राम कथा पार्ट-6 लंकाकांड
फिर जामवंत के आदेश पर नल और नील दोनों भाइयों ने वानर सेना का सहयोग लेकर
समुद्र पर सेतु का निर्माण किया। तत्पश्चात राम ने रामेश्वर की स्थापना कर भगवान
शंकर की पूजा की। इसके बाद वानर सेना समेत समुद्र के पार उतरे। उन्होंने सुबैल
पर्वत पर अपना डेरा जमाया। लंकापति रावण को जब इसके बारे में जानकारी मिली तो वह व्याकुल
हो उठा। रानी मंदोदरी ने उसे समझाया कि वह राम से बैर
नहीं करें। उनकी पत्नी सीता को वापस कर शांति समझौता
कर लें। लेकिन अहंकार में चूर रावण ने पत्नी की भी एक
नहीं मानी। वह युद्ध के लिए उद्यत था।
युद्ध
से पहले राम ने अंगद को रावण के पास भेजकर एक बार और शांति समझौते का प्रयास किया।
अंगद ने भी रावण को समझाया कि राम से दुश्मनी लेना उनके लिए उचित नहीं होगा। वह
दांतों में तिनका दबाकर अपने परिवार के साथ जाकर सीताजी को ससम्मान वापस कर आए। वह
उन्हें माफ कर देंगे। रावण ने अंगद की सलाह नहीं मानी। उल्टे राम
को उसके पिता बालि की हत्या का दोषी बताते हुए अंगद को अपनी ओर मिलाने का प्रयास
किया। जब अंगद ने भी रावण को उसकी औकात बताई कि वह कौन सा रावण है? एक रावण जो बलि को जीतने
पाताल गया तो बच्चों ने उसे पकड़कर घुड़साल में बांध दिया था। वे उसे खेलते हुए
मारते थे। बलि को दया आई तो उसे छोड़ दिया था। एक बार सहस्त्रबाहु एक रावण को एक
जंतु की तरह पकड़ कर उसे तमाशे के लिए घर ले आए थे। पुलत्स्य मुनि ने उसे छुड़वाया। एक
रावण को बालि ने छह महीने तक कांख में रखा था। आप उनमें से कौन से हो? रावण ने आग बबूला होकर उसे
पकड़कर मार डालने के आदेश दिए। तब अंगद ने कहा कि उसे पकड़कर मारना तो दूर भरी सभा में कोई उनका पैर ही
डिगाकर दिखा दे। सभा में मेघनाद समेत अनेक बड़े से बडे योद्धाओं ने अंगद का पैर
उठाने की कोशिश की लेकिन कोई टस से मस नहीं कर सका। इसके बाद करोड़ों लोगों ने एक
साथ अंगद का पैर उठाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। अंत
में जब अपने सिंहासन से उठकर रावण उसका पैर उठाने को बढ़ा तो अंगद ने यह कहते हुए
अपना पैर उठा लिया कि यह आपके लिए उचित नहीं है। जिस
तरह वह उनके पैरों में आना चाहते हैं, रामजी के पैरों में पड़ें।
वह उन्हें माफ कर सकते हैं। रावण को लज्जित होना पड़ा।
इसके
बाद फिर मंदोदरि ने फिर एक बार रावण को समझाने की कोशिश की। उसका कहना था कि राम
कोई मामूली इंसान नहीं हैं,
जगत
के समस्त देवता उनके इशारे पर कार्य करते हैं। उसका कहना था कि वे घमंड नहीं करें।
राम के सामने अपनी हैसियत को समझें। वह तो उनके छोटे भाई द्वारा
खींची गई छोटी सी रेखा को भी पार नहीं कर सके थे। धनुषयज्ञ में भी उन्हें याद
होगा। आप कहां तोड़ पाए थे, उसे। उसे राम ने ही तोड़ा। उन्होंने बालि आदि
की कई घटनाएं बताकर यह अहसास कराने की कोशिश की कि वह राम का मुकाबला नहीं कर सकते।
राम से वैर नहीं प्रीति करने में ही हित है। इसके अलावा मंदोदरि के पिता एवं
मंत्री माल्यवंत ने भी रावण को समझाने के प्रयास किए। लेकिन रावण को समझ नहीं आई।
शांति
के सारे प्रयास फेल होने पर युद्ध आरंभ हुआ। राम ने अपने साथियों से सलाहकर लंका
के चारों द्वारों पर एक साथ हमला करने के लिए चार दल बनाकर उसके लिए अलग-अलग
सेनापति नियुक्त किए। पहले दिन लड़ाई में रावण की आधी सेना मारी गई। अगले दिन लक्ष्मण और मेघनाथ
के बीच युद्ध हुआ। बहुत ही घनघोर युद्ध था। वीरघातिनी शक्ति लगने पर लक्ष्मण
मूर्छित हो गए तो राम के खेमे में मायूसी छा गई।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम व्याकुल हो उठे। उनकी चिंता थी कि पत्नी पहले से ही गायब है। भाई भी साथ छोड़कर जाने
को है,
ऐसी
स्थिति में वह अयोध्या में किस को क्या जवाब देंगे? मां कौशल्या और लक्ष्मण की पत्नी
उर्मिला से क्या कहेंगे?
