राहुल भैया आए हैं...

  
       डा. सुरेंद्र सिंह
चिरकुटो, लो आ गए राहुल भैया। आ गए ना, हम पहले ही कह रहे थे, हम कोई झूठ थोड़े ही बोलते हैं। जो पहले चुप साधे बैठे थे और भगवान से मन ही मन प्रार्थना कर रहे थे कि राहुल नही आएं, वे भी लगे हाथ बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं- ‘ मिले सुर में सुर हमारा तुम्हारा ..’ राहुल जरूर आएंगे। सो आ गए। यह समय खुशियां मनाने का है। आतिशबाजी करने से लेकर मिठाइयां बांटने और अखबारों में स्वागत कार्यक्रम छपवाने का है। जो जितना छप पाएगा, वह उतना ही बड़ा नेता। आपदा से मरते रहें किसान, उनकी बला से, किसान कोई  पार्टी में पद और तो टिकट नहीं दिलवा सकते। वैसे भी किसानों ने मोदी को वोट दिए हैं, उन्हीं के पास जाएं, हमारे पास क्या धरा है? अपना तो सीधा सा गणित है,  भैयाजी की कृपा चाहिए। वे ही किसानों से निपट लेंगे। देखो आते ही छक्का जड़ दिया- ‘‘भूमि अधिग्रहण विधेयक और किसानों के मुद्द््े पर निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे। जरूरत पड़ी तो लोकसभा में भी बोलेंगे’’।  हमें तो हमारे भैया ही भले। उनकी कृपा है तो सबकी कृपा। ‘हमारे तो गिरिधर गोपाल’ वही हैं, दूसरा न कोई। फिर ‘अपना हाथ जगन्नाथ का भात’।  एक वही हैं, जो उन्हें तार सकते हैं। बाकी सब मिथ्या और माया है, माया महा ठगिनी हम जानी।
मोदीजी की 56 इंच की छाती है, बहुत हिम्मत वाले हैं, भैया की छाती कम सही लेकिन वह 56 दिन छु्ट्टी मनाने वाले हैं। है कोई इस पूरी नेतानगरी में  इतने दिन छुट्टी मनाने वाला। आकाश-पाताल एक कर दीजिए, एक नहीं मिलेगा। मोदीजी ओबामा से कम नीद ले पाते हैं, भैया के पास समय ही समय है, वह जितना चाहें सोएं। हैं भैयाजी आगे। भैयाजी फ्रैश होकर आए हैं, नई ताजगी लाए हैं। उन्होेंने बहुत कुछ होमवर्क किया है। कई फार्मले और स्कीमें बनाई हैं। इससे पार्टी की नैया पार करेंगे। भैया को आने की देर नहीं हुई अखबार वाले आ टपके, सरकारी आवास पर। लेकिन भैया भी कम नहीं हैं, खूब घुटे घुटाए हैं, उन्होंने एक शब्द नहीं बोला मनमोहन सिंह की तरह। भैयाजी सब समझते हैं, यदि वह बात कर लेते तो अखबार वाले उनकी सारी स्कीम और फार्मूले को दुश्मनों के सामने उजागर कर देते। सारे किए धरे पर पानी फिर जाता। देखो भैया जी हैं न होशियार।
भैयाजी अपने देश में छुट्टी नहीं मनाते और न हीं अपने यहां चिंतन करते। इसलिए बैंकाक से लौटे हैं। खूब घूम फिरकर। परदेश की बात ही अलग है। अटलजी ने विदेश न जाकर यहीं पर घुटनों का प्रत्यारोपण कराया। क्या कर लिया, कोई कहने थोड़े जाता कि विदेश में क्यों करवाया? यदि विदेश में कराया होता तो अपने पैरों पर नहीं चल रहे होते। वहां की छुट्टियां अलग और चिंतन भी अलग। यदि अपने यहां जैसा सोचा तो क्या सोचा? विदेशी लोगों के बीच रह विदेश जैसा सोचा तो कुछ तो अलग होगा ही। मार्केट में जो सबसे अलग होगा, अलग दिखेगा, वहीं चलेगा
भैयाजी ने छुट्टियों के लिए बजट सत्र की परवाह नहीं कीं। संसद का महत्वपूर्ण समय खत्म करके ही लौटे हैं। उन्होंने ठीक किया।  बजट सत्र में धरा ही क्या था,  सरकार की खिंचाई करके क्या कर लेते, इसके लिए पार्टी में ऐरा-गैरा नत्थू खैरा बहुत हैं। आखिर होता तो वही सब  जो मोदी चाहते। उनकी बहुमत की सरकार है।   अभी उन्हें मनमानी करने दो, कुछ गलतियां होने दो, वह तो चुनाव से छह महीने पहले बोलना शुरू करेंगे। जनता इतने लंबे समय तक कैसे याद रख सकेगी।
भाजपाई चुटकी ले रहे हैं, लेने दो यह उनका समय है। ‘एक चुप सौ को हरा सकता है’। बेकार की बात में क्यों इनर्जी खराब करें। इसके लिए आजम खां, रामदेव, साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह ही बहुत हैं। किसी का नंबर ही नहीं आने देते। अगले चुनावों के लिए इनर्जी बचाकर रखनी चाहिए।

       

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