हैल्थ फिटनैस

                   
                                डा. सुरेंद्र सिंह
आजकल हैल्थ फिटनैस का जमाना है। जमाने बदलते रहते हैं, कभी क्रिकेट का जमाना आता है तो कभी संतोषी माता और साईं बाबा का, कभी डेंगू तो कभी स्वाइन फ्लू का।  हैल्थ है तो वैल्थ है और वैल्थ है तो जरूरी नहीं कि हैल्थ भी हो। वैसे बाबा तुलसीदास बहुत पहले गए हैं- ‘‘पहला सुख निरोगी काया..’’। हैल्थ को लेकर जैसी आतुरता अब है, पहले कभी नहीं देखी गई। पहले मार्निग वाक् शहर के बड़े लोगों के नाम थी। अब ये आम हो चली है। अनेक लोग गांवों में भी शहरों की देखा-देखी  मार्निंग वाक को जाने लगे हैं। फैशन शहर में पहले आता है गांव में बाद में। पहले गांवों में काम ही इतना काम था, किसी को फिटनैस के लिए अतिरिक्ति कुछ करने की जरूरत नहीं थी। बैलों का हल चलाने में ही आदमी इतना पैदल चल लेता था जितना कोई शहरी मार्निग वाक में सात जनम नहीं चल सकता। फिर खेत से चारा काटना, कूटना, पशुओं को डालना, कुएं से पानी खींचना, नहाना-धोना दिन भर काम ही काम था। मशीनीकरण से अब ये सारे काम खत्म हो गए हैं, लिहाजा गांवों में हैल्थ फिटनैस की चिंता होना लाजिमी है।
शहर तो फिर भी शहर हैं। गांवों से २० साल आगे। गांंव वाले पगडंडियों पर घूमते हैं तो शहर वाले पार्कों में। पार्क में सुबह जाकर देखिए, अजीब सा चिड़ियाघर दिखता है। टहलने  वाले  फुटपाथ पर टहल रहे हैं।  गिन-गिन कर कदम रख रहे हैं, सीना फुलाकर बताते हैं, आज तो ढाई हजार मीटर हो गया, बहुत है। कुछ लोग प्रतिस्पर्धा के साथ चलते हैं, कोई उनसे आगे नहीं निकल जाए, चाहे दौड़ना पड़े, हंपहफी चल चल जाए। कुछ लोग वैराग्य भाव में चलते हैं। ‘‘कोई नृप होय हमें का हानि’’। कुछ लोग योग कर रहे होते हैं, हाथ, पैर, गर्दन ऐसे घुमाते हैं जैसे चकई। कुछ लोग मैदान में खेलते हैं। टहलने के लिए कुछ लोग गोद के बच्चों को भी साथ में लेकर आते हैं। या तो उनके घर में कोई सदस्य उन्हें रखने वाला नहीं या फिर यह फैशन का नया रूप है। देखो, हमारा बच्चा भी सुबह की ताजी हवा में सांस ले रहा है। पार्क के एक कोने में महिलाएं एकत्रित होकर भजन गाती हैं-‘‘प्रभु राखियो लाज हमारी’’ आदि आदि। इनमें वृद्ध महिलाएं ज्यादा होती हैं। उनका मार्निग वाक से ज्यादा लेना-देना नहीं है, वैसे भी इस उम्र में क्या करें। मार्निंग वाक के बहाने एकत्रित हो टाइम पास करती हैं या फिर अपनी बहुओं और पड़ोसियों की चुगली। वयस्क महिलाएं और किशोर वय टलहती हैं। पार्क में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा हो गई है। बिना आरक्षण का लाभ लिए। भजन गाने वालियों की संख्या घट रही है, वे भी भजन के बाद टहलने लगी हैं लेकिन बाकी महिलाएं न केवल टहलती हैं बल्कि योग और व्यायाम भी करती हैं। इस नजारे को चाहें तो महिला सशक्तिकरण भी कह सकते हैं।
देखने के लिए यहां और भी बहुत कुछ है। कुछ लोग ट्रैक शूट में टहलने के लिए आते हैं तो बहुत से नर- नारी फैशन में सराबोर, मानो अभी-अभी ब्यूटी पार्लर से निकलकर आए हों। उनके बदन से बिखरती खुशबू सुंदर पुष्पों की खुशबू को भी शर्मिंदा कर देती है। रोज नए-नए कपड़े बदलकर आते हैं। होड़ सी लगी रहती है, कौन किससे आगे हैं।  हाथ में स्मार्ट फोन, रूमाल लेकर भी चलते हैं, साथ में ईयरफोन लगाकर संगीत का आनंद। कई ऐसे भी हैं जो यहां का सुंदर, रमणीय नजारा देखने आते हैं,  चक्षु तृप्ति और मधुर मिलने की लालसा लेकर आने वालों की भी कमी नहीं है। टहलने-वहलने में उनका ज्यादा यकीन नहीं हैं। टहलने के लिए कुछ लोग हाथ में रौल लेकर आते हैं। अब रास्ते में कुत्ते तो हैं नहींं, जिनसे बचने के लिए इसकी जरूरत पड़े। लेकिन रुतबा जमाने के लिए, लोगों से अलग दिखने  के लिए, हम हैं अधिकारी। कोई कोई उन्हें नमस्कार कर लेता है, शायद कोई काम पड़ जाए, पहचान लेगा तो आसानी से हो जाएगा। कुछ ऐसे  हैं जो पहचान कर भी अनजान बन जाते हैं, उनका सोचना भी सही है, बिना पैसे तो कोई काम करता नहीं है। जब पैसे ही देने हैं तो नमस्कार काहे की।  ज्यादातर लोग कारों में आते हैं।  सत्ता दल के लोग चाहें तो यहां के नजारे के फोटो छपवाकर दावे के साथ यह कह सकते हैं कि देखो ‘अच्छे दिन’ आने लगे।
वृद्ध महिलाओं की देखा-देखी पार्क के एक कमरे में वृद्धों की भजन मंडली जमती है।  ढोल मजीरों पर- ‘‘हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे..’’ की धुन घंटों गुंजायमान रहती है। ये लोग टिकट नहीं लेते, कहते हैं वे टहलने नहीं, भजन करने आए हैं। भजन के बाद वे फुटपाथ पर आसानी से चक्कर भी लगा लेते हैं। पार्क के  इंचार्ज इनके भी बाप हैं,  उन्होंने कुछ फर्जी टिकट छपवा रखी हंैं। इनके भी बाप है हैल्थ चेकअप करने वाले। लो भाई फ्री हैल्थ चेकअप कराओ। खूब भीड़ लग जाती है। एक-एक करके सबका वजन तौलते हुए बताते जाते हैं कि उनका वजन कितना बढ़ा हुआ है, क्या प्राबलम है। बहती गंगा में एक दिन मंैने भी हाथ धो लिए। मुझे ११ किलो वजन ज्यादा और कई समस्याएं बता दीं। मैं तो घबड़ा गया। मैंने कहा- ‘‘अभी तो वजन और खून की कमी के कारण अस्पताल में भर्ती रहकर आया हूं। तीन बोतल खून की चढ़ीं थी।’’  उन्होंने मेरी पूरी बात सुने ही बिना आदेश दिया-‘‘अस्पताल में आना, वहां वजन भी कम कर देंगे और फिट कर देंगे’’। अच्छी खासी फीस  भी बता दी। मैं तो गया नहीं लेकिन अस्पताल से आए दिन फोन आते रहते हैं कब आ रहे हो। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि यह फ्री हैल्थ चेकअप था या पैसे कमाने का धंधा?

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