हे महंगाई भत्ता देवता

                  
                             डा. सुरेंद्र सिंह
केंद्र सरकार के कर्मियों का छह फीसदी महंगाई भत्ता बढ़ा दिया गया है। देश भर के ८० लाख से ज्यादा कर्मचारी इससे लाभान्वित होंगे। इसलिए यह वक्त खुशियां मनाने, एक दूसरे को बधाई देने का है। बेकडेट से यानि एक जनवरी से मिलेगा। जो कुछ दमित जरूरतें रह गई होंगी वे इससे पूरी हो सकती हैं। देखिए भाई, केंद्र सरकार कितनी अच्छी  है, दयावान है। महंगाई कंट्रोल नहीं कर सकती तो क्या हुआ? कहीं रुक रही है यह जो यहां रुक जाएगी। विदेशों में भी महंगाई बढ़ रही है। सरकार महंगाई कम नहीं कर सकती तो क्या, महंगाई भत्ता तो बढ़ा ही देती है। किसी को कहने का अवसर नहीं देती। इस हाथ से नहीं तो उस हाथ से सही, दे तो देती है। समय-समय पर महंगाई का बोझ कम करती रहती है। किसी भी संवेदनशील सरकार की यह पहचान है कि  चीखने-चिल्लाने से पहले ही लोगों का दर्द भांप ले।  ये कर्मचारी किसी के पापा, चाचा, ताऊ,  भइया, भाभी, मामा, नाना, जीजी, फूफा, फूफी, निकट के रिश्तेदार होंगे। खुशी तो उन तक भी पहुंचेगी। जब पकवान बनते हैं तो उनकी खुशबू पड़ोसियों के घर तक भी जाती है। यह मंहगाई भत्ता खुशी और अच्छे दिनों का विस्तार है।  राज्यों के कर्मियों को मायूस होने की जरूरत नहीं है, केंद्र की देखा-देखी देर सवेर उनकी सरकारें भी इसकी घोषणा कर सकती हैं। इस तरह उनके परिवारीजनों, नाते-रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भी खुशी और अच्छे दिनों की सौगात मिल सकती है।
देखो, सरकार ने मंजूरी देदी है, कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाना लाजिमी था, यह उनका अधिकार है। जाहिर है, बाकी  सुविधाएं भी इसी अनुपात में बढ़ जानी चाहिए। फार्मूला तो सबके लिए एक ही है। समझदार लोग इशारे से समझते हैं, वे बिना कहे लिफाफों का वजन इसी अनुपात में बढ़ा सकते हैं। कुछ जो नासमझ ठहरे, उनके लिए परंपरागत बहुत से हथकंडे हैं। फाइल आगे सरकाने में लेट कर देंगे। एकाध-दो आपत्तियां लगा देंगे। फाइल से एकाध कागज खींच लेंगे। कई बार उनसे सीधे मुंह बात नहीं करेंगे। फिर भी कोई नहीं समझेगा तो सीधे सपाट शब्दों में कह देंगे- ‘‘पता नहीं महंगाई भत्ता बढ़ गया है। हमने नहीं सरकार ने बढ़ाया है।’’ काम तो कराना ही है, मरता क्या नहीं करता। महंगाई भत्ता का अर्थ समझना ही होगा।
प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी चाहें तो अपने मालिकान पर महंगाई भत्ते के लिए दबाव बना सकते हैं। नेतागीरी करने के लिए भी यह अच्छा मुद्दा हो सकता है। छोटी-मोटी कंपनियों के कर्मचारियों के लिए  महंगाई भत्ता के बारे में सोचना भी पाप है। किसी ने जुबान खोली तो झट बाहर। न से कुछ ही भला। मजदूर तो जानते ही नहीं, मंहगाई भत्ता क्या बला है। इस प्रकार उनके लिए इससे कोई लेना-देना नहीं है। मनरेगा ने वैसे ही उनके भाव बढ़ा दिए हैं। रही देश के ६५-७० फीसदी किसानों की बात तो उनकी कभी सुनी है, जो अब सुनी जाएगी।  चुनाव में बहुत सारे वायदे किए थे। अब कुछ लोगों ने सिर उठाने की कोशिश की थी उन्होंने बयान ठोंक दिया-‘‘भूमि अधिग्रहण किसानों  के हित में होना चाहिए। सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। आपका (किसानों) का भरोसा मेरे साथ है, मैं उसे टूटने नहीं दूंगा। ’’ अब और क्या चाहिए, फिर भी कोई अगर-मगर करेगा तो दूसरा तुर्रा छोड़ देंगे। तुर्रो की कोई कमी नहीं है, द्रोपदी के अक्षय पात्र की तरह। बिना खाए किसानों को डकारें आ सकती हैं। दुर्वासा ऋषि सरीखे किसानों से वे अगले पांच सालों के लिए आर्शीवाद ले सकते हैं।
महंगाई भत्ते ने यहां आने के लिए कई सीढ़ियां पार की हैं, काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों को सुविधाएं देने को इसकी शुरुआत हुई।  तब इसका नाम ‘डीयर फूड एलाउंस’ था। इसके बाद १९४७ में इसका नाम ‘ओल्ड टैक्सटाइल एलाउंस’ हुआ। १९५३ में संशोधन कर इसे ‘रिवाइज्ड टैक्सटाइल एलाउंस’  नाम दिया गया। इसके बाद इसे डीयरनैस एलाउंस (महंगाई भत्ता) नाम मिला। फिर  इसे कस्टमर प्राइस इंडेक्स से जोड़ दिया गया।
हे महंगाई भत्ता देवता! तू बड़ा महान है। देखते-देखते दुनिया बदल गई। जो काम पहले राजा महाराजा और बड़े लोग करते थे, अब वे आम आदमी की दिनचर्या में शामिल हो गए हैं लेकिन इतने सालों बाद भी तू अभी तक कुछ गिने चुने लोगों पर ही मेहरबान है। तू कब आम आदमी के गले का हार बनेगा? देख महंगाई तो सब को सताती है, गरीबों पर भी दया कर। अपनी झोली में से कुछ उनके लिए भी निकाल, कुछ रहम कर।  यदि तू सचमुच निष्पक्ष है, समदर्शी है, सबके प्रति निष्ठावान हैं, सर्वहितैषी है, यदि तेरा कोई अपना-पराया नहीं है तो सभी के प्रति समान व्यवहार कर।  भगवान के यहां देर पर अंधेर नहीं। यदि तू मनमानी करेगा तो यह लोकतंत्र का जमाना है, देखले अब भी समय है। समय किसी को बख्शता नहीं है।


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