नेताजी हैं न (4)


          डा. सुरेंद्र सिंह
पुलिस अधिकारी के कार्यालय के बाहर मुस्तैदी से खड़े पुलिस कर्मी के कंधे पर नेताजी ने  हाथ रखा,-‘‘ कैसे हैं तुम्हारे साहब, कुर्सी हिल तो नहीं रही? वह विचारा क्या जबाव देता।  बिना उसका उत्तर सने-‘‘तुम्हारे को कोई तकलीफ तो नहीं? नि:संकोच बताना’’। पुलिस कर्मी गदगद, सोच रहा है कि कोई काम पड़ेगा तो नेताजी हैं न।  बाहर बहुत से लोग दूरदराज से फरियाद लेकर आए हैं। कई के चेहरे पर दिन के बारह बजे हैं। बहुत उम्मीद लेकर आए हैं, यहां तो सुनी जाएगी। पुलिस कर्मी सभी को दरकिनार कर  झट दरबाजा खोल देता है, पहले से लाइन में लगे लोग हटा दिए जाते हैं। चलो हटो। अंदर। -‘‘अरे गुप्ता जी, क्या जलबा जलाल है? गृह मंत्रीजी से परसों ही मुलाकात हुई थी, पूछ रहे थे आपके कप्तान के क्या हाल हैं। ठीक से काम कर रहे हैं न?  मैंने कह दिया,- देवता आदमी हैं,  इन जैसा अभी तक कोई अफसर न आया और न आएगा। सभी की सुनते हैं। पार्टी के लोगों का भी ख्याल रखते हैं । हां, मैं अपनी बात तो भूल ही गया’’। एक कागज निकलाते हुए, -‘‘देखो इस आदमी को आपके फलां थाने वालों ने दो दिन से पकड़ रखा है’’। निर्दोष है विचारा, यह तो सरासर अन्याय है -‘‘ये तो अपराधी है, गांव के लोगों ने इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है’’-‘‘वह छोड़ो, यह पार्टी का कार्यकर्ता है, यह समझो हमारा आदमी है। पार्टी कार्यकर्ताओं से चलती है, पार्टी की सरकार है’’।

-‘‘ठीक है’’।  बाहर आकर कार्यकर्ताओं से- ‘‘चलो काम हो गया’’।
-‘‘चलो लगे हाथ एडीएम साहब से भी मिल लें’’।  अर्दली नेताजी को देखते ही हाथ जोड़ नमस्कार करता है। नेताजी के कहने से ही उसकी नियुक्ति इस स्थान पर हुई है। नेताजी अंदर जाते हैं तो वह बाहर से चाय, नमकीन आदि भिजवा देता है। नेताजी-‘‘भाई लोग तो आपके पीछे पड़े हैं. शिकायत पर शिकायतें आती रहती हैं। क्या बात है, पटरी नहीं खा रही है? संभालो, इन्हें बाकी हम संभालने के लिए आपके साथ हैं ही। लेकिन अपनी ओर से भी कुछ करो’’। अधिकारी भी घुटे घुटाए है, वह झट पूछ लेते हैं, पहले सेवा बताइए, फिर कर्मचारी को बुलाकर हिदायत देते हैं-‘‘नेताजी का मामला है, दो दिन में इसे करके रिपोर्ट देना’’। नेताजी हाहा... करके चले आते हैं। कार्यकर्ता पूछते हैं, -‘‘क्या हुआ? -‘‘अरे यह तो अपना पट्ठा है यहां काम तो यूं होता है’’, वह चुटकी बजाते हैं।

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