उसका काम है। वह पाकिस्तान सरकार को पत्र लिखती रहे-‘‘ दाऊद इब्राहीम को पकड़कर दो’’। लिखती है, लिखती रहे, यह उसका काम है।  पाकिस्तान सरकार जबाव दे-‘‘दाऊद हमारे यहां नहीं है और कहीं खोजो’’। यह उनका काम है। इसके बाद अपनी सरकार सीना ठोंक कर कहती रहे-‘‘ दाऊद पाकिस्तान में ही है, फलां जगह पर है’’ तो कहती रहे। यह उसका काम है। पाकिस्तान सरकार ने जो कह दिया, कह दिया, यह पत्थर की लकीर।  यह उसका काम है।
सब अपना-अपना काम कर रहे हैं। नीरज कुमारजी जब सीबीआई में डीआईजी थे, तब दाऊद से बात करते रहते थे। उसके सरेंडर के लिए तीन बार बातें कीं, यह उनका काम था। बड़े अपराधियों को सरेंडर ही तो करवाते हैं, उनकी शर्तों पर। पकड़ते थोड़े ही हैं। आप ही बताइए जरा, इतना बड़ा डॉन कैसे पकड़ सकते थे? उन्होंने अपना काम बहुत बखूबी किया। अपने उच्च अधिकारियों को भी इसके बारे में नहीं बताया, राज को राज रहने दिया। अब अपनी किताब में राज खोलेंगे, ‘डायलोग विद दा डॉन’। जैसे दूसरे तमाम बड़े लोग अपनी किताबों में खोलते रहते हैं। यदि पहले इसे उजागर कर देते तो किताब कैसे रोचक बनती। किताब से शौरहत मिलती है, रायल्टी भी।  यही उनका काम है। तब किसी अखबार को इंटरब्यू भी नहीं दिया।  अब दिया है जबकि ‘चिड़िया चुग गई खेत’।
सीबीआई के कुछ अधिकारियों ने दाऊद की मदद की। उसे सलाह दी-  ‘‘सरेंडर मत करो वरना बेमौत मारे जाओगे’’।  कुछ अधिकारियों ने उसे सुरक्षित निकलवाने में भी मदद की होगी। वह सुरक्षित रहेगा तो काम आता रहेगा। केवल सीबीआई  को ही क्यों दोष क्यों दें। पुलिस वाले किसी को पकड़ते बाद में जाते हैं, उसके पास सूचना पहले पहुंच जाती है। जिला आपूर्ति विभाग, तेल कंपनियों के अफसर छापे के लिए सस्ते गल्ले की दुकानों और पेट्रोल पंपों पर बाद में जाते हैं, उन तक सूचना पहले पहुंच जाती हैं। इसी तरह वेश्याओं के कोठों पर छापे की सूचना पहले पहुंचती है, पुलिस और जिला प्रोबेशन अधिकारी बाद में। जो छापे में पकड़ लिए जाते हैं, उन्हें बचने के रास्ते वही सुझाते हैं। उनके लिए रास्ते बनाते हैं।  यही तो रीति है, जिनके खिलाफ कार्रवाई करो, उसे पहले सतर्क करो। उसे बचने की सलाह दो।
१९९३ के मुंबई हमले में जो बेमौत मारे गए, वे मर गए। वे तो आने से रहे, जो बचा है, उसे तो बचा रहने दो । वरना वह नाराज हो जाएगा। यह व्यवस्था कोई आज से नहीं, युगों-युगों से है।  त्रेतायुग में विभीषण ने भी तो राम को रावण की नाभि में अमृत होने के बारे में आगाह किया, तभी तो तो वह लंकापति बन सका। शास्त्रों में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं।  कोई परंपरा ऐसे ही थोड़े छोड़ी जा सकती है। आखिर परंपरा है।
मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। सीबीआई के अफसरों ने बचाया ही तो है। अब यदि दाऊद को बचाने वाले अपने बयान से मुकर रहे हैं तो मुकर सकते हैं, नेताओं से कुछ तो सीखना ही चाहिए। आखिर वे हमारे देश के कर्णधार हैं। नीरज कुमार भी बयान से पलट सकते हैं। बयान मुकरने और बदलने के लिए भी होते हैं।
कानून कायदे, ईमानदारी से चलने वाले फेल हो जाते हैं, सस्पेंड और बर्खास्त होते रहते हैं, तबादले पर तबादले झेलते रहते हैं, ऐसे लोग हमेशा मलाई खाते रहते है। उनकी दसों उंगलियां घी में और दोनों हाथों में लड्डू होते हैं। इधर से गए तो उधर है आका।

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