कैलाश वाजपेयी का जाना

      हिंदी के जाने-माने साहित्यकार कैलाश वाजपेयी का जाना कोई ऐसा जाना नहीं है। यूं तो हर किसी के जाने का दु:ख होता है और कुछ दिन बाद ही लोग उसे भुला देते हैं लेकिन वाजपेयी को आसानी से भुलाया नहीं जा सकेगा। उनकी हिंदी की ३४ साहित्यिक रचनाएं लोगों को सालों साल गुदगुदाती रहेंगी, सोचने और विचारने  के नए आयाम देती रहेंगी।
यों तो वाजयेपी को भारतीय संस्कृति का चितेरा माना जाता है, कहा जाता है कि भारतीय संस्कृति की उन्हें जितनी गहरी समझ थी, उतने कम ही लोगों में होती है। लेकिन वह केवल भारतीय संस्कृति तक ही सीमित नहीं थे। उनका व्यक्तित्व  बहुआयामी था। वह विश्व संस्कृति और उसकी विविधाओं, वर्तमान और भविष्य के आर-पार देख सकते थे। ‘शब्द संसार’ उनकी ऐसी रचना है, जिसमें दुनिया के जाने-माने साहित्यकार  औक्टोवियो, पाल, पीटर स्मिथ,  फ्रांसिस फुसफुसाया की पिछले १०-१२ वर्षों की रचनाओं और उनके विचारों का विवेचन किया है। उन्हीं के शब्दों में-‘‘तेजी से बदल रहे इस युग में मनुष्य को एक ओर तो तरहृ-तरह की उपलब्धियों का आश्वासन दिया जा रहा है, वहीं संवेदना के स्तर पर तार-तार कर दिया है’’। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित उनका यह निबंध संग्रह दुनिया को उनकी दृष्टि से समझने का एक आईना है।
वाजपेयी को मूलत: कवि माना जाता है। नई कविता के आंदोलनों का सशक्त कवि। उनकी कविता काव्य के भाव और शिल्प में परिवर्तन का पैमाना है।  ‘तीसरा अंधेरा’, ‘महास्वप्न का मध्यांतर’, ‘भविष्य घट रहा है’, ‘सूफीनामा’, ‘हवा में हस्ताक्षर’, ‘सक्रांत’ आदि उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं।  ‘ऐसा कुछ नहीं’ कविता की कुछ पंक्तियां-
‘‘ऐसा कुछ नहीं जिंदगी में
कि हर जाने वाले की अर्थी पर रोया जाए
कांटो बीच उसी डाली पर कल
जागी थी कोमल चिंगारी
वो कब खिली कब मुरझायी
याद न ये रख पायी फुलवारी’’
उनकी एक कविता में दर्द है, बेचारगी है, वितृष्णा है। उनकी कविताएं देश काल से प्रतिबद्ध होते हुए भी उससे परे प्रतीत होती हैं। उनका क्षोभ अतिरंजित होने पर भी यथार्थ के निकट है। ‘देहांत से हटकर’ में ‘संक्रांत’ से बेहतर भावभूमि है। संक्रांत की कविताओं में झूठा आक्रोश प्रतीत होता है, वह बहुत कुछ इसमें नहीं दिखता।
उनकी ‘मृत्यु लेख’ और ‘नया राष्ट्रगीत’ में सबसे सशक्त रचनाएं हैं। ‘नया राष्ट्रगीत’ की कुछ पंक्तियां-
‘‘दुनिया एक फफूदियाई हुई चीज हो गई है
दुनिया एक बजबजाती सी हुई चीज हो गई है’’।
कवि ने तेजी से बदलती स्थितियों, नैतिक मूल्यों के ह्रास, स्वार्थपरता पर इसके माध्यम से गहरी चोट की है। काव्य में नए-नए प्रतिमानों का प्रयोग किया है। उनकी कविता की भावभूमि में भी उत्तरोत्तर विकास हुआ। उनकी कल्पनाएं यथार्थ की कल्पना से आगे बढ़कर आध्यात्मिकता पर आकर टिकती हैं।
वह केवल कवि होने तक सीमित नहीं रहे। उन्हंोंने कबीर, सूरदास, जे. कृष्णामूर्ति, रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर दूरदर्शन के लिए फिल्में भी बनाईं। यही नहीं ‘युवा संन्यासी’ के नाम से स्वामी विवेकानंद के जीवन पर दूरदर्शन के लिए नाटक तैयार किया। उनकी रचनाएं  अंग्रेजी, स्पैनिश और जर्मन भाषाओं में अनुवादित की गई हैं।
११ नवंबर १९३४ को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में जन्मे कैलाश वाजपेयी ने गांव की मिट्टी से निकलकर दुनिया भर में अपना प्रकाश फैलाया और दिल्ली के साकेत स्थित मैट्रो हास्पिटल में एक अप्रैल को अपनी जीवन यात्रा पूरी की। उन्हें जीवन में अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले। जिनमें से साहित्य अकादमी सम्मान के लिए वह सर्वसम्मति से चुने गए। इसके अलावा एसएम मिलेनियम अवार्ड, व्यास सम्मान, ह्यूमैन केयर ट्रस्ट अवार्ड शामिल हैं।

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