रुक सकेगी फसल की बर्बादी


       डा. सुरेंद्र सिंह
प्राकृतिक आपदा के कारण हुई फसल की तबाही के बाद किसानों पर राजनीतिक महाभारत शुरू हो गया है। सबसे ज्यादा हलचल दौसा (राजस्थान) के गजेंद्र सिंह की दिल्ली में हुई आत्महत्या को लेकर मची है।  पर मौत तो मौत है, चाहे देश की राजधानी में पेड़ पर लटक कर आत्महत्या की जाए या फिर  दूरदराज के किसी गांव में चुपचाप जान दे दी जाए। कोई इसके लिए नेताओं को कोस रहा है तो कोई सरकारों को। कोई इसके लिए आपदा राहत कानून बदलने और मुआवजे की राशि बढ़ाने पर जोर दे रहा है तो कोई सभी किसानों का बीमा करने पर।  ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ की तरह तमाम सुझाव और शिकायतें हैं लेकिन कोई यह नहीं कह रहा कि हर साल होने वाली इस बर्बादी को रोकिए, मुआवजे से क्या होगा? किसानों को मरने से बचाइए। कोई ऐसा काम नहीं है जिसे न किया जा सके। सरकारों का इतना कुल बजट नहीं है कि उससे किसानों की वास्तविक क्षति की भरपाई की जा सके। फिर मरने वाले आदमी को कौन जिंदा कर सकता है? ठीक है प्राकृतिक आपदा को रोका नहीं जा सकता लेकिन उससे होने वाली क्षति को रोका जा सकता है।
बरसों पहले खेती की सिंचाई गूल बनाकर की जाती थी। जितना पानी खेतों में जाता, कमोवेश उतना रास्ते में नष्ट हो जाता। खेतों के लिए गूल से होकर जाने वाले पानी की रखवाली के लिए श्रमशक्ति भी ज्यादा खर्च होती थी। यही नही खेती योग्य जमीन भी इसमें घिरती।  लेकिन प्लास्टिक के पाइपों ने इसकी तस्वीर ही बदल दी है। पाइप के लिए पैसे जरूर खर्च होते हैं लेकिन अब एक आदमी आसानी से सिंचाई कर लेता है। पानी के लिए किसी गूल की जरूरत नही होती, पाइप से पानी सीधे वहीं पहुंचता है जहा उसे पहुंचाना चाहें।
यदि अतिवृष्टि से फसल को बचाना है तो फसल के ऊपर टाट पट्टियों की चादर उढ़ा दीजिए। चादर और फसल के बीच में करीब एक मीटर का फासला रखिए। यह चादर ओलों से  फसल की पूरी रक्षा करेगी. न सरसों को नष्ट होने देगी और न गेहूूं को टूटने देगी। फसल पर पानी ही तो आएगा, वह भी रिस-रिस कर। इससे बहुत मामूली क्षति होगी। चाहें तो इससे भी बचाव हो सकता है। चादर को इस शक्ल मे उढ़ाइए जिससे पानी ढरक कर उसके इर्द गिद गिरे। फसल पर सीधे नहीं गिर।े
अब सवाल उठता है कि इस पर खर्च कितना आएगा?
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इस साल १४ राज्यों में १०६.२३ लाख हेक्टेयर भूमि की फसल बर्बाद हुई है। इसमें सबसे ज्यादा क्षति  राजस्थान में ४५.५२ लाख हेक्टेयर शामिल है। उत्तर प्रदेश में २६.७९ लाख हेक्टेयर फसल नष्ट हुई है, इसमें २१.१८ लाख हे्क्टेयर गेहूं की फसल, १.५५ लाख हेक्टेयर जौ, ३.९३ लाख हेक्टेयर दाल, १.२० लाख हेक्टेयर सरसों की फसल नष्ट हुई।   केंद्र सरकार ने इस क्षति के लिए आठ हजार करोड़ रुपये की सहायता का प्रावधान किया है, जो पिछले सालों की तुलना में ज्यादा है।  राज्य सरकारों की ओर से इसके अलावा धनराशि दी जा रही है।  केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को जो मुआवजा राशि  देती है, वह यदि इतनी ही धनराशि से हर साल टाट पट्टी की चादर की कीमत में ५० प्रतिशत अनुदान के रूप में दे दे तो तीन साल में सारे किसानों की फसल को चादर से पाटा जा सकेगा।  चादर कम से कम पांच साल तो चलेगी ही। इसे उसी वक्त तानने की जरूरत होगी जबकि फसल पकने की हालत में हो। उसी फसल पर तानने की जरूरत है, जिसमें ओलावृष्टि से ज्यादा नुकसान हो। इसके अलावा किसानों  को मौसम की भविष्यवाणी से सीधे जोड़ा जाए ताकि तुरंत फसल पर इसे ताना जा सके।  ऐसा करने से फसल तो सुरक्षित रहेगी ही, न टैक्स माफ करने पड़ेंगे और नहीं अन्न की किल्लत होगी। लोगों को अच्छा अन्न मिलेगा, सबसे बड़ी बात फसल क्षति के कारण किसानों को अपनी जान देने की नौबत नहीं आएगी।  सरकार चाहे तो अनाज की कीमत बढ़ाकर भी किसानों की इसमें मदद कर सकती है।
इसके अलावा किसानों के पैदा हुए अन्न को सार्वजनिक प्रणाली के तहत वितरित करने में सरकार को हर साल हजारों करोड़ रुपये व्यय करने होते हैं जो प्राकृतिक आपदा के तहत दिए जाने वाली सहायता से कई गुना ज्यादा है। यदि यह अनाज पैदा होने के दौरान ही जरूरतमंदों को साल भर के लिए दे दिया जाए तो इसके रखरखाव और वितरण पर होने वाला हजारों करोड़ रुपये बचाया जा सकता है । कोई सोचे तब न? इससे बंदरबाट भी रुकेगा।

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