अच्छे दिन-२

                 
          डा. सुरेंद्र सिंह
भाइयो और बहनो सुनो, सुनो अब यमुना मइया के अच्छे दिन आएंगे। किसी ने कहा हो, न कहा हो लेकिन उम्मीद तो यही है कि वह इस पर ध्यान देंगे तो जरूर अच्छे दिन आएंगे। देश के तो अच्छे दिन आ गए। साल भर में ही निवेशकों की कतारें लग गई हैं? विदेशों में अपना डंका बज रहा है। विदेशों के जाने-माने शहरों की तर्ज पर अपने शहरों का विकास होने जा रहा है। वाराणसी समेत अनेक शहर विदेशी शहरों के सिस्टर सिटी बनने जा रहे हैं। विदेश की बात ही अलग  है, जो-जो यहां नहीं हो सकता, वह विदेश में संभव है।  जो-जो विदेशी वह सब अव्वल। विदेशी दवा से लेकर विदेशी उपकरण, मशीनें, कागज, विदेशी पत्नी, विदेशी मित्र अच्छे ही अच्छे।  मेरे एक पड़ोसी की आगरा में दुकान नहीं चल रही, कारण उसके ग्राहक उनके सामने से ही गुजरकर उसके मुंह पर थूकते हुए मॉलों में चले जाते हैं, वे हाथ मलते रह जाते हैं। लिहाजा उसके पास दिन भर मक्खी मारने के अलावा कोई काम नहीं। वह अब वाराणसी में दुकान खोलने की प्लानिंग कर रहा है। यहां न सही वाराणसी में तो चलेगी, वाराणसी भी अपनी है। देखें कैसे नहीं चलती दुकान? यदि शहरों के अच्छे दिन आएेंगे तो सबसे पहले उसी के तो आएंगे जैसे रायबरेली और अमेठी के आते रहे हैं।
किसी से छुपा नहीं है कि अब यमुना मइया की हालत अच्छी नहीं है। दुर्दिन हैं उसके। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं  गंगा सफाई मंत्री उमा भारती कब से पुकार लगा रही थीं, उन्होंने अनेक दमदार बयान दिए लेकिन बाल बांका नहीं कर सकीं यमुना मइया को गंदा करने वालों का।  बरसाने के रमेश बाबा और उनके सहयोगी दिल्ली तक मार्च कर-करके सरकार को जगा चुके हैं। अदालत सरकार की रिपोर्टों पर सरकार को फटकार लगा चुकी है।
यह विकास का नया चरण है। आदमियों के बाद अब प्राकृतिक संसाधनों के अच्छे दिनों की बारी है। इसके बाद गंगा और अन्य नदियों का नंबर आएगा। फिर मंदिरों के अच्छे दिन आएंगे। मंदिरों में सबसे पहले अयोध्या के श्रीराम जन्म भूमि स्थल का।
यमुना मइया की स्वच्छता के लिए और भी भाई लोग लगे हुए हैं, अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। कुछ लोग एनजीओ चला रहे हैं। सरकार से पैसा लेकर यमुना को निर्मल  कर रहे हैं। यह अलग बात है कि उनके करने से कुछ नहीं हुआ लेकिन प्रयास तो कर ही रहे हैं। न से कुछ भला। कुछ भाई लोग आए दिन उसकी आरती करते हैं, यमुना मइया प्रसन्न हो जाओ, हमसे तो तुम्हें स्वच्छ करना नहीं बन पा रहा, अब आप ही कुछ करिए। तारिए, अपने को भी और हमें भी। फिर उसके बाद आरती का सामान फूलमाला आदि यमुना में फेंक देते हैं। यमुना में नारियल डालते हैं, फिर उसे खोज कर फिर-फिर कर डलवाते रहते हैं।  नारियल सैकड़ों-हजारों बार यमुना में गिरने और उठने के लिए पैदा हुए हैं। बच्चों के मुंह पर मुछीका बांध यमुना में दुग्ध प्रवाहित करते हैं। बच्चों को भी यमुना मइया के लिए कुछ न कुछ त्याग करना चाहिए । यमुना को निर्मल करने के लिए ऐसे अनेक प्रयास किए जाते रहते हैं।

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