मान जा मेरे बाप

                                
                      डा. सुरेंद्र सिंह
बाप भी भांति-भांति के होते हैं। दुनिया में कोई दो जने एक जैसे नहीं हैं, सब में कुछ न कुछ अंतर है। रंग का, शक्ल का, कद का, उम्र का, अक्ल का, पद का,  देश-काल का, गांव-शहर का। बापों के उतने से भी ज्यादा भेद किए जा सकते हैं, जितने बाप नहीं हैं। लेकिन हम यहां मोटे-मोटे भेद करेंगे। गिनती नहीं बताएंगे, जिससे कि बाद में कोई नया विवाद पैदा हो। फलां ने इतने प्रकार बताए थे, आप कैसे उनसे ज्यादा बता रहे हैं। आपके प्रकार सही हैं या उनके? पहले इसी पर झगड़ लीजिए। ‘सूत न पौनी, कोरि.... के घर लट्ठमलट्ठा’।
सो पहले समझदार लोगों की तरह किसी पचड़े में पड़ने की बजाय बापों की बात कर लें।  कुछ बाप गऊ की तरह होते हैं। कोई कुछ भी कह सुन ले, उनके चेहरे पर शिकन नहीं आती। जैसे खल लोगों के वचन संत सहते रहते हैं, आह तक नहीं भरते। वैसे ही ये अपने ही बच्चों, बहू-बेटियों की सुनते रहते हैं। एक बाप थे उन्होंने अपने परिश्रम से खुद तो समाज में सम्मान हासिल किया ही, अपने बच्चों को भी काबिल बनाया। महानगर में सब की अलग-अलग कोठियां, कारें और धन-संपत्ति।  पत्नी की मृत्यु के बाद अकेले पड़े तो गांव से शहर में बच्चों के पास आ गए। कभी किसी के पास तो कभी किसी के पास। बच्चों से खाना तो दूर चाय तक के लिए नहीं कहते । किसी ने दे दिया तो खा पी लिया, वरना सो गए। मरने के बाद अब उनके लायक बेटे महसूस करते हैं,  पापाजी कितने सरल थे, हम से बड़ी गलती हो गई। ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’ ।
कुछ घाघ किस्म के बाप होते हैं। बचपन में तो बच्चों को चैन से सांस लेने नहीं देते, जब वे खुली हवा में सांस लेने के सक्षम हो जाते हैं तो भी उन पर अंकुश बनाए रहते हैं। ये करो ये नहीं करो। बहुएं कई बार मुंह बिगाड़ देती हैं लेकिन वे अपनी करनी से बाज नहीं आते। वेतन आते ही धरवा लेते हैं। पाई-पाई का हिसाब रखते हैं। ऐसे बापों से निजात के लिए परिवारीजन भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं लेकिन सामने कभी जुर्रत नहीं कर पाते।
कुछ मुल्कों में बच्चे जैसे ही वयस्कता की दहलीज पर कदम रखते हैं, बाप उन्हें स्वतंत्र कर देते हैं, अपना कमाओ-खाओ। बच्चे घर में रहेंगे तो मकान किराया से लेकर खाने पहनने का सारा खर्चा बाप को देंगे। अपनी ही कमाई से पढ़ेंगे। बच्चे बड़े होते ही बाप की कमाई का जरिया बन जाते हैँ। ऐसे बापों को कभी बच्चों के सामने हाथ पसारने की नौबत नही आती।
