जमाना अब शब्दवीरों का

                        
                                    
जमाना सदा एक सा नहीं रहता। क•ाी जमाना पत्थरों और हड्डियों के बने हथियारों का था। इन्हें चलाने में जो निपुण थे, वे उस जमाने के वीर थे। वह आदिकाल  था।  इसके  बाद तीर और तलवारों का जमाना आया। कहते हैं महा•ाारत काल में अर्जुन से बड़ा कोई धनुर्धर नहीं था। मध्यकाल में बड़े-बड़े तलवारवाज हुए उन्होंने तलवारों के बल पर तमाम देशों की नई सीमाएं बनाई और बिगाड़ी। अंग्रेजों के साथ गोला बारूद का जमाना आया। जो सैकड़ों सालों से चलते-चलते अब घिसटने रहा है।  सीरिया, यमन जैसे पिछड़े देशों में जरूर इसका बोलवाला है। पाकिस्तान को •ाी इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
अब नया जमाना शब्दवीरों का आ गया है। अमेरिका में ट्रंप और हिलेरी के बीच शब्दबाण चल रहे हैं। अपने यहां जिन्होंने पीओके में घुसकर खूंख्वार आतंकवादियों के अड्डे नेस्तनाबूत किए और उनकी लाशें बिछा दीं,ु उन्हें कोई माटी के मोल  नहीं पूछ रहा, हरतरफ शब्दवीर छाए हैं.  •ाादों में काली घटाएं जैसे पूरे वातावरण पर हावी हो जाती हैं,जो  बरसती कम हैं, डराती ज्यादा हैं,  वैसे ही देश और प्रदेश की राजधानियों से लेकर जिलों और गांवों तक शब्दवीर छाए हैं। उनके शब्दवाणों ने घटाटोप कर रखा है। सारे अखबार •ारे पड़े हैं, टीवी चेनलों पर •ाी शब्दों की गोलियां चल रही हैं। ऐसे हुआ, ऐसे नहीं हुआ, दिखाओ कोई सुबूत। कुछ शब्द ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं तो कुछ थ्री नार थ्री की तरह। कुछ शब्द ढप-ढप की तरह आवाज करते हैं तो कुछ सीधे कलेजे में समा जाते हैं। तरह-तरह के शब्दबाण हैं। ऐसा ही एक शब्द ‘शहजादा’ लोक स•ाा चुनाव के समय चला। इसे दागा नरेंद्र मोदीजी ने।  वह इतना चला, इतना चला, इतना चला कि वह ब्रह्मास्त्र का •ाी बाप साबित हुआ। जिनके लिए वह दागा गया, वह उनके साथ ऐसा चिपक गया कि अब •ाी छुड़ाए नहीं छूटता। रास्ते में चलते कोई •ाी ‘शहजादा’ कह दो सीधे शब्द•ोदी वाण की तरह वहीं जाकर लगता है। ्न‘दाग अच्छे है’ं की तर्ज पर इसके असर को बेसर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सर्जीकल स्ट्राइक को लेकर हाल ही में एक नया शब्द आया है-‘खून की दलाली’। एक ही बार में राजनीतिक दल की सारी सेना पस्त। सारे रणनीतिज्ञ •ाौचक्के हैं। ये शब्द कहां से आ गया। कौन सी कंपनी से इजाद कराया गया है। इसके पीछे •ाी पीके है क्या? इसकी तरह-तरह से व्याख्या की जा रही हैं। शब्दों के  पंडित जुटे हैं इसकी धार को •ाौंथरी कर उल्टा बार करने को। इसके दागने वाले अपने राहुल •ौया हैं।
शब्दबाण बनाने की •ाी एक कला है, यह हरेक के बस की बात नहीं। जिसके पास है, वह खुदा की देन है। बहुत सारे पढ़े-लिखे और विद्वान •ारे पड़े हैं। लेकिन कला किसी-किसी के पास ही है, हजारों नही लाखों और करोड़ों में एक।  सारे बड़े-बड़े नेताओं ने शब्दबाणों के लिए विशेषज्ञ पाल रखे हैं।  शब्दबाण तैयार करो, मुंहमांगा इनाम पाओ। राजनीति के गलियारे में  जगह बनाते-बनाने बहुतों की जूतियां घिस जाएंगी। मकान, दुकान बिक जाएंगी। जिंदगी गुजर जाएगी,  कोई •ाूसे के •ााव •ाी नहीं पूछने वाला। यदि शब्दबाण चलाने का हुनर है तो आगे आओ। पूरा मैदान खाली पड़ा है, हाथों-हाथों लपक लिए जाओगे।
स•ाी राजनीतिक दलों में ऐसे इक्का-दुक्का योद्धा हैं। अयोध्या आंदोलन के दौरान •ााजपा की  उमा •ाारती फायर ब्रांड नेता थी। तब ‘उनका सिर कटवाने और काटने’ का शब्द खूब चला। उन्होंने इसका खूब इनाम •ाी पाया, मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री तक बनीं। विश्व हिंदू परिषद में प्रवीण तोगड़िया का कोई मुकाबला नहीं है। समाजवादी पार्टी में शब्दबाण चलाने वाला एक ही शेर है-आजम खां।  उसके आगे बड़े-बड़े पानी •ारते नजर आते हैं, उनकी  बोलती बंद हो जाती है। उनका शब्द ‘बादशाह’ •ाी चला।  दूसरे नेताओं के ‘सौ करोड़ की गर्ल फ्रैंड’ और ‘सात सौ करोड का ब्याय फ्रैंड’ शब्द की खूब चले।  कांग्रेस में जब से दिग्विजय सिंह निष्क्रिय हुए हैं, टोटा सा पड़ गया है। अकेले राहुल •ााई मोर्चा सं•ााले हुए हैं। •ााजपा का कद इस मामले में अ•ाी सबसे ऊंचा है, गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज, डा. रामशंकर कठेरिया और दयाशंकर सिंह आदि कई दिग्गज हैं। आखिर सत्तारूढ़ दल है, होना ही चाहिए।  
कुछ संत महात्माओं ने •ाी इस काबिलियत  से परहेज नहीं किया। योगगुरू बाबा राम देव की दिव्य वाणी से पिछले सालों में कुछ अद्•ाुत शब्द निकले। इनसे वह रातों रात बुलंदियों पर पहुंच गए। उनका राहुल के लिए ‘दलितों के घर हनीमून’ शब्द खूब सुर्खियों में रहा। यह अलग बात है कि मामले में एफआर्ईआर •ाी झेली। कुछ पाने के लिए कुछ सहना ही पड़ता है।
पहले नेताओं के •ााषण होते तो देखा जाता था कि किसने क्या बात कही है, वह देश और समाज के कितने हित में है। कौन कितना काबिल है, उसमें कितनी समझदारी है। विद्वता का प्रदर्शन करने के लिए लोग आंकड़ों का सहारा लेते थे। शास्त्रों के उद्धरणों का उल्लेख करते। शेरो शायरी का •ाी इस्तेमाल करते । अब ऐसा करने वाले पिछड़े माने जाते हैं, कोई उनकी चर्चा तक नहीं करना चाहता। पुराने ढर्रे पर चलने वाले तालियों तक के लिए तरस जाते हैं। लेकिन शब्दबाणों का इस्तेमाल करने वाले पूरी महफिल लूट ले जाते हैं।   इसके बाद चाहे उस शब्द की निंदा करो, एफआईआर कराओ। शब्द तो शब्द है, वह क•ाी खत्म नहीं होता।  शाश्वत है।


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