चंद्रग्रहण से लाभ-हानि
डा. सुरेंद्र सिंह
जब हर चीज के फायदे- नुकसान हैं तो चंद्रग्रहण के क्यों नहीें? यह भी कोई पूछने की बात है? चंद्रग्रहण से मेरा वास्ता शनिवार को सुबह तब पड़ा जबकि श्रीमतीजी ने चिल्लाना शुरू कर दिया, जल्दी- जल्दी नहाओ। मुझे बारह बजे से पहले खाना खाने पर मजबूर कर दिया। कहां तीन बजे खाने वाला कहां १२ से भी पहले। बेमन से कौर निगले। श्रीमतीजी का कहना था-‘‘चंद्रग्रहण है, सुन रहे हो, नौ घंटे के सूतक हैं। इस दौरान खाना नहीं मिलेगा’’। सचमुच उसने रसोई से ताला लगा दिया, न चाय, न पानी, न और कुछ। इसके बाद मंत्रोच्चार करने बैठ गई- ‘‘ऊं त्र्यम्बर्क यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनं। उर्वारुकमिव बंधनात मत्योर्मुक्षीय मामृतात।।...’’। मैं कुछ कहता, मूढ़ हिलाकर मना कर देती। मैंने संतोष कर लिया, जो होना है, होने दो। एक ही दिन की तो बात है, चंद्रग्रहण कोई रोज-रोज तो पड़ता नहीं।
इस बीच आफत के मारे सबसे छोटा भाई और उसकी बहू आ गई। छह माह का गर्भ था, उसे डाक्टर को दिखाना था। जब ग्रहण का संकट तो डाक्टर की क्या बिसात। बड़ी मुश्किल से दूसरे मोहल्ले से ढूढ़कर गाय गोबर लाया, उसके पेट पर लेप दिया। पढ़ी-लिखी आधुनिक जमाने की बहू, लिजलिजे गोबर की बदबू से उसकी क्या हालत हुई होगी, वही जाने। न तो वह ठीक से बैठ सकी और लेट सकी। नौ घंटे में वह भी सूख गया। बाद में उसे छुड़ाने की मशक्कत करनी पड़ी, कपड़े गंदे हो गए ,वह अलग। लेकिन मां जैसी जिठाने से कौन बहस करे। ग्रहण से गर्भस्थ शिशु की रक्षा का जो सवाल था।
पड़ोस में हनुमानजी का मंदिर है, काफी मान्यता है उसकी। किसी भी मुश्किल से निजात पाने के लिए हर वक्त भीड़ लगी ही रहती है, उनके यहां। टाइम पास करने के लिए सोचा जाकर दर्शन ही कर लें, उसके पट बंद मिले।
-पुजारीजी आज तो हनुमान जयंती है ?
पुजारी- सुबह-सुबह जल्दी मना ली, चंद्रग्रहण जो है।
दूसरे मंदिरों का भी यही हाल था, चाहे काली मां का मंदिर हो अथवा ठाकुरजी महाराज का ग्रहण के चक्कर में सभी में ताले लटके मिले। क्या करता, उल्टे पांव लौट आया।
-इन्हें भी राहु से खतरा है? राहु बड़ा बलवान है। इंसान ही नहीं सारे देवी-देवता उससे डरते हैं। गीता में मैंने कई बार पढ़ा है, उन्होंने अर्जुन से बार-बार कहा है, मैं ही परब्रह्म परमेश्वर हूं। सभी देवी- देवता, ब्रह्मा भी, सारे ग्रह, नक्षत्र, उसकी ही सृष्टि हैं। ये सभी उनकी इच्छा से जन्मते और मरते हैं। केवल मैं ही अजर-अमर और अविनाशी हूं। मन में ख्याल आया तो क्या भगवान श्रीकृष्ण भी राहु से कमजोर पड़ रहे हैं जो उनके मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए हैं। वैसे तो वह सारे राक्षसों का नाश करते आए हैं, सारे दुष्प्रभाओं से भक्तों की रक्षा। लेकिन इस वक्त क्यों छुपे बैठे हैं?
एक बात और मुझे बहुत खटकती है। समुद्र मंथन में निकले अमृत के वितरण के समय चंद्रमा ने तो इशारा ही किया था कि यह असुर है। सिर तो विष्णु ने ही काटा था। लेकिन राहु विष्णु को छोड़ चंद्रमा के ही पीछे पड़ा है। जैसे आजकल लोग अपने मुख्य बैरी को छोड़ गवाह के पीछे पड़ जाते हैं। गवाहों की हत्या कर जाती है, दुश्मन आपस में मुकदमा लड़ते रहते हैं।
बचपन से औरों की तरह मैं भी पढ़ता आया हूं, चंद्रग्रहण हो या सूर्य ग्रहण, ये खलोलीय घटना हैं। चंद्रमा और सूर्य के बीच जब पृथ्वी आ जाती है तब सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक पहुंचने में रुकावट आ जाती है। ऐसा पूर्णमासी के दिन होता है। सूर्य ग्रहण में पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं। यह अवस्था अमावस्या के दिन होती है। श्रीमतीजी को समझाना चाहा तो मंत्रोचार छोड़कर उबल पड़ी- ‘‘अखबार नहीं पढ़ रहे हो ? कई दिन से इसके बारे में आ रहा है। अखबारों की बातों पर कम विश्वास करते तो टीवी देख लो। टीवी कोई झूठ थोड़े ही बोलेगा।’’ बुदबुदाते हुए-‘‘फिजूल में विघ्न डालते रहते हो’’, फिर में मंत्रोच्चार में जुट गई- ऊं त्र्यम्बकं...।
सायं को सवा सात बजे चंद्रमा को ग्रहण से मोक्ष मिल पाया। इसके समय बाद जब सूतक हट गये, उसने स्नान किया, मुझे भी जबरन स्नान करा दिया। सायं के समय मेरी स्नान करने की आदत नहीं, शरीर भी कमजोर है। लिहाजा सर्दी, जुकाम हो गए। ब्लड प्रैशर और शुगर में भी इजाफा हो गया। डाक्टर साहब को दिखाना जाना पड़ा। फीस देनी पड़ी दवा भी लेनी पड़ी। श्रीमतीजी से पूछा तो बोली-गनीमत समझो, इतने से ही बीती, यदि ग्रहण का चक्कर पड़ जाता तो पता नहीं क्या होता। इसके बाद पंडित जी को दान दक्षिणा दी। तब ही चाय नसीब हो सकी।
फायदा यह रहा कि पंडितजी जो दक्षिणा के लिए दिन भर राह तकते रहते हैं, लोगों को फंसाने के लिए उनसे झूठ- फरेब करने से नहीं चूकते, उनके यहां दक्षिणा देने वालों का तांता लग गया। काश ऐसे ग्रहण जल्दी-जल्दी आया करें।
मुझे भी कुछ-कुछ लाभ रहा। मिलने-जुलने वाले कम ही आए। जो आए उन्होंने पहले ही कह दिया-आज चाय, पानी कुछ नहीं।
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