चलो एक-एक गाली हो जाए


‘‘-सारे ल्हौरे पड़ौ-पड़ौ खाट तोड़ि रह्यौ है, दीखतु नाहिं गूल में ते पानी फूटि रह्यौ है?’’
‘‘-दीखतु नाहिं जे मेहमान कब से पानी लगाहि रह्यौ है? अब ही पानी फूट्यौ है, तू का गौने से आई है, बंद कर दे। ’’
‘‘-अरे तेरी बहिनि है.....’’
‘‘-तेरी बहिनि की..... तेरी मां की....’’
‘‘-बहिनि के भो.....को, अबही उठैगो कै जूता खागौ’’
यह मेरे गांव के दो सगे भाइयों के बीच का सौहार्दपूर्वक वार्तालाप है। ऐसा आए दिन होता।  इसके बाद दोनों पास बैठते, साथ-साथ खाना खाते और घर के हालचाल पर चर्चा करते। ऐसा लगता जैसे इनके बीच कुछ हुआ ही नहीं हो।
पेंतीस साल हो गए गांव छोड़े। मुझे न तो डोल (मेला) पर मौसी द्वारा हर बार दिए जाने वाले चार आने याद हैं जिनसे उस वक्त पाव भर जलेबी आती थीं। न उस दोस्त की याद है तो अपनी मां से छुपाकर राब और शक्कर खिलाता था। और नहीं वह छुप्पा-छुप्पी खेल जिसमें गांव का एक चाचा जो हमेशा मुझे ही जिताता था। न अपना सगा चाचा जो पड़ोस के गांव का मेला दिखाने अपने बेटे को पैदल और मुझे कंधे पर बैठाकर ले जाता। लेकिन उन गालियों को मैं कभी नहीं भूल पाता जिन्हें सुनने के लिए भीड़ एकत्रित हो जाती, बहिन-बेटियां शर्म के मारे मुंह छुपाकर भागतीं।
गाली चीज ही ऐसी है। जो भुलाए से नहीं भूलती। प्यार से सम्मानपूर्वक कही गई कोई बात याद रहे न रहे लेकिन गालियां कभी विस्मृत नहीं होती हैं। वे ऐसे तीर की तरह हैं जो सीधे कलेजे पर चोट करती है और दिमाग पर अमिट निशान बना देती है।  गालियांं एक तरह से आत्मा के विरेचन का काम करती हैं, जिससे अनेक विकार शांत हो जाते हैं।  सारी खीज मिट जाती है। गाली एक तरह से तनाव और ब्लड प्रैशर कम करने की भी दवा है।
गालियों का रिवाज कब शुरू हुआ? इस पर तुलसीदास के जन्म की तरह विवाद हो सकता है लेकिन इसमें दो राय नहीं कि प्राचीनकाल में भी गालियों का महत्व था। शायद इसलिए इनके लिए अवसर तय कर दिए गए हैं, अब गालियां देना एक समृद्ध परंपरा है।। विवाह के शुभ अवसर पर औरतें पुरुषों को गालियों के रूप में गीत सुनाती हैं।  एक तब जबकि लड़के बाले दूल्हन ब्याहने जाते हैं तब लड़के के घर पर महिलाएं खोइया करती हैं। दूसरे लड़की बाले पक्ष की ओर से शादी होने के दूसरे दिन दावत के दौरान गालियां दी जाती हैं। यह ब्रज का रिवाज है।
मेरठ के आसपास गांवों में लोग आपस में बात करते हैं तो पूर्वी उत्तर प्रदेश वालों को महसूस होता है कि ये आपस में गालीगलौज कर रहे हैं। लेकिन पूर्वी उत्तर में गालीगलौज कोई कम नहीं है। गुजरात के लोग अलग तरह से गाली देते हैं, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के अलग तरह से। असभ्य और सभ्य समाज की  गालियां अलग-अलग होती हैं। गालियां कोई भारत में ही हो, ऐसा नहीं हैं, ये दुनिया भर में सर्वत्र हैं। ज्यादातर मुल्कों में गालियां यौन अंगों को लेकर ही दी जाती हैं।  इटली में सर्वाधिक दी जाने वाली गाली में ‘काज’ शब्द पुरुष यौन अंग है। वहां स्त्रियां भी बेझिझक इस शब्द के साथ गालियां देती हैं। फ्रांसीसी, अंग्रेजी में गालियों में जर्बदस्ती यौन संबंध बनाने के लिए कहा जाता है।
