राम नाम की लूट है..

               
                            डा. सुरेंद्र सिंह
चाहे राम राम सा कहिए, नमस्ते, नमस्कार, जै रामजी की, चरण स्पर्श, जुहारु है, जय भीम, सलाम मालिकम, आदाब अर्ज, सभी का अभिप्राय एक ही है। ये शब्द अलग-अलग भाव भूमियों, संस्कारों, सभ्यता-संस्कृति, रीति-रिवाजों, धर्म, संप्रदायों, पूंजीवाद और साम्यवाद को अभिव्यक्त करते हैं। पर जो बात ‘राम राम’ के साथ है वह किसी के साथ नहीं। बेशक नमस्ते संस्कृत  शब्द नम:+ ते से मिलकर बना है। प्राचीन है।  नम: देवताओं से की जाती है- ऊं शिवाय नम:, ऊं गणेशाय नम: आदि आदि। लेकिन आधुनिक जमाने में ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’। दूसरे शब्द तो इस लिहाज से उसके पासंग भी नहीं बैठते।
उत्तर भारत की राजनीति में ‘राम राम सा’ का विशेष स्थान है। ग्रामीण इलाके में कोई बड़ी से बड़ी जन सभा हो, बड़े से बड़ा नेता। ‘राम राम सा’ नहीं तो कुछ नहीं, चाहे वह वायदों का पुलंदा लगा दे, सभी के बीच में अपने आदमी बैठाकर खूब तालियां बजवा ले, जनता के सामने अपनी जान निकाल कर रख दे। ‘राम राम सा’ नहीं तो कुछ नहीं।  राम राम सा दावत में रसगुल्ला की तरह है, चाहे कुछ भी खा लो लेकिन बिना इसके मजा नहीं आता। -‘‘च्योंरे जाने भाषण तो अच्छौ दयौ है, परि रामु-रामु तो करी नाहिं’’। -‘‘मरन देउ सारो का वोट ले लेगो?’’ इसलिए होशियार नेता सबसे पहले ‘‘राम राम सा’’ करते हैं, फिर अपनी बात शुरू करते हैं। पीछे जोश में भूल गए तो। ‘राम राम सा’ से वोट बटोरे जा सकते हैं, यह वोट बटोरने का अचूक औजार है।
गांव की किसी गली से गुजर जाइए, घर के बाहर बैठे लोगों को ‘राम-राम सा’ करते जाइए कोई बाल बांका नहीं सकता। यदि रास्ता भूल गए हैं तो लोग आपके साथ एक आदमी कर देंगे। पानी, चाय, हुक्का पीने के लिए भी आग्रह करेंगे। गांव में चोरी करके ‘राम राम सा’ करते निकल जाइए, लोग कहेंगे कोई भला आदमी है। कार से जाता हुआ कोई आदमी राम राम सा करे तो उसे बहुत बड़ा और सभ्य आदमी माना जाएगा।
कोई शहरियों को ‘राम राम सा’ करे और ग्रामीणों को ‘नमस्कार’ तो सारा मामला उल्टा पड़ सकता है। दोनों ही एक दूसरे को असभ्य समझेंगे। इसलिए जो चीज जहां के लिए फिट है, वहीं के लिए है। शहरों में ‘राम’ नाम नहीं हो ऐसा नहीं है। यहां इसके दूसरे रूप है।  मुंह में राम बगल में छुरी है,  राम नाम के दुपट्टे दुकानों पर जगह-जगह टंगे मिल जाएंगे। बहुत से लोग राम नाम के दुपट्टे पहने मिल जाएंगे, मंदिरों में बहुतायत से। किसी को बड़ी जटा जूट रखने की जरूरत नहीं, कौन इसकी देखभाल करे, रामनामी दुपट्टे पहन पहुंचे हुए संत जैसे लगते हैं। समाज में लगना ही तो महत्वपूर्ण है, काम चाहे कुछ भी करिए। कितने ही मंदिरों के अनेक पुजारी और ज्योतिषी दिन भर झूठ बोल लोगों को ठगते रहते हैं लेकिन राम नाम के दुपट्टे से अच्छा खासा सम्मान बटोर लेते हैं। इतनी प्रतिष्ठा तो बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों की भी नहीं, जितनी इनकी। वे भी करते हैं चरण वंदन। ।
राम के नाम पर रामायण पाठ कर अच्छी कमाई की जा सकती है। लोगों को अच्छी नौकरी की, बिगड़े काम बनने की, दुश्मन का नुकसान होने की, मुकदमा जीतने की शर्तिया गारंटी दी जा सकती है। विदेशी लोग हम से ज्यादा चतुर हैं। उन्होंने यह प्रचारित कर कि भविष्य में मरे लोगों को जिंदा किया जा सकेगा, उनके परिजनों की ममी संरक्षित कर बड़े पैमाने पर पैसा बटोरा। यही नहीं ममियों के बीमा करके अतिरिक्त आय का साधन भी बनाया। यदि राम का नाम उनके पास होता तो वे इसका पेटेंट करा सकते थे। राम के नाम पर स्वर्ग और मोक्ष में भेजने के लिए अच्छा खासा व्यवसाय कर सकते थे।  हमारे लोग राम के नाम पर चोट्टापने का काम करते हैं, जो दे दे उसका भला और जो नहंंीं दे उसका भी भला। रामायण पाठ करेंगे तो बाद में प्रसाद वितरण जरूर करेंगे। सब को थोड़ा-थोड़ा दे देंगे, बाकी सब खुद रख लेंगे।
सर्वविदित है राम का नाम अपरंपार है। पूरा ब्रह्मांड राम मय है। राम से ही सब सृष्टि है। राम के सिवाय कुछ नहीं है। आदि में राम है और अंत में भी राम है। लोग बुढ़ापे में राम का नाम हर वक्त जपते रहते हैं ताकि अंत समय में मुंह से राम का नाम निकल जाएगा तो कल्याण हो जाएगा। चाहे पूरी जिंदगी चोरी-चकारी, ठगी, बेईमानी, भ्रष्टाचार, बलात्कार कुछ भी करिए, लेकिन अंत समय में राम का नाम मुंह से निकलते ही सारे पाप नष्ट। यह मैं नहीं कहता शास्त्रों में कहा है। मैं कई बार बड़ा चितिंत हो जाता हूं,  स्विटजरलेंट में जेनेवा के निकट २७ किलोमीटर लंबी भूमिगत प्रयोगशाला लार्ज हेड्रन कॉलिडर में दुनिया  भर के वैज्ञानिक  गौड पार्टीकल की तलाश कर रहे हैं, इसमें भारतीयों का भी योगदान है।  यदि ये लोग गौड पार्टीकल और सृष्टि की रचना का रहस्य खोजने में कामयाब रहे तो राम के नाम पर हो रहे देश भर में फैले इस व्यवसाय का का क्या होगा ?
लेकिन तब तक-
‘‘राम नाम की लूट है, लूटी जाय सो लूट
अंत काल पछतायगो, प्राण जाएंगे छूट।’’

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