रूठे सुजन मनाइए...

                  
                                डा. सुरेंद्र सिंह
रूठना-मनाना भी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। एक तरह से यह जिंदगी का रस भी है। पत्नी पति से रूठती है तो पति उसे मनाता है और पति रूठता है तो पत्नी मनाती है। इस रूठने-मनाने से प्यार बढ़ता है। किसी से रुठना उस पर अधिकार जताना भी है। पिता बेटे से रूठता है और बेटा पिता से। पिता कितना ही निष्ठुर हो, आखिर बेटे के लिए दिल पसीस ही जाता है। उसी तरह बेटा भी। दोस्तों में रुठा-मटकी होती रहती है। दोस्ती तभी तक चलती है जब तक कि एक दूसरे को मनाते रहते हैं। यदि रुठना-मनाना खत्म कर दिया जाए तो आदमी और मशीन में क्या अंतर रह जाएगा।  रुठना और मनाना एक दूसरे के अन्योनाश्रित हैं। रूठा अपनों जाता है। यदि राहुल बीजेपी वालों से रूठ जाएं तो क्या कर लेंगे। वे तो प्रसाद बांटेंगे, भगवान से प्रार्थना करेंगे। हे भगवान! ये इसी तरह रुठे रहें ताकि इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सके। हर रूठने वाले को आभास होता है कि दूसरा उसे मना लेगा। वरना कोई किसी से क्यों रुठेगा?
रुठना-मटकना जिंदगी में आए दिन होता रहता है। मुझे नहीं पता विदेशों में इसकी व्यवस्था है या नहीं, लेकिन अपने यहां हरेक की जिंदगी में इसका होना लगा ही रहता है। कुछ लोगों का रूठना भी खबर होती है। आदमी-आदमी में फर्क है। ऐसे ही जैसे कोई चाहे मर जाए तो भी एक लाइन खबर नहीं बने लेकिन किसी की छींक भी सुर्खियां बन जाए। एक बार एक फैक्ट्री की दुर्घटना में पांच लोगों की मौत हो गई। उसके मालिक संवेदना जताने नहीं आए क्योंकि उनके कान में दर्द था। अखबार में इसकी खबर बाक्स में छपी।
राहुल तो उनसे भी बड़े आदमी हैं। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो हैं ही, भावी कर्णधार भी हैं। सो आए दिन इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में आता ही रहता है। मीडिया के लोगों को लगता होगा कि इस खबर में कमजोर पड़े तो टीआरपी में पिछड़ जाएंगे। इसलिए होड़ लगी है। सत्ता पक्ष से लेकर पार्टी के लोग भी उनके रठने को मीडिया के सामने सक्रिय बने रहते हैं। यह मीडिया में छपने का यह नया तरीका भी है। कुछ और नेता  जिन्हें मीडिया इस वक्त कम भाव दे रहा है, वे चाहें तो इस फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं।
पर राहुल रूठे क्यों हैं? यह तो अभी तक आधिकारिक तौर पर पता नहीं। क्या वह पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी संभालने से बचने के लिए रुठे हैं? क्या यह उनका मौजूदा राजनीतिक स्थिति से मोहभंग है। यह लड़ाई वह अपने लोगों से नहीं लड़ना चाहते। यदि ऐसा है तो हे राहुल! इस राजनीतिक संसार में सब नश्वर हैं। जिनसे तू नहीं लड़ना चाहता वे तो वैसे भी हारेंगे, अब नही तो बाद में। हारना हर किसी के लिए नियति है। यदि तू नहीं लड़ेगा तो तुझे कायर समझा जाएगा और लड़ेगा तो यश कमाएगा। यदि इस लड़ाई में तुझे कुछ हो गया तो सीधे परमधाम को जाएगा।
यदि ऐसा नहीं हैं तो क्या किसी ने कुछ उल्टा-सीधा बोल दिया है। अथवा किसी प्रेमिका से शादी रचाने की जिद में रुठे हो? कारण कोई भी हो सकता है इससे भिन्न भी। इसे वही जानें जैसे-‘‘अविगति गति कछु कहत न आवै।  ज्यों गूंगे मीठेफल को रस अंतर्मन ही भावै’’।  छह हफ्ते से ज्यादा दिन हो गए। इतने दिन कोई छुट्ठियां थोड़े ही मनाई जाती हैं। अभी तक रुठे हुए हैं। राष्ट्रीय नेता हैं तो उनका रुठना भी बड़ा होना चाहिए। ऐसा रूठना भी कोई रुठना है कि अभी रुठे और अभी मन गए।  रुठें तो जरा कायदे से रुठें। राहुल की तरह।
रुठना-मनाना कोई आज से नहीं सदियों से है, ऐसे ही जैसे किसी भी नई खोज के बारे में अब कह दिया जाता है, इसकी तो हमारे यहां हजारों लाखों साल पहले खोज हो चुकी। सुबूत है-
‘‘रूठे सुजन मनाइए जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए टूटे मुक्ताहार’’।।
शायद उस जमाने में रुठना-मनाना बहुत ज्यादा होता था। लोग बार-बार रुठ जाते थे। इसलिए रहीमदासजी ने रुठने के साथ मनाने पर बहुत जोर दिया। लेकिन राहुल को कौन मनाएगा? माता, बहन- बहनोई, दोस्त या पार्टी कार्यकर्ता?  चिंता न करें, राहुल के मनाने वाले बहुत हैं, उतने ही जितने उन्हें न मनाने के पक्ष में हैं। ऐसे में समझदारी इसी में है मन जाइए, कोई झूठे को भी मनाए तो सांच-मांच को मन जाइए। हिंदी फिल्मों की तरह।  देखिए यदि आप नहीं मने और तो लोगों का रूठने-मनाने से इतबार उठ जाएगा।  लोग आपकी नकल करने लगेंगे।  मियां-बीबी के बीच में झगड़े बढ़ जाएंगे। बाप-बेटे के बीच खटास आ जाएगी। दोस्ती दोस्ती नहीं रह जाएगा। कहने का मतलब है, समाज का सारा ढांचा चरमरा जाएगा। इसलिए मान जाइए।
कोई पत्रकार सवाल पूछ सकता है, क्या आप इसलिए रुठे हुए हैं ताकि रूठने का ऐतिहासिक रिकार्ड बनाया जा सके? तो यह गलतफहमी निकाल दीजिए, बहुत से गिनीजबुकिए बैठे हैं, वे आपका भी रिकार्ड तोड़ देंगे। इसीलिए भलाई इसी में हैं, थोड़े लिखे को बहुत समझिए।

Comments

  1. जब भी उपयुक्‍त समझें 'बगुला भक्‍ति‍' और 'रंगे सि‍यार 'कल्‍टों पर भी कलम चलाये।

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