अपने यहां भांति-भांति की गालियां हैं। यौन अंगों से संबंधित गालियों के अलावा भी बहुत सी गालियां हैं। मेरे बाबा किसी को गाली देते तो उसे ‘काठ का उल्लू’ बोलते। लोकसभा और विधान सभाओं में भी गालीगलौज होती रहती है। आजादी से पहले आचार्य नरेंद्र देव ने ११ नवंबर १९३८ को संयुक्त प्रांत विधान सभा में अपने विपक्षियों को कुछ इस तरह से गाली दी-‘‘आप अपनी बेजाब्तियों से, नालाकियों और मजालिम से इस नतीजे पर पहुंचे हैं। ’’
आजादी के बाद भी गालियों में कोई कमी नहीं आई। बेशक अब गालियां देना अपराध है। हाल ही में फिरोजाबाद में पति-पत्नी को गालियां देकर बेइज्जत करने और मारपीट के मामले में तीन भाइयों समेत चार लोगों को छह-छह माह की सजा सुनाई गई है। लड़कियां लड़कों को और बच्चे बूढ़ों को गालियां देने लगे हैं। गालियों को लेकर फौजदारियां तक हो जाती हैं। फिर भी साहित्यकार, संत और जाने-माने नेता गालियां देने में किसी से पीछे नहीं है। राही मासूम रजा ने अपने चर्चित उपन्यास ‘आधा गांव‘ में भरपूर गालियों का इस्तेमाल किया है। यूं श्रीलाल शुक्ल और हरिशंकर परसाई भी गालियों से परहेज नहीं करते। लेकिन रजा का नंबर पहला है।  योगगुरू बाबा रामदेव इस मामले में सारे संतों में शिरोमणि हैं।  उदाहरण के तौर पर २०१४ के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने एक स्थान पर कहा- ‘‘राहुल हनीमून और पिकनिक के लिए दलितों के घर जाते हैं।’’ मामले में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। बाद में उन्होंने इसके लिए माफी भी मांग ली ।
नरेंद्र मोदी द्वारा राहुल को ‘‘साहबजादा’’ और सोनिया गांधी द्वारा मोदी को ‘‘मौत के सौदागर’’ कहना भी इसी श्रेणी में माना जाएगा। अब भाजपा नेत्री और केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने दिल्ली में एक जन सभा में यहकर सभी को पीछे छोड़ दिया है-‘‘रामजादों और हरामजादों में से एक को चुनना है’’। इसके कारण साध्वी निरंजन ज्योति की ही सर्वत्र चर्चा है। लोग उनसे मिलते हैं तो श्रद्धा से हाथ जोड़कर उन्हें उनके बोलों के लिए बधाई देते हैँ। उनके बोलों ने संसद तक कई दिनों तक हिलाए रखा। भाजपा नेता गिरिराज सिंह नेता अपनी गालियों के लिए मशहूर हैं। इस कारण लोकसभा चुनाव के दौरान उनके खिलाफ न केवल एफआईआर दर्ज कराई गई बल्कि उनके खिलाफ वारंट भी निकला। सरकार बनी तो उन्हें राज्य मंत्री पद से नवाजा गया। लोगबाग कहते हैं कि उन्हें गालियों का पुरस्कार मिला है।  अब भी यदि बाकी नेता गालियों के महत्व को नहीं समझ संसदीय भाषा में बोलते हैं तो बोलते रहिए, अखबार वाले तो सुर्खियों में असंसदीय भाषा यानि गालियों को ही रखते हैं और पब्लिक भी उन्हीं की जय-जयकार करती है।

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