मोदीजी की विदेश यात्राएं


    डा. सुरेंद्र सिंह
एक साल का हनीमून मनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब जीवन के कड़े यथार्थ से टकराने लगे हैं। चाहे भूमि अधिग्रहण का मामला हो या प्राकृतिक आपदा से तबाही के बाद किसानोंं को  अपर्याप्त सहायता आदि तमाम मुद्दों से उन्हें जूझना पड़ रहा है।  सबसे ज्यादा आलोचना का शिकार उनकी विदेश यात्राएं हैं। कोई कह रहा है कि वह विदेश में देश की राजनीति कर रहे हैं तो कोई उन्हेंं विदेश का प्रधानमंत्री बता रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि वे अपनी सरकार के किसी मंत्री खासतौर विदेश मंत्री का नंबर ही नहीं आने दे रहे, खुद ही सारी विदेश यात्राएं कर ले रहे हैं। अखबार ही नहीं सोशल साइट्स भी उनकी विदेश यात्राओंं पर चुटकियों से भरी पड़ी हैं। कोई कह रहा है कि मोदी अपने देश से ज्यादा विदेश में रहते हैं तो कोई उनकी विदेश यात्राओंं ब्योरेबार विवरण दे रहा है। ऐसी टिप्पणियां भी की जा रही हैं कि अब मोदी स्वदेश लौटकर आएंगे अथवा नहीं? इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के बाद मोदी एक साल के भीतर सबसे ज्यादा विदेश यात्राएं करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। वह पिछले साल सबसे पहले भूटान से यात्रा शुरू कर अमेरिका, कनाडा, जापान, जर्मन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, फिजी, नेपाल, चीन, मंगोलिया, दक्षिण कोरिया आदि तमाम मुल्कों की यात्रा कर चुके हैंं।
पर सवाल यह है कि इसमें हर्ज क्या है? शायद बड़े से बड़ा और ताकतवर से ताकतवर कोई देश अब इस स्थिति में नहीं है कि अपने भरोसे काम चला सके। तकरीबन सभी देश एक दूसरे पर बहुत सी जरूरी चीजोंं के लिए निर्भर हैं। यदि देश एक दूसरे की मदद नहीं न करें तो जीवन कितना दूभर हो जाए? न केवल निर्यात, आयात बल्कि, पर्यटन, रोजगार, सहायता और एक दूसरे के समर्थन के लिए भी देश एक दूसरे देशों पर निर्भर हैंं। विकसित देश इसलिए विकास की दौड़ में आगे हैंं क्योंकि उनका दूसरे देशों से ज्यादा प्रगाढ़ संबंध हैं, उनका ज्यादा व्यवसाय है। कई मुल्कों पर अपने लिए संसाधन न्यून हैं लेकिन दूसरे देशों के कारण विकास में भर्राटा भर रहे हैं। कई मुल्क दूसरों के बल पर ही अपने मुल्क के लोगोंं को समृद्ध बनाए हुए हैं। चाहे दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति अमेरिका हो या सबसे तेज गति से विकास की दौड़ दौड़ रहा चीन, जापान, जर्मन आदि अनेक देश इसके ज्वलंंत उदाहरण हैं।
यह ठीक है कि भारत मौजूदा समय में दुनिया का एक बड़ा बाजार है, सभी बड़े देशोंं को हमारे बाजार की जरूरत है। लेकिन हमें भी बाजार चाहिए, केवल खुद बाजार बने रहने से काम नहीं चलेगा। हमारे पास दुनिया की सबसे ज्यादा मेधा शक्ति है। इसके लिए काम चाहिए। चीन के बाद सबसे ज्यादा कामगार शक्ति है। उसके लिए भी काम चाहिए। यह काम घर बैठे नहीं हो सकता। किसी न किसी को तो निकलना पड़ेगा। दूसरे देशों से मधुर संबंध बनाने होंगे। मोदी यदि अपने को सबसे ज्यादा काबिल समझते हैं तो इसमें क्या बुराई है। जिम्मेदारी तो उन्हीं की है। फिर उनके विदेश दौरों से सरकार के कामकाज पर कौन सा असर पड़ रहा है?
मोदी निवेशकों को अपने देश में नहींं ला पा रहे हैंं तो यह काम चुटकी बजाने भर से नहीं होना है। इसमें समय लगता है। बार-बार प्रयास करने होते हैं। तब कही विश्वास जमता है। फिर सारा ज्ञान, कुशलता हमारे पास नहीं है, दुनिया में हम से बहुत काबिल और कुशल लोग भी हैं। एक दूसरे से सीखने के लिए दुनिया में बहुत कुछ है। हमें भरोसा रखना चाहिए मोदी देश का सिर ऊंचा कर रहे हैं, वह जिस विश्वास से काम कर रहे हैं, वह उनके कौशल को ही प्रदर्शित करता है। वह दुनिया में एक विश्व नेता के रूप में उभर रहे हैं।
      

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