फिर
भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया। जामवंत की सलाह पर उन्होंने हनुमान को लंका से
सुषैण वैद्य को लेने भेज दिया। सुषैण वैद्य ने लक्ष्मण की हालत देखने
के बाद एक पर्वत से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा। उनका कहना था कि सुबह दिन
निकलने से पहले संजीवनी बूटी आ जाएगी तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं, वरना नहीं। संजीवनी बूटी
लाने
की जिम्मेदारी भी हनुमान को दी गई।
गुप्तचरों
से जानकारी मिलने पर रावण ने कालनेमि को भेजकर हनुमान के संजीवनी बूटी लाने के
कार्य में बाधा डालने की कोशिश की। कालनेमि साधु का वेश रखकर हनुमान को विष देकर
मारना चाहता था
इसके लिए उसने माया का मंदिर बनाया और खुद साधु बन गया। थकने पर
हनुमान जब इस मंदिर में आए तो साधु बने कालनेमि ने गुरूमंत्र के लिए नहाने को कहा।
जब वह नहा रहे थे तब एक मगरी ने उनका पैर पकड़ लिया। हनुमान ने उसे मारा तो उसने
आगाह किया कि यह साधु के रूप में राक्षस है। हनुमान ने
कालनेमि का वध कर दिया। पर्वत पर बूटी की पहचान नहीं होने पर हनुमान पूरा ही पर्वत
उखाड़कर वापस चले तो आकाश में उड़ रहे हनुमान के राक्षस
होने का संदेह पर भरत ने बाण मारकर उन्हें नीचे गिरा दिया। वह राम-राम कहने लगे। भरत को यथार्थ पता चला तो ग्लानि हुई। उन्होंने अपने
तीर पर बैठाकर हनुमान को रामजी के शिविर में भेजने के लिए कहा तो हनुमान ने
विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। वह खड़े होकर सुबह निकलने
से पहले ही शिविर में पहुंच गए। इस तरह संजीवनी बूटी से सुषैन वैद्य के उपचार से
लक्ष्मण ठीक हो गए।
अगले
दिन के युद्ध के लिए रावण ने अपने भाई कुंभकरण को तैयार किया। कुंभकरण छह महीने
सोता और छह महीने जागता था। जिस समय रावण उसके पास पहुंचा कुंभकरण
गहरी निद्रा में था। बड़ी मुश्किल से उसे जगाया गया।
जगने पर उसने भी रावण को राम से सुलह करने की सलाह दी। लेकिन उसने उसकी भी नहीं
मानी। युद्ध में कुंभकरण के मुकाबले में राम थे। दोनों
और से जमकर युद्ध हुआ। कुंभकरण जब पर्वतों को उठाकर
हमला करने लगा तो श्रीराम ने तीरों से उसके हाथों को काट दिया। फिर सिर धड़ से अलग किया। बिना धड़ के भी कुंभकरण दौड़ने लगा तो धरती हिलने लगी।
तब प्रभु श्रीराम ने उसके दो टुकड़े कर दिए। उसका सिर
रावण के पास आकर गिरा। इसके बाद मेघनाद और लक्ष्मण के बीच युद्ध हुआ। एक बार को वह
युद्ध से गायब हो गया और गुपचुप यज्ञ करने लगा। यदि
उसका यज्ञ सफल हो जाता तो युद्ध में उसे मारना असंभव हो जाता। इस पर लक्ष्मण ने
वानरों के माध्यम यज्ञ का विध्वंस करा दिया। फिर युद्ध में मेघनाद को मार गिराया।
अंतिम
दिन राम और रावण के बीच युद्ध हुआ। राम बिना रथ के थे और रावण रथ पर। इससे विभीषण
सशंकित होने लगे। राम यह लड़ाई कैसे जीतेंगे-
‘‘रावनु रक्षी बिरथ रघुवीरा।
देखि विभीषण भयउ अधीरा।।
अधिक
प्रीति
मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।’’
यह
सबसे सबसे भयंकर युद्ध था। रावण ने माया का इस्तेमाल कर राम दल के लोगों को भ्रमित
किया। लेकिन राम ने उसे काट दिया। फिर भी एक बार को
स्थिति विकट होने लगी। राम के दल के लोग ही नहीं सीताजी भी चितिंत होने लगीं।
देवता डरने लगे कहीं राम पराजित न हो जाएं। इस पर इंद्र ने राम के लिए अपना रथ
भेजा। उस पर चढ़कर श्रीराम ने एक साथ एक लाख बाण चलाकर रावण को भयभीत कर दिया। उसके
मुंह को बाणों से भर दिया। उसके सारे राक्षसों को मार दिया। रावण भयभीत होकर यज्ञ करने लगा तो श्रीराम ने उसका विध्वंस कराया। रावण फिर मैदान में आकर अकेले ही लड़ने लगा। राम अपने
बाणों से जैसे ही उनके सिर और हाथों को काटते, वे फिर से पैदा हो जाते।
राम के लिए उसे मारना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में राम ने विभीषण से सलाह ली। विभीषण
ने उन्हें बताया कि रावण की नाभि में अमृत है। जब तक उसे नष्ट नहीं किया जाएगा, उसके अंग कटने के बाद फिर
से उग आएंगे।
इस पर राम ने एक साथ 31 बाण चलाए। इससे उसके बीस हाथ और दस सिर एक
साथ कटे और एक तीर ने उसकी नाभि के अमृत को नष्ट कर दिया। वह विशाल पर्वत की तरह
धरती पर गिरा तो बहुत जोर की ध्वनि हुई। धरती हिलने लगी। उसके
सभी हाथ और सिर मंदोदरि के पास जाकर गिरे। इ तीर वापस श्रीराम के तरकस में आ गए। खुशी के मारे देवताओं ने नगाड़े बजाने शुरू कर दिए।
इसके
बाद राम ने लक्ष्मण के माध्यम से विभीषण का राजतिलक कराकर उसे गद्दी
पर बैठाया। राम यह कहते हुए नगर में नहीं गए कि उन्हें पिताजी के वचनों का पालन
करना है। फिर इंद्र का रथ उसके सारथी सहित वापस भेजा।
विभीषण को बुलाकर अंगद और हनुमान के साथ सीताजी को वापस बुलाया। इस मौके पर सीताजी
ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी पवित्रता सिद्ध की।
वाल्मीकि
रामायण के अनुसार लंका युद्ध में विजय के बाद जब विभीषण की आज्ञा
से सीता जी को रामजी के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। तब उन्होंने अपने सतीत्व के
प्रमाण के रूप में अग्नि परीक्षा दी। उन्होंने अग्नि में प्रवेश करके बताया कि वे
पूरी तरह पवित्र हैं-
‘‘यथा मे हृदयं नित्यं नापसर्पयंति राघवात।
तथा
लोकस्य साक्षी मा सर्वत: पातु पावक:।।
कमर्णा
मनसा वाचा यथा नास्तिचराम्यहम।
राघवं
सर्वधर्वज्ञं तथा मा पातु
पावक:।।’’
वनोवास
के 14 साल पूरे हो चुके थे। पुष्पक विमान में बैठकर वह सीताजी और लक्ष्मण के
साथ अयोध्या आ गए। उनके साथ हनुमान भी सेवा में रहे।
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