चाबी फंसी

                  
      डा. सुरेंद्र सिंह
कुछ चाबियां फंसने के लिए होती हैं और कुछ ताला खोलने के लिए। उस दिन मोटर साइकिल की चाबी फंस गई। इधर घुमाया-उधर घुमाया लेकिन टंकी का लॉक टस से मस नहीं। बीस किलोमीटर घर, पेट्रोल चार बूंद से ज्यादा नहीं। सायं के वक्त चेहरे पर दिन के बारह बजने लगे। हनुमान चालीसा ने हथियार डाल दिए।  हे भगवान, अब क्या होगा? ‘त्राहिमाम त्राहिमाम’ होने लगी । एक सज्जन को दया आ गई, -‘‘ये पेट्रोल डालने वाला खोल देगा’’। सचमुच उससे कहने भर की देर हुई, उसने जाने क्या छू मंतर किया, ताला खुल गया। प्राण में प्राण आ गए।  ऐसी गुस्सा आई मोटर साइकिल उसी को दे दूं। जो आदमी ताला नहीं खोल सकता, उसे मोटर साइकिल रखने का क्या हक?
ताला खोलना हर किसी के वश की बात नहीं। मैं उन चोर तालियों और मास्टर चाबियों की बात नहीं कर रहा जिससे हर कोई ताला खुल जाता है। ताले अनेक चाबी एक। कालेजों के चपरासी तालियों का बड़ा सा गुच्छा लेकर चलते हैं। किसी चपरासी की हैसियत इस बात से मापी जाती है कि उसके गुच्छे में कितनी चाबियां हैं। कभी-कभी प्रिंसीपल साहब को बहुत गुस्सा आता है जबकि चपरासी कार्यालय का ताला खोलने के लिए चाबियों पर चाबियां बदलता रहता है लेकिन ताला नहीं खुल पाता। एक ताली हो तो याद रखे, सैकड़ों चाबियां, हर कमरे की एक अलग चाभी। लेकिन कभी इसी अदा के कारण वह बहुत लाड़ला बन जाता है। फ्लाइंग स्वाइड गेट के बाहर खड़ा हार्न पर हार्न दे रहा है। खूब अच्छी तरह जानने के बावजूद वह दूसरी चाबियों को घुमाता रहता है। जब तक सारी नकल बाहर नहीं निकल जाती, तब तक उसकी असली चाबी मिलती ही नहीं। -‘‘आज तो बचा लिया नहीं तो सस्पेंड होना पड़ता’’। चाबी फंसना कभी मुसीबत होता है तो कभी पुरस्कार। कई बार चाबी उस वक्त फंसती है जबकि आपको किसी अर्जेंट काम के लिए जल्दी है।
चाबियां भांति-भांति की होती हैं। एक चाबी आदमी की तकदीर की होती है। कभी-कभी वह भाग्य से छींका टूटने के समान खुलती है। एक चाबी वह भी होती है जो प्रेमिका को कमरे में बंद कर खोने का मन करती है। कुछ आदमी चाबी की तरह होते हैं। हर मर्ज की दवा। अच्छे स्कूल में दाखिला कराना है, प्रैक्टिकल से लेकर थ्योरी में ज्यादा मार्क्स लेने हैं, फर्जी मेडिकल सर्टीफिकेट बनवाना है, रिजर्वेशन चाहिए, रिपोर्ट लिखानी है, पासपोर्ट बनवाना है। इ्न्हें पकड़िए। नौकरी तो बिना इनके सपना है। ऐसे लोग हर जगह मिल जाते हैं। कई बार वे खुद सूंघ कर शिकार तक पहुंच जाते हैं।  कानून की नजर में ये भले ही कुछ हों लेकिन दुनिया में यदि ऐसे लोग नहीं हों तो चक्का जाम हो जाए।  राजनीतिक दलों में भी चाबियां होती हैं, फलां राज्य में कुछ विधायक विद्रोह पर उतारू हैं, सरकार गिरने की नौबत आ रही है, झट से एक चाबी को भेज दिया, मामले को रफादफा करने। संसद में बहुमत जुटाना मुश्किल हो रहा है, लगाओ चाबियों को। कुछ लोग इतनी अच्छी चाबी की मानिंद होते हैं जो मुश्किल घड़ी में दूसरे दलों के संकट में भी काम आते हैं। ऐसे लोगों को संकट मोचक भी कहा जाता है। कहने वाले यह भी कह सकते हैं हनुमानजी भी एक कुशल चाबी थे।  सही पूूछा जाए तो ये चाबियां दुनिया की रफ्तार बढ़ाने में सहायक हैंं। इसके कानून पर विचार किया जा सकता है।
लेकिन अब दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। देखिए टेलीग्राम खत्म हो गए, टेलीफोन खत्म होने जा रहे हैं। ऐसे ही अब न तालों की जरूरत होगी न चाभियों की। ऐसे संवेदनशील दरवाजे आएंगे जो गृह स्वामी की  शक्ल पहचान कर ही खुलेंगे, हर किसी के लिए नहीं। चोर उच्चकों से बचाव के इन मार्डन दरवाजों के आने पर प्रिंसीपल साहब चपरासी बदल-बदल कर काम चलाएंगे या पुराने जमाने के तालों से?


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