राम कथा पार्ट-5 सुंदरकांड
हनुमान
जब समुद्र को लांघ रहे थे तो रास्ते में देवताओं के कहने पर सुरसा ने उनकी
सामर्थ्य का परीक्षण किया। सुरसा ने कहा कि वह उन्हें खाना चाहती है, कई दिनों से भूखी है।
हनुमानजी ने विनती की,
वह
राम का कार्य करके लंका से लौट आएं तब ख्रा लेना। लेकिन वह नहीं मानी। पहले उसने
चार योजन का अपना मुख बनाया। तब हनुमानजी ने उससे दूना आकार कर लिया। सुरसा ने और बड़ा मुंह बनाया तो हनुमानजी ने 16 योजन का शरीर कर लिया। फिर सुरसा ने 32 योजन का मुंह बनाया ।
फिर हनुमान बहुत ही छोटा रूप धारण कर उसके मुंह में घुसकर बाहर निकल आए। और कहा-
लो माता आपने मेरा भोजन कर लिया। इस पर सुरसा ने हनुमान की चतुराई से प्रसन्न होकर
रामकाज पूर्ण करने के लिए
आशीर्वाद दिया। मार्ग में छाया पकड़ने वाली एक राक्षसी मिली जो आकाश
में उड़ते जीवों को समुद्र में गिराकर खा जाती थी। हनुमानजी ने उसे मार दिया। इसके बाद उन्होंने बहुत छोटा रूप धारण कर लंका में प्रवेश
किया तो लंकिनी नाम की राक्षसी ने पकड़ लिया। हनुमान ने उसे बहुत जोर से घूसा मारा।
वह धरती पर गिर पड़ी। भयभीत होकर हाथ जोड़ते हुए बोली, ब्रह्माजी ने जब रावण को
वरदान दिया था,
तभी
उन्होंने उससे कहा कि जब किसी बंदर से वह भयभीत हो जाए तब राक्षसों का अंत आना समझ
लेना। इसके बाद हनुमान ने नगर का भ्रमण कर स्थिति का जायजा लिया। रावण का शानदार
भवन देखा। उन्होंने विभीषण से भेंट कर रामजी के बारे में बताया और कुछ जानकारी ली।
विभीषण का कहना था कि वह तो लंका में इस तरह रहे हैं, जैसे दातों बे बीच में
जीभ। उसने प्रभु राम से अपना उद्धार कराने के लिए कह सीताजी तक पहुंचने की युक्ति
बताई।
हनुमान अशोकवाटिका में पहुंचे तब रावण सीताजी को धमका रहा था। हनुमान ने
छिपकर देखते हुए सीताजी को मन ही मन प्रणाम किया। सीता बहुत परेशान हो उठी।
मन ही मन यह सोचकर कि यह दुष्ट एक महीने
बाद फिर आएगा,
उससे
पहले वह जलकर मर क्यों नहीं जाती। वह चंद्रमा और तारों से आग बरसाने की प्रार्थना
करने लगीं।
रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीताजी को सांत्वना दी। लेकिन उनकी बैचनी कम नहीं हो रही थी। तभी हनुमान जी ने पेड़ से मुद्रिका
गिराई। सीता ने उसे पहचान लिया। हनुमान ने पेड़ से कूद कर सीताजी को बताया कि
उन्हें श्रीरामजी ने ही भेजा है। भूख लगने पर वह सीताजी की अनुमति से अशोक
वाटिका में फल खाने के साथ बंदर स्वभाव से नुकसान करने लगे। उन्होंने कई पेड़ों को तोड़ और उखाड़ दिया। खबर पाकर रावण ने अपने
पुत्र अक्षय कुमार को भेजा तो हनुमान ने उसका वध कर
दिया। फिर उसके सबसे बड़े बेटे मेघनाद ने हनुमान से
युद्ध किया। बहुत भयंकर युद्ध था। मेघनाद हनुमान को नागपाश में बांधकर रावण की सभा
में ले गया।
सभा
में हनुमान ने राम का गुणगान करते हुए रावण को सीताजी लौटाने और माफी मांगने की
सलाह दी। इस पर क्रोधित रावण ने हनुमान को दंडित करने का आदेश दिया। वह वध कराना
चाहता था लेकिन विभीषण की इस सलाह पर कि दूत की हत्या उचित नहीं है, मान गया।
अंगभंग करने के लिए उसकी पूंछ से तेल में डूबा कपड़ा लपेट उसमें आग लगा दी।
हनुमानजी ने पहले तो बड़ा आकार किया। जब पूंछ में आग लगाई गई तो छोटा
रूप धारण कर घूम-घूम कर पूरी लंका में आग लगा दी। सोने की लंका धू-धू कर जलने लगी।
राक्षस निकल-निकल कर भागने लगे। हनुमान ने समुद्र में
कूदकर अपनी पूंछ की आग बुझाई।
वह सीताजी के पास गए। उन्होंने सीताजी से कहा कि वह चाहें तो वह अभी यहां
से उन्हें ले जा सकता हैं। पर उन्हें इसके लिए प्रभु की आज्ञा नहीं है। आप चिंता
नहीं करें जल्द ही प्रभु श्रीराम आपको ले जाएंगे। सीताजी ने उन्हें अपनी पहचान के
लिए चूड़ामणि देकर विदा किया जिससे रामजी को उनके बारे में विश्वास हो सके।
हनुमानजी
के कार्य से राम बहुत खुश हुए। वह वानर सेना को लेकर समुद्र तट पर आ गए। इस
बीच विभीषण ने रावण को समझाया कि वे राम से दुश्मनी नहीं लें और सीताजी को सकुशल
वापस कर दें। लेकिन रावण ने उसकी एक नहीं मानी उल्टे
उसे लातमार कर भगा दिया। विभीषण भी राम की शरण में आ
गया। सुग्रीव की सलाह थी कि यह शत्रु का भाई है, इस पर सहज विश्वास नहीं
करना चाहिए। लेकिन रामजी ने शरणागत को शरण देने की रघुकुल की
रीति बताते हुए उसे अपने पास आने दिया। बातचीत के बाद उन्होंने उसे
लंका का राजा घोषित कर दिया।
लंका
पर चढ़ाई के लिए उन्हें समुद्र पार करना था। विभीषण की सलाह पर राम ने समुद्र
से रास्ता देने की विनती की। तीन दिन तक विनती करने पर
भी जब समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो राम ने क्रोधित होकर समुद्र को सुखाने को
धनुष बाण साध लिए,
समुद्र
से ज्वाला उठने लगी,
करोड़ों
जीव जंतु अकुलाने लगे। तब
समुद्र ब्राह्मण का रूप धर कर आया और रामजी से विनती करने लगा।
दया के सागर प्रभु राम का क्रोध शांत हो गया। समुद्र ने सुझाव दिया
कि नल और नील समुद्र में जो पत्थर डालेंगे, वे नहीं डूबेंगे। इस तरह से उनका
सेतु बन जाएगा।
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