असहजता से सहजता की ओर

     
            डा. सुरेंद्र सिंह
किसी से छुपा नहीं है कि भारत और जर्मनी के संबंध पुराने होने के बाद उतने सहज नहीं हैं, जितने कि अमेरिका, जापान आदि देशों से हैं। इन असहज संबंधों को सहज बनाकर जर्मनी के निवेशकों का विश्वास हासिल करने और जर्मनी से अपने कारोबारी संबंध बढ़ाने की प्रधानमंत्री मोदी के सामने अहम चुनौती है।
दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक मेले हनोवर मेसे में भारतीय पवेलियन का मोदी से उद्घाटन करने गए प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने संदेश दिया है कि अब स्थितियां बदल रही हैं। भारत  पूरी दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की क्षमता रखता है। उन्होंने जर्मनी समेत सारे देशों को इसके लिए भारत आकर भागीदारी करने के लिए आमंत्रित किया है। लेकिन इसका कौन ज्यादा फायदा उठाएगा? भारत, या जर्मनी? यह भविष्य बताएगा। मोदी ने अपनी इस यात्रा में देश की चार सौ भारतीय कंपनियों, १२० अधिकारियों के साथ शिरकत की। जर्मनी के भी हजारों औद्योगिक प्रतिनिधियों के सामने बात रखी। जिसमें अपनी सरकार की प्रतिबद्धताएं, निवेश के लिए अनुकूल माहौल पैदा किए जाने की बातें कहीं गयीं।
कहने की जरूरत नहीं कि जर्मनी ने प्रथम विश्वयुद्ध में नाजी फौजों के झंडे में स्वास्तिक चिन्ह का इस्तेमाल किया। यही नहीं द्वितीय विश्ययुद्ध के दौरान भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद बोस को जापान की ओर से सैनिकीय मदद भी दी गई। यह अलग बात है कि उनकी मदद का मिशन कामयाब नहीं हो पाया। दूसरी ओर जर्मनी के खिलाफ मित्र राष्ट्रों की सेनाओं में सबसे ज्यादा भारतीय सैनिक शामिल रहे। इसमें हजारंों भारतीय सैनिक मारे गए। इस सबके कारण जर्मनी को हार का सामना करना पकड़ा। बेशक परतंत्रता के कारण ब्रिटिश सेना के साथ भारतीय फौजों की लड़ने की अपनी मजबूरी थी। लेकिन भारत कभी जर्मनी की जनता के हितों के खिलाफ नहीं रहा। वह भारत ही है कि द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद उसने से जर्मनी से दोस्ती कायम की। फिर भी जर्मनी की जनता के मन में गांठ अभी है। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की वर्ष 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी की 68 प्रतिशत जनता भारत को स्वाभाविक मित्र नहीं मानती है। यह असहजता पाकिस्तान और भारत संबंधों से भी ज्यादा है। भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हो चुके हैं, फिर भी वहां की 58 प्रतिशत जनता ही भारत को स्वाभाविक मित्र नहीं मानती है। रिपोर्ट के अनुसार 32 प्रतिशत भारतीय जर्मनी के प्रति सकारात्मक, 42 प्रतिशत स्वाभाविक और 26 प्रतिशत नकारात्मक भाव रखते हैं जबकि जर्मनी के 16 प्रतिशत नागरिक भारत के प्रति सकारात्मक, 16 प्रतिशत स्वाभाविक, 68 प्रतिशत नकारात्मक भाव रखते हैं।
लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजनयिक स्तर पर दोनों देशों के संबंधों में लगातार मजबूती आ रही है। वह जर्मनी ही है कि उसने शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, तकनीक से लेकर कई क्षेत्रों भारत में की लगातार मदद की है।  भारत में पहला फाइटर विमान जर्मनी की मदद से बना। उसकी मदद से इंडियन इंस्टीट्यूट मद्रास स्थापित हुआ। जर्मनी के एयरक्राफ्ट डिजायनर  कुर्त टंक ने ही डायरेक्टर के रूप में इंडियन इंस्टीट्यूट मद्रास की कमान संभाली। उन्होंने ही बमवर्षक लड़ाकू विमान विकसित कराया  टेलीकम्युनिकेशन, इनवायरमेंट टेक्नोलोजी, आटोमोबाइल्स, कोयला, उपग्रह, फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में सहयोग मिला है। जर्मनी भारत में निवेश करने वाला आठवां सबसे बड़ा देश है। वर्ष २००० से २०१२ तक उसने ५.२ मिलियन अमेरिकी डालर का निवेश किया है। उसकी नेवी ने भारतीय नेवी के साथ वर्ष २००८ में संयुक्त अभ्यास किया। जर्मनी के अनेक उत्पादन भारत में लोकप्रिय हैं।
पर ताली एक साथ से नहीं बज रही। भारत की ओर से भी उसे पूरा सहयोग किया गया है। मौजूदा समय में जर्मनी की ओर से भारत में जितना निवेश है, उससे ज्यादा भारतीयों का जर्मनी में निवेश है।  भारत का जर्मनी के साथ आर्थिक कारोबार बढ़ रहा है। जर्मनी यूरोप का सबसे सशक्त देश है। 
लेकिन यह नहीं भूला जा सकता कि जर्मनी ने भारत द्वारा १९९८ में किए गए परमाणु परीक्षण का विरोध किया था। लेकिन इसे भी विस्मृत नहीं किया जा सकता कि जर्मनी संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत को स्थायी सीट दिलाने का पक्षधर है। जनता के दिलों में तो भारत और अमेरिका के संंबंधों को लेकर भी पहले असहजता थी। ईराक में अमेरिकी हमले का यहां के जनमानस ने खुलकर विरोध किया। परमाणु परीक्षण पर सबसे पहले अमेरिका ने ही भृकुटियां तानी थी इसके बाद सबसे ज्यादा प्रतिबंध लगाए थे। यही नहीं पाकिस्तान से युद्धंों के दौरान अमेरिका की भूमिका भारत विरोध और पाकिस्तान के समर्थन की ही अधिक रही। इस सबके बावजूद अब भारत और अमेरिका के संबंधों  में सहजता आ रही है तो जर्मनी और भारत के संबंधों में क्यों नहंीं आ सकती? उम्मीद करनी चाहिए कि मोदी के जर्मनी दौरे से स्थिति में और सुधार आएगा।

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