अधिकारी हों तो ऐसे?

        
        डा. सुरेंद्र सिंह
भगवान रजनीश अपने एक भक्त के यहां गए। पत्नी की शिकायत- ‘‘ये तो घर में भी अफसर की तरह रहते हैं, बच्चों और नौकरों पर  ऐसे हुकम चलाते हैं जैसे अदालत में बैठे हैं।’’ अधिकारी महोदय जज थे। अधिकारी तो अधिकारी, क्या घर क्या बाहर?  एक  अधिकारी ऐसे भी हैं, उन्हें सुबह-सुबह आज ही पार्क में देखा, वह टहलते भी अफसर के अंदाज में हैं। टहलने तो और भी कई अधिकारी आते हैं लेकिन उन्हें कोई अधिकारी बताएगा तो भी लोग मानने के लिए तैयार नहीं होंगे, -अरे यह भी कोई अधिकारी हैं। लेकिन इन्हें हर कोई दूर से ही पहचान लेगा। ये हंड्रेड प्रतिशत अधिकारी हैं। चलते हैं तो हाथ में रौल, किरिच हुए कपड़े। हारसिंगार से भी उम्दा खुशबू बिखेरते हैं। पसीना आने की नौबत ही नहीं आती तब तक रूमाल दो-चार बार चेहरे पर घुमा लेते हैं। सीना और गर्दन हर वक्त तने हुए। हाथ और पैरों का सुंतलित और अनुशासित इस्तेमाल। आराम के लिए बैंच पर बैठते हैं तो भी अकड़ कर, अधिकार के साथ। लोग कहते होंगे, हे भगवान! बाकी लोग तो कोई गर्दन मटका रहा है, कोई कंधा तो कोई हाथ, पैर और कुल्हा लेकिन ये तने के तने हैं, सीधे- सतर। जब इन्हें शरीर के अंगों को हिलाना-डुलाना ही नहीं है तो पार्क में आते ही क्यों हैं?
कुछ अधिकारी अलग-अलग रूपों में होते हैं घर में अलग, दफ्तर में अलग, कार्यक्रमों में अलग। मिलने-जुलने वालों के बीच में अलग। एक कमिश्नर थीं, -‘‘भैयामेरे बच्चे आ रहे हैं दो दिन तो उनके लिए खाना बनाऊंगी, उनके साथ रहूंगी। सबसे मिलने जुलने के लिए मना कर दूंगी। आप भी मत आना। ’’ कुछ अफसर गऊ की तरह होते हैं। एकदम सीधे सादे। जैसे आते हैं वैसे ही रिटायर हो जाते हैं। कबीरदासजी की चदरिया को जस का तस धर देते हैं। एक अधिकारी ऐसे भी थे, जिनसे मिलने बहुत कम लोग जाते। इसलिए जब उनसे कोई मुलाकात को जाता तो उसे कम से कम एक हफ्ते बाद का टाइम देते। अधीनस्थ बता देते- ‘‘साहब बहुत व्यस्त हैं’’। जब अगली बार फरियादी आता तो फिर टाइम आगे बढ़ा देते, -‘‘अभी साहब के पास टैम नहीं है’’। इस तरह एक बार मुलाकात के लिए हर आदमी को कम से कम दो-तीन चक्कर लगवाते। अनेक से इससे भी ज्यादा।
कुछ अधिकारी यादव सिंह की तरह होते हैं, अपने सात जन्मों के लिए इंतजाम कर लेते हैं। आप कहेंगे, जन्म के बारे में क्या पता? भाई, पैसे में बहुत दम है, कुछ न कुछ तो रास्ता निकलता ही होगा। इसके अलावा परिवार की सात पीढ़ियों, अपने नाते-रिश्तेदारों और मिलने जुलने वालों तक को तार देते हैं। कुछ अधिकारी चिलम चोटटागीरी करते हैं। उनसे न खाते बनता है और न पचाते।  एक अधिकारी किसी मामले में फैसला देने के लिए दोनों पक्षों से रिश्वत लिववाते। फैसला तो एक के ही पक्ष में होना था। दूसरे पक्ष का पैसा ईमानदारी से कुछ काट कर वापस करवा देते।  एक बड़े अधिकारी इनके भी बाप। उन्होंने महानगर की कीमती जमीन के लिए एक भूव्यवसायी को फंसाया। कुछ पेशगी दी और यह कहकर बैनामा करा लिया कि सायं को बंगले से पैसा ले जाना। यहां लाना ठीक नहीं था। व्यवसायी ने भरोसा कर लिया।  इतना बड़ा अधिकारी झूठ थोड़े ही बोलेगा। फिर आगे भी उनसे काम थे। सायं को वह बंगले गया तो उसे सुबह के लिए टहला दिया।  फिर एकाध दिन इसी तरह टहलाया। फिर एक दिन अपने समकक्ष पुलिस के अधिकारी से कह उसे गिरफ्तार करा दिया।  महीने भर बाद जमानत पर लौटे जनाब। नानी याद आ गई अधिकारी क्या होता है। इसके बाद किसकी हिम्मत है जो उनसे पैसा मांगकर दिखाए? जमीन अब उनकी और उनके बाप की।
अधिकारी वह है जिसके पास अधिकार हों।  कुछ अधिकारी अपने ही नहीं दूसरों के अधिकारों का भी इस्तेमाल करते हैं। चिल्लाने वाले चिल्लाते ही रह जाते हैं यह तो मेरे अधिकार हैं। लेकिन वह ऐलान से काम करते हैं।   लोग फरियाद लेकर आते हैं- ‘‘सर जी, हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। हमें न्याय दीजिए।’’  अधिकारी झट आदेश कर देते हैं, जांच कराने के। -‘‘जाओ बाबूजी को दे दो’’।  यह उनका अधिकार है। जांच वाले अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद बाबूजी अपने अधिकारों का। जब तक फरियादी के अधिकार मिलने का नंबर आता है तब तक या तो वह पस्त हो जाता है या फिर दूसरे किसी अधिकारी के पास चला जाता है, अधिकारों की उसी प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए। अधिकार और अधिकारी की कथा अनंत है। बाकी फिर कभी। 

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