इनकी तो जैसे-तैसे कट जाएगी...


डा. सुरेंद्र सिंह
लोग खामखां आजम खां के पीछे पड़े हैं, राजनीति के ऐसे शूरवीर योद्धा गिने-चुने और युगों-युगों में होते हैं। ढूढ़ो, एक भी मिल जाए, पूरी सपा में सिर्फ एक, इसलिए पार्टी इनके सामने दम साधे खड़ी रहती है। यह अकेला ऐसा बंदा है जो अरबों पर भारी है। एक तरफ सारे राजनीतिज्ञों की फौज खड़ी कर दो, बड़े-बड़े काबिल धुरंधरों को कतार में लगा दो, चाहे जितनी भी साजिश कर लो, जीत शर्तिया आजम की ही होगी, ‘अशोका’ के अशोक की तरह।
मीडया  आजम के पीछे ऐसे चलता है जैसे..... क्वार में कुत्ते। सूंघते रहते हैं, कब कहां जा रहे हो जनाब। लाख उनको गाली दे लो-‘मीडिया धंधेबाज है, धंधा चलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है’।  फिर भी सबको आजम खां ही चाहिए। आजम खां में ही वह काबिलियत है जो मुर्दे को जिंदा कर सकती है। उसी में वह हुनर है जो पहले पेज पर छा सकता है। वही बहस चलवा सकता है, वही बयान के लिए मुद्दा दे सकता है। इसलिए चतुर से चतुर रिपोर्टर लगाए जाते हैं। बयान टेप कराए जाते हैं। ताकि एक भी शब्द मिस नहीं हो।
उन्हीं में यह हिम्मत है, वही कह सकते हैं- ‘हमारी बीबी क्लब नहीं जा सकतीं, उनकी दोस्त नहीं होंती, इसलिए होते हैं ज्यादा बच्चे’। वह ही यह छक्का मार सकते हैं-‘कोई पनाह दे तो देश छोड़ने तैयार हूं’। उनकी जुबान से निकला तीर यूपी ही नहीं, देश की सीमा को क्रास कर सात समंदर पार तक जाता है।
चाहे भाजपा के सहयोगी योगगुरू बाबा रामदेव हों, केंद्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह या भाजपा नेता साक्षी महाराज, बेशक उनकी खूब तूती बोलती है पार्टी के भारीभरकम नेता माने जाते हैं, खास मौके पर ये बुलाकर लगाए जाते हैं लेकिन आजम खां के सामने ये सभी पानी भरते से नजर आते हैं।  कहां से लाओगे ऐसे बयान-‘अमित शाह गुंडा नंबर वन हैं’। ‘ताजमहल और उससे होने वाली आय वक्फबोर्ड को सौंप दी जाए’। ‘कारगिल युद्ध में भारत की जीत हिंदू नही, मुसलिम सैनिकों के कारण हुई थी’। ‘बादशाह के लिए क्या कहें, उनके कपड़े तक बिक गए। बादशाह के कपड़े भूमाफिया ले गए, उनकी नजरें किसानों की जमीन पर हैं’। ‘मायावती खुद सबसे बड़ी गुंडी हैं’ आदि-आदि। उनके बोलों की श्रृंखला इतनी लंबी है कि महाकाव्य लिखा जा सकता है।
आजम खां जहां-जहां जाते हैं, नई रोशनी लाते हैं। कुछ नहीं हो कहने को तो धक्के को ही सुर्खियां बना देते हैं, एयरपोर्ट की जांच-पड़ताल को वैश्विक मुद्दा बना देते हैं। बहुत से नेता धक्के खाते फिरते हैं,  कुछ भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं कार्यकर्ताओं को सिखा पढ़ाकर लगाते हैं, धक्के लगने की पोजीशन बनवाओ ताकि टिकट के नाम पर धक्का नहीं लगे।
अब सवाल यह भी उठ सकता है कि आजम खां कौन सी चक्की का पिसा आटा खाते हैं, कितना घी पीते हैं, जिनके कारण उनकी ‘सरस्वती’ रूपी जिभ्या से ‘अमृत वाणी’ बरसती रहती है। बीजेपी में ऐसा नेता होता तो जरूर कैबिनेट में होता। चाहे तो कह सकते हैं कि वे अपनी अपनी भैंसों का दूध पीते हैं। ‘ क्वीन विक्टोरिया से कम नहीं हैं, उनकी भैंसें’।  देखिए जमाना बदल गया है, अमृत वाणी वह नहीं है जो विज्ञापन के जरिए अक्सर टीवी चैनलों पर आती है, अमृतवाणी वह है जो एक ही झटके में पूरे देश और दुनिया में फैलकर तहलका मचा देती है।  छूटे बम की तरह घनघोर गर्जना कर सबको स्तब्ध कर देती है। उसे भुलाए नहीं भूला जा सकता।  वह रहें चाहे बरेली, लखनऊ या और कहीं लेकिन उनकी तूती केंद्र की कुर्सी के ऊपर मड़राती है।
 आजम खां चाहें तो राजनीति से रिटायरमेंट के बाद राजनीति के लिए प्रशिक्षण केंद्र चला सकते हैं। कोई उनकी वाणी पर शोध कर सकता है, रामपुर के मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री मिल जाएगी। जो नौजवान राजनीति में नए-नए कदम रख रहे हैं वे उनसे सबक ले सकते हैं वरना चक्की पीसते उम्र निकल जाएगी।  और जिनकी राजनीति में चलते-चलते चप्पलें घिस गई हैं, लेकिन सफलता अभी तक नहीं मिली, वे इनसे नुस्खे ले सकते हैं।
लेकिन चिंता की एक बात है, आजम खां को लेकर दूसरे दलों के नेताओं की तो जैसे-तैसे कट जाएगी लेकिन ये सपा वाले क्या करेंगे। ये टापते रह जाएंगे, आजम बाजी मार ले जाएंगे, इसलिए समय रहते कुछ करो, अभी समय है।

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