स्वाधीनता 15 अगस्त को ही क्यों?

                        

                                 

आज हम जब 74 वां स्वाधीनता दिवस मना रहे हैं, जेहन में एक सवाल कौंध सकता है कि हमारे देश को स्वाधीनता 15 अगस्त 1947 को ही क्यों मिली?  इसके आगे पीछे किसी अन्य तिथि को क्यों नहीं? जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1930 से हर साल 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाती आ रही थी। इसके तहत कार्यक्रम कर आजादी के लिए संकल्प लिए जाते थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उसकी नहीं मानी। आखिर क्यों? देश को आजाद तो उन्हें करना ही था।


याद रहे कि ब्रिटेन ने भारत को कोई यूं ही आजाद नही किया। लेबर पार्टी जिसकी सत्ता उस वक्त थी, वह पहले से इसके पक्ष में थी। इसके अलावा दूसरे द्वितीय विश्वयुद्ध में उसकी आर्थिक हालत खराब हो चुकी थी। भारत में उसके लिए शासन करना मुश्किल हो रहा था। गांधीजी के आंदोलनों और जनता का सहयोग नहीं मिलने से उनके सामने परेशानी ही परेशानी थी। स्थिति यह थी कि वह जल्द से जल्द पिंड छुड़ाने के पक्ष में थी।


ब्राउन जूडिस मार्गरेट की पुस्तक ‘मार्डन इंडिया दी ओरीजन आफ एन एशियन डेमोक्रेसी ’(1996, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रकाशन, पेज330) के अनुसार ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने  फरवरी 1947 को भारत को जून 1948 में आजाद किए जाने की घोषणा कर की थी। माउंटबेटन 22 मार्च 1947 को भारत आए। उन्होंने यहां की स्थिति को देखा और समझा। इसके बाद उन्होंने ही आजादी की तिथि में परिवर्तन कराया।  वह नहीं चाहते थे कि आजादी को और आगे टाला जाए।


इसके मुख्य दो कारण थे। एक तो यह कि वह अन्य अंग्रेजों की तरह परंपरावादी और अंधविश्वासी  थे। उन्हें द्वितीय विश्व के दौरान दक्षिण एशिया के ब्रिटेन और मित्र देशों की फौज के सुप्रीम कमांडर रहने के दौरान 15 अगस्त 1945 को बड़ी सफलता मिली थी। इस दिन जापान की फौज ने उनके आगे सरेंडर कर दिया था। उनका मानना था कि 15 अगस्त का दिन उनके लिए बहुत शुभ है।  इसलिए जापानी फौजों के सरेंडर की दूसरी बरसी का दिन यानी 15 अगस्त 1947 का दिन उन्होंने इस काम के लिए चुना।  दूसरा यह कि मुसलिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्नाह की तबियत बहुत खराब थी। उन्हें फेंफड़े का कैंसर था। बेशक जिन्नाह ने यह बात सबसे छुपाकर रखी थी लेकिन लार्ड माउंटवेटन को इसके बारे में जानकारी थी। रौ के विशेष रहे तिलक देवेशर ने अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान एट दी हेल्म’ में इस बात का जिक्र किया है। माउंटबेटन का मानना था कि यदि  जून 1948 से पहले जिन्नाह की मृत्यु हो गई तो गांधीजी भारत का बंटवारा नहीं होने देंगे। 


मांउटबेटन ने यह तथ्य बताकर ब्रिटिश हकूमत को 15 अगस्त 1947 को ही भारत को आजाद करने के लिए राजी कर लिया। क्योंकि ब्रिटिश सरकार आजादी के साथ भारत को भारत और पाकिस्तान के रूप में हर हालत में विभाजित करना चाहती थी। उसका मानना था कि हिंदू और मुसलमानों के बीच इतना विद्वेष बढ़ चुका है कि अलग होने के बाद दोनों देश आपस में उलझे रहेंगे।  यदि भारत एक रहा तो बड़ी ताकत बन सकता है।


देवेशर ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि गांधी और नेहरू को भी जिन्नाह की गंभीर बीमारी के बारे में नहीं बता था। यदि उन्हें बता होता तो वे भी  यह कह कि अभी वे तैयार नहीं है आजादी की तिथि को आगे बढ़वाने के लिए कोशिश करते। 


इस प्रकार ब्रिटिेश संसद ने तीन जून को1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम पारित करते हुए 15 अगस्त को भारत और पाकिस्तान को  स्वतंत्रतता से राज्य  संचालित करने का अधिकार दिया। 18 जुलाई 1947 को इस पर शाही स्वीकृति प्रदान की गई। 


देवेसर ने एक और रोचक वाक्ये का उल्लेख  किया है। मांउंटबेटन ने 15 अगस्त 1947 से एक माह पहले जिन्नाह को भारत-पाक का संयुक्त गवर्नर जनरल बनाने का प्रस्ताव दिया था जिसे जिन्नाह ने यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि उन्हें अपने प्रधानमंत्री  पर पूरा भरोसा है, वह जो कहेंगे, उसका पालन होगा। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान आजाद  हुआ। आजादी के कार्यक्रम में जिन्नाह की कोशिश थी कि उनकी कुर्सी माउंटबेटनकी कुर्सी से ऊपर रखी जाए क्योंकि वे पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल की जिम्मेदारी संभालने जा रहे थे। जिसे ब्रिटिश सरकार ने यह कहते हुए नहीं माना कि वे सत्ता का हस्तांतरण कर रहे हैं। मजबूरी में जिन्नाह को यह बात माननी पड़ी।


भारत की आजादी की घोषणा 14 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि को 12 बजकर एक मिनट के बाद की गई। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। लाल किले  पर पहला झंडारोहण 16 अगस्त 47 को किया गया। 



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