लेकिन अपनी यह परंपरा नहीं है। बच्चे चाहे बाप को घर से निकाल दें लेकिन बाप में ऐसी हिम्मत बिरले में ही होती है जो अपने कलेजे पर पत्थर रख खुद मौज उड़ाए। जापान में औसत आयु बढ़ने से हजारों-लाखों बाप सड़कों  के किनारे बैंचों पर दिन भर बैठे रहते हैं। बच्चों के पास उनके लिए टाइम नहीं है,  लिहाजा सरकार ने उनके लिए व्यवस्थाएं की हैं। अपने यहां  कुछ बाप बच्चों को आपस में लड़ाते रहते हैं। इसकी उससे कह दी और उसकी इससे। बच्चों को भड़काकर उनकी बहुओं पिटवाते हैं। बहुओं से गालीगलौज करते हैं और खुद भी उनसे गालियां खाते हैं।  कुछ बाप जिंदगी भर बाप ही बने रहते हैं, बच्चों को कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं होते। सारा काम खुद ही करते हैं। सब्जी लेने से लेकर आटा, नमक, तेल, बिजली का बिल भरने, दाखिला कराने, कपड़े लेने आदि। यहां तक कि शादी-ब्याह और रिश्तेदारी में भी उन्हें अकेले नहीं जाने देते। उन्हें लगता है, उनका बच्चा अभी छोटा है,  बच्चे को लोग ठग लेंगे। चाहे उनका बेटा जवानी की दहलीज को पार कर तीसरी अवस्था की ओर अग्रसर हो जाए लेकिन वे उससे अबोध बालक जैसा ही व्यवहार करते हैं।
कुछ कसाई बाप होते हैं जो बच्चों को निर्ममतापूर्वक पीटते हैं। पत्नी से गुस्सा हैं तो बच्चों पर उतारते हैं और पड़ोसी या अन्य किसी से नाराज हैं तो उनकी नाराजगी का निशाना बच्चे ही बनते हैं। गुस्सा उनकी नाक पर हरदम रखा रहता है। कुछ लाचार बाप  होते हैं, बच्चे उन्हें सताते रहते हैं। कुछ साल पहले ऐसे बाप ने अपनी पत्नी के साथ रेल से कट कर आत्महत्या कर ली। ऐसे ही  कुछ बाप पुलिस के चक्कर लगाते रहते हैं।
कुछ ऐसे भी बाप होते हैं असल में चाहे उनके कोई संतान नहीं हो, लेकिन किसी के भी फटे में पांव अड़ा कर बाप बन बैठते हैं-‘‘अबे कौन है, तू? - मुझे नहीं जानता, मैं हूं तेरा बाप नहीं जानता तो अपनी मां को पूछ लेना...।’’ इन्हें दादा टाइप के बाप भी कह सकते हैं। कुछ लोग बाप के भी बाप होते हैं। कुछ लोग हैं तो बच्चे की जिद के सामने हथियार डाल देते हैं-मेरे बाप मान जा। कुछ लोग अपने बाप को बाप नहीं मानकर पत्नी के बाप को बाप मानते हैं और कुछ न अपने बाप को बाप मानते हैं और न पत्नी के बाप को। वे किसी तीसरे को ही बाप मानते हैं। कुछ लोगों के मां चाहे एक हो लेकिन बाप कई-कई होते हैं। जैसे कोई अधिकारी, नेता आदि आदि।  गीता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को सबका पिता यानि बाप कहा गया है- ‘‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव...’’। पहले राजा सारी प्रजा का पिता यानि बाप होता था। ईशाई मिशनरियों के स्कूलों के प्रधानाचार्य बाप होते हैं। बापों के और भी प्रकार हैं, जैसे काले, गोरे, भूरे, चेचक के दाग बाले, कोमल सुकुमार आदि।
हे बापो! जमाना जरूर बदल रहा है, लेकिन आप निराश मत होइए,  अपनी ताकत को पहचानिए। जमाना आप से है, समय रहते अपने हाथ मत कटाइए। अपने अधिकारों का पूरा इस्तेमाल करिए। क्योंकि आप बाप हैं और बापों के भी बाप हैं।  अपनी अहमियत को समझिए और जमाने को समझाइए। बेटा कितना ही बड़ा हो जाए लेकिन बेटा ही रहेगा, बाप बाप।

 

Comments

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की