धर्म के दरवाजे अब बंद करें

                          

                   

समय आ गया है कि अब हमें धर्म के दरवाजे बंद कर देने चाहिए। कानूनन इस पर रोक लगा देनी चाहिए। सारे धार्मिक स्थलों  को स्कूल, कालेजों, अस्पतालों के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। जो लोग इसमें रोजगार पा रहे हैं, उन्हें इन्हीं स्कूल कालेजों में नौकरी दे दी जाए। लात किसी के भी पेट पर न मारी जाए। 


धर्म कभी इंसान की जरूरत रही होगी । यह भी संभव है कि प्रकृति के अनुसुलझे रहस्यों को नहीं समझने पर उन्हें धर्म का नाम दे दिया गया हो। धर्म ने कुछ हद तक दुनिया को संवारा और सजाया है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता । लेकिन नुकसान भी कम नहीं किया। धर्म के नाम पर भारी अत्याचार  हुए हैं। कितने ही करोड़ लोगों की जानें गई हैं, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। धर्म के नाम पर शोषण की कोई सीमा नहीं है। सबसे ज्यादा शोषण  विधर्मियों, गरीबों और कम पढे-लिखे लोगों का होता है।  


दंगे सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर होते हैं। भेदभाव भी धर्म के नाम पर होता है। फालतू के कर्मकांड धर्म के नाम पर होते हैं। हर तरह का प्रदूषण सामाजिक, आर्थिक, भौतिक (वायु, जल, ध्वनि) धर्म के नाम पर है। सामाजिक और  आर्थिक विषमता इसके कारण आ रही है। एक तरफ  धार्मिक स्थलों में अकूत संपत्ति एकत्रित होती जा रही है, दूसरी तरफ एक बड़ी आबादी गरीब और गरीब होती जा रही है। वह इस अभिलाषा में अपनी जेब खाली करती जा रही है कि परमात्मा एक दिन उसे मालामाल कर देगा। इस जन्म में न सही अगले जन्म में, उस जन्म  में नहीं तो उसके अगले जन्म में। धर्म के नाम पर ऐसा मकड़ जाल बन गया है कि एक बार फंसने के बाद उससे निकलना आसान नहीं है। इसलिए अब इसे बंद ही कर देना चाहिए। ताकि लोग एक काल्पनिक दुनिया को छोड़ कर यथार्थ की दुनिया में आएं।


 वैदिक काल में असुरों, मध्य मैक्सिको के अजेतकों का नाश धर्म के नाम पर किया गया। तत्पश्चात विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करने वाले कबीलों और यहूदियों के बीच लंबा संघर्ष चला। फिर यहूदी और इसाइयों के बीच, फिर यहूदी और मुसलमानों के बीच जमकर खूूनी संघर्ष हुए। इसाइयों में प्रोटेटैंट और केथोलिकों के बीच भी संघर्ष रहे। याद रहे कि  ईसाई और ईस्लाम धर्म यहूदी धर्म की ही पैदाइश हैं फिर भी एक दूसरे से लड़े बिना नहीं रहे। हिंदू और मुसलमानों,  मुसलमानों और सिखों के बीच संघर्ष किसी से छुपे नहीं हैं। द्वितीय विश्वयुद्द में हिटलर के आदेश पर नाजियों ने 80 लाख यहूदियों को मार दिया । बीते कुछ एक सालों में उभरा आतंकवाद धर्म के नाम पर ही फल- फूल रहा है। चाहे आतंकवाद का सबसे बड़ा सरगना ओसामा बिना लादेन रहा हो अथवा सीरिया, अफगानिस्तान पाकिस्तान में आए दिन होने वाली निर्मम हत्याएं,  कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं यह सब धर्म के नाम पर ही हैं। मार्टिन लूथर ने धर्म के बारे में  ठीक ही कहा था- ‘‘ईश्वर एक तलवार है, एक युद्ध है, एक विनाश है’’।  


कल्पना करिए यदि धर्म नहीं होता तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान अलग-अलग होते? धर्म नहीं होता तो बाबर धर्म के नाम पर अत्याचार  कर पाता? जनता उसे लुटेरा समझती और बहुत जल्दी उसके बोरिया बिस्तर बंध जाते। धर्म के नाम पर ही विदेशी आक्रांताओं ने अत्याचार किए और हिंदुस्तान में इतना शासन कर सके। हमारे लोग उनका मुकाबला करने की बजाय मंदिरों की घंटिया बजाकर ईश्वर से फरियाद करते रहे। इतिहास गवाह है कि धर्म के नाम पर जिस-जिस ने भी शासन किया, उसने जनता का कभी भला नहीं किया। दोहन ही किया। धर्म के नाम पर नाकामियां आसानी से छुप जाती हैं। हाल ही की कर्नाटक के बंगलौर की  घटना धर्मांधता की उपज है। यदि धर्म नहीं होता तो सोशल मीडिया पर उकसाने वाली पोस्ट का कोई मतलब नहीं होता।  राम रहीम, आशाराम बापू, रामपाल जैसे बड़े-बड़े संत धर्म के नाम पर ही अधर्म के अड़्डे चला रहे थे।


 धर्म एक आकर्षक अतिशयोक्तिपूर्ण कल्पना है। सारे धर्मों की अलग-अलग कल्पना हैं। इनके बीच कोई  एका नहीं है। सभी ठेकेदार बताते हैं कि उनके परमात्मा द्वारा ही सारी सृष्टि रची गई है और उसी के द्वारा संचालित की जा रही है, दिन और रात उसी की मर्जी से होते हैं, लोग मरते और जीते भी उसी की मर्जी से है। वैश्विक महामारी कोरोना ने इन सबकी कलई खोल दी है। अयोध्या में दुनिया के पालनहार श्रीराम जी के जन्मभूमि मंदिर के शिलापूजन और इसके बाद मथुरा के श्रीकृष्णजन्म भूमि मंदिर में जन्माष्टमी के मुख्य कार्यक्रम के मुख्य संत श्री श्री 1008 श्री नृत्यगोपालदास जी कोरोना की चपेट में आ गए हैं। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई ताकत होती तो कम से कम अपने परम भक्त को तो बचाते। संत को बचाने के लिए देश के सर्वोच्च हास्पिटल में भेजा गया है। इसी तरह पिछले महीनों में दिल्ली के निजामुद्दीन में  इस्लाम धर्म के नाम पर तमाम देशों के बड़े-बड़े जमाती एकत्रित हुए। उनमें से कितनों की जानें कोरोना के कारण गई, यह किसी से छुपा नहीं है। इतनी बड़ी शक्ति के मालिक  तुच्छ से वायरस से भक्तों को नहीं बचा सकते तो दुनिया को कैसा संचालित कर सकते हैं?  इसलिए अपनी आंखों से देखने के बाद अब भी संभल जाइए, धर्म बकवास है।


यह कहना सही नहीं है कि धर्म के कारण नैतिकता, ईमानदारी और परोपकारिता बची हुई है।  ये सब मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। पशुओं में भी कमोवेश ये गुण होते हैं। शेर कभी पेट भरा होने पर किसी को मारता नहीं । हिंसक जानवर भी प्यार के भूखे  हैं। वे मदद का जवाब मदद से, प्यार का जवाब प्यार से देते हैं। 


धर्म नहीं होगा तो भिखारी भी नहीं होंगे। लोग और ज्यादा परोपकारी होंगे। इंसानियत के नाम पर लोग भूखे-नगों की मदद करेंगे। लोग झूठी लालसा नहीं पालेंगे। अपनी मेहनत पर भरोसा करेंगे। कल्पना की बजाय यथार्थ की दुनिया में जीएंगे। घी-दूध मंदिरों में बहाने की बजाय अपने बच्चों को देंगे। धर्म के नाम की तमाम जीव हत्याएं होने से बच सकती हैं। एक अच्छी खुशहाल दुनिया बन सकती है। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। पर असंभव भी नहीं है। दुनिया तेजी से बदल रही है। धर्म की जगह विज्ञान  में आस्था बढ़ रही है। दुनिया में काफी संख्या में ऐसे लोग हैं जो किसी धर्म को नहीं मानते। वे अच्छी तरह खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं ऐसे लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। देखने में आ रहा है कि ऐसे लोग ज्यादा दयालु और ज्यादा नैतिक होते हैं। एक दिन ऐसा भी आएगा जब आज के दौर की धार्मिक काल्पनिक दुनिया पर लोग आश्चर्य करेंगे। 



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