हिंसा से अहिंसा की ओर

          
       डा. सुरेंद्र सिंह
दुनिया मुख्यत: दो तरह के लोगों की है। एक जिनका भरोसा हिंसा पर और दूसरे जिनका भरोसा हिंसा की बजाय इंसानियत, दया, परोपकार, सेवा पर है। हजारों साल पहले धरती पर पहली तरह के लोग बहुतायत में थे। उनके ये गुण उन्हें जानवरों से ज्यादा अलग नहीं करते । दूसरी प्रकार के लोग पहले भी थे लेकिन उनका बर्चस्व कम ही था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।  अपने देश में चाहे राम रावण के युद्ध का मामला हो या महाभारत, ये अहिंसा के लिए हिंसा से लड़े गए। । पहले प्रकार के लोगों का बर्चस्व होने के कारण ही बड़े पैमाने पर नरसंहार हुए। दूसरे मुल्क भी इसका अपवाद नहीं हैं। तीर और तलवार के बल पर यह दुनिया सदियों तक चलती रही है।
सम्राट अशोक के समय में भी खून खराबा खूब रहा लेकिन उसी  दरम्यान दूसरी विचारधारा को भी बल मिलना शुरू  हुआ। इसमें काफी योगदान बु्द्ध का रहा । उन्होंने युवराज रहते पड़ोसी  कोलिय राज्य पर हमला रुकवा कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि दुनिया अहिंसा के जरिए  ज्यादा खुश और सुखी रह सकती है। तब से दुनिया में बहुत उतार-चढ़ाव आए।  विदेशों से आकर भी लोगों ने तलवार और बारूद के बल पर शासन किए।  लेकिन जो दूसरी विचारधारा ने आगे बढ़ना शुरू किया, वह बढ़ती ही गई, कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस विचारधारा ने दुनिया के सामने यह साबित किया है कि इसके जरिए शासन न केवल संभाला जा सकता है बल्कि अपना हक पुन: प्राप्त किया जा सकता है। तदनंतर दुनियाभर के अनेक मुल्कों में दूसरी विचारधारा ने ताकत अर्जित की, अनेक मुल्क आजाद हुए। दुनिया में यह कारवां अभी चल रहा है।  मौजूदा समय में दुनिया में दूसरी विचारधारा के लोगों की बहुतायत है। ये लोग सुख, सुविधाओं और ताकत में भी बहुत आगे हैं। धरती पर जीवन की विकास यात्रा हिंसा पर अहिंसा के विजय की गाथा है।
फिर भी पहली प्रकार के लोग अभी दुनिया में हैं। तहरीक-ए-तालिबान और तमाम आतंकवादी संगठन, माओवादी, नक्सली आदि उन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज जब दुनिया २१ वीं सदी में तेजी से बढ़ रही है, अंतरिक्ष के दूसरे ग्रहों पर बसने की तैयारी है, जीवन के तमाम नित-नए रहस्य उजागर हो रहे हैं, ये लोग अभी भी १७-१८वीं सदी की मानसिकता में जी रहे हैं। तहरीक-ए- तालिबान ने हाल ही में मिसाइल परीक्षण का दावा करके यह साबित करने का प्रयास किया है कि  वह ताकतवर हो गया है। लेकिन उसकी यह ताकत दुनिया की ताकत के मुकाबले सूरज को दीपक दिखाने के सदृश्य है।
फिर भी चिंता की बात है । यह सही है कि यह आतंकवाद की शरणस्थली पाकिस्तान के लिए सबसे ज्यादा खतरा है। यह संगठन पाकिस्तानी सेना से सीधे टक्कर लेता है। लेकिन दुश्मन तो पूरी दुनिया का है। तहरीक- ए- तालिबान २००७ में विभिन्न १३ आतंकवादी गुटों को एकजुट करके बेतुल्लाह मसूद के नेतृत्व में गठित हुआ। अगस्त २००९ में उसकी मौत के बाद  हबीबुल्लाह मसूद ने इसकी कमान संभाली।  नवंबर २०१३ में उसकी मौत के बाद मौला फजलुल्लाह के नेतृत्व में यह काम कर रहा है।  तालिबान, अलकायदा और अलकायदा  से प्रथक सगठन होने के बावजूद यह उनसे जुड़ा रहा है। २००९ में  इनके बीच समझौता हुआ था, उसमें तालिबान के मोहम्मद उमर और अलकायदा के ओसामा बिन लादेन ने खास भूमिका निभाई। तब इन सभी को मिलाकर एक नया संगठन सरिया इत्तिहाद मुजाहिद्दीन (सिम) के नाम से बना, इसका उद्देश्य अफगानिस्तान में नाटो सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ना था  लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चल सका। २०१४ में इसमेंं विभाजन हो गया। तहरीक-ए-तालिबान साउथ वजीरिस्तान,  तहरीक तालिबान पाकिस्तान, पंजाब तालिबान के रूप में। तहरीक- ए -तालिबान पाकिस्तान को ही पाकिस्तानी तालिबान कहते हैं। मिसाइल परीक्षण का दावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने किया है।
तहरीक ए तालिबान ने २०१० में  अमेरिका में टाइम स्क्वायर, न्यूयार्क में हमला किया। इसी ने ब्रिटेन को धमकी थी। यह वही आतंकवादी संगठन है जिसने नवंबर २०१२ में शिक्षा के प्रसार के खिलाफ मलाला यूसुफजई पर जानलेवा हमला किया।  इसी ने २०१३ में भारत में भी सरिया आधारित अमीरात स्थापित करने की घोषणा की थी। पाकिस्तानी तालिबान ने १६ दिसंबर २०१४ को पेशावर से एक स्कूल में आतंकी हमला करके १२६ बच्चों की जान ले ली। कहने को यह एंटी वैस्टर्न, एंटी पाकिस्तान, एंटी भारत है लेकिन वास्तव में यह और इन सरीखे संगठन उन बहुसंख्यक लोगों के खिलाफ हैं जो दुनिया में इंसानियत के रास्ते पर चल रहे हैं। ये लोग कुछ निरीह लोगों पर निशाना बनाकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं लेकिन इनकी नियति इनके खिलाफ है। दुनिया हिंसा से अहिंसा की ओर बढ़ रही है। इस अभियान को अब पीछे नहीं लौटाया जा सकता।


            
     

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