रेलगाड़ी की सवारी

                
                           डा. सुरेंद्र सिंह
सवारी हो तो रेलगाड़ी की वरना पैदल या अपनी खटारा मोटर साइकिल ही भली। कहीं भी चले जाओ, बेरोकटोक।  रेलगाड़ी अपनी लेटलतीफी और एक्सीडेंटों के कारण बदनाम भले रही है। एक बार एक अखबार में कार्टून छपा-‘‘मानसून फिर लेट रेलगाड़ी की तरह’’। फिर भी रेलगाड़ी रेलगाड़ी है।
रेलगाड़ी केवल सवारी ही नहीं, यह पूरा जीवन दर्शन है। मुसीबत की साथी है, स्टेटस सिंबल है, रोजगार का माध्यम है। बेसहारों का सहारा है। कमाई का भी जरिया है। इसकी जितनी तारीफ की जाए, वह कम है। इसकी तारीफ में लिखना सूरज को दीपक दिखाना सरीखा है।
यह अपने समाज का असली आईना है। फर्स्ट क्लास में  बैठा  आदमी अपने को पुराने जमाने के किसी नबाव से कम नहीं समझता। एसी सेकंड क्लास के आदमी के भी नखरे होते हैं। एसी थर्ड क्लास  अपने सामने जनरल वालों को कुछ नहीं समझता, कीड़े मकोड़े की तरह। फर्स्ट क्लास, एसी सेकंड क्लास और थर्ड क्लास वाले गर्व के साथ ट्रेन से उतरते हैं। अपना सामान खुद नहीं उठाते, जबकि सेकंड क्लास टू टायर और थ्री टायर वाले निष्काम भाव से यात्रा करते हैं, ये कुली की सेवा तभी लेते हैं जबकि सामन उठाना उनके वश में नहीं हो।  जनरल बोगी में में यात्रा करने वाले रास्ते भर घड़ी देखते रहते हैं, कब आएगा स्टेशन, है भगवान! वे रेलगाड़ी से लुटे-पिटे से उतरते हैं। सामान, उनका वश चले तो कुली का भी उठाकर ले जाएं।
एक बार गुरूजी टेÑन से यात्रा कर रहे थे। रास्ते में ट्रेन दामादजी के शहर से गुजरनी थी। फोन कर दिया, रेलगाड़ी में खाना दे जाएं। वह सेकंड एसी में यात्रा कर रहे हैं। बेटी खुश, पिताजी अब एसी में यात्रा करते हैं। दामादजी और बेटी आए तो चुपके से निकट के एसी सेकंड क्लास में एक दोस्त के पास जा बैठे। रुतवा तो बना। खाना देकर जैसे ही वे बाहर खिसके, गुरूजी भी अपनी जगह सेकंड क्लास में आ गए।
एक प्रोफेसर साहब जब कहीं व्याख्यान देते तो  सत्य बोलने और नैतिकता की वकालत नहीं भूलते।  एक इंटरब्यू लेने किसी विश्वविद्यालय में गए। यात्रा सेकंड क्लास में की, किराया फर्स्ट क्लास का वसूल लिया। बड़े लोगों के यहां ऐसा चलता रहता है, रिवाज जैसा है।
जनरल के डिब्बे डिब्बे किसी अजायबघर से कम नहीं होते। जिसका टाइम पास नहीं हो रहा हो, उसे इसका आनंद जरूर लेना चाहिए। एक-एक कर सामान बेचने वाले आते रहेंगे। फिल्मी पत्रिकाओं से लेकर अंग्रेजी सिखाने और इलाज के घरेलू नुस्खों की  छोटी-छोटी किताबें, सिर दर्द से लेकर आंखों के सुरमे, दातों के पायरिया के शर्तिया इलाज की दवाएं बेचने वाले, छोले, नमकीन, गिरी के कच्चे गोले, पेड़े, पेठा, कपड़े सब कुछ है, एक-एक कर पूरा बाजार सामने गुजरता रहता है। बीच-बीच में गरमा-गरम चाय, खाने के पैकेट, कॉफी, कोल्डड्रिंक भी मिलती रहेगी। मनोरंजन के लिए नाचने-गाने वाले और धर्म-कर्म के लिए किसी भी धर्म के लोग आते-जाते रहेंगे।  कुछ लोग गाय की तरह सीधे-सीधे आएंगे, सीट खाली देखकर रिरियाएंगे,- ‘‘बाबूजी सी.. सीट खाली है? कुछ दबंग लोग सीना तानकर आएंगे, पहले से बैठी सवारियों को धकियाएंगे, -‘‘चल उठ, बहुत देर से बैठा है, अब  हमें बैठने दे’’। कुछ लोग आएंगे, आते ही टिकट चेक करना शुरू कर देंगे। -‘‘तुम दिखाओ, तुम दिखाओ, ये क्या देख रहा है, टिकट दिखा, टैम नहीं’’। सवारी देखती है यह तो टीटी साहब नहीं है। सब टिकट दिखाने लगे। -‘‘यह टिकट तो नकली हैं, कहां से लीं? -‘‘बाबूजी भागलपुर जाना है, अब कहीं नहीं जा सकते’’, -‘‘अगला स्टेशन आ रहा है, सब उतर जाना’’।  लोग गिड़गिड़ाने लगे, -‘‘बाबूजी कृपा करो’’।  बाबूजी को दया आ गई, -‘‘अच्छा तो सब सौ-सौ रुपये निकालो’’। सभी रुपये देते हैं। एकाध पैसे निकालने में देरी करता है तो उसे दो-चार जड़ दिए। बाकी सभी फटाफट दे देते हैं। -‘‘बाबूजी असली टिकट’’? -‘‘हम हैं तो चिंता क्यों करते हो’’। अगला स्टेशन आया तो उतरकर चल दिए।
जब रेलगाड़ी का इतिहास लिखा जाएगा, तब यह अंकित कर अंडर लाइन किया जाएगा कि इसका राजनीतिक विकास में भारी योगदान है। अंग्रेजी राज के पैर जमाने के लिए इसकी शुरुआत बेशक हुई, लेकिन भारतीय राजनीति को सुद्रढ़ करने में इसके कंट्रीब्यूशन को भुलाया नहीं जा सकता। तमाम नेता खासतौर से समाजवादी धारा के लोग रेलगाड़ियों में डब्ल्यूटी चलकर ही राजनीतिक ऊंचाइयों को छू सके। इसके जरिए ही वे विधान सभाओं और संसद में पहुंच सके। कोई भी आंदोलन हो, कितने भी आदमियों की भीड़ चाहिए, रेलगाड़ी जिंदाबाद।
देश के विकास के बाद अब जमाना बदला है। टिकट देने वाले बाहर से जांच करा लेते हैं, टिकटार्थी कौन सी बड़ी गाड़ी से आया है। रेलगाड़ी से आने वालों को दूर से टरका दिया जाता है। रेलगाड़ी से चलने वालों का अब राजनीति में कोई स्थान नहीं है। रेलगाड़ी अब केवल बड़ी-बड़ी रैलियों में बुक कराने के काम आने लगी हैं। बड़े नेता का यह पैमाना है कि उसने कितनी रेलगाड़ियां रैली के लिए बुक कराईं। किसी ने चार बोगियां बुक कराई, वह पिद्दी सा है। किसी ने दस पूरी की पूरी रेलगाड़ियां बुक कराई, वह कुछ जम सकता है। जो पचास-चालीस रेलगाड़ियां बुक कराए, वह राष्ट्रीय नेता बनने के काबिल है।



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