नेताजी हैं न (२)

            डा. सुरेंद्र सिंह
नेताजी की अपनी स्टाइल है। सब कुछ स्टाइल से करते हैं, खाना भी स्टाइल से खाते हैं, पानी भी स्टाइल से पीते हैं। कार्यकर्ताओं से बात करने की भी स्टाइल है, -‘‘अरे क्या हो रहा है मेरे शेर’’। तेरे पर मुझे बहुत नाज है। तू इस पार्टी के लिए होनहार बनेगा’’। -‘‘नेताजी आपकी कृपा के बिना कुछ नहीं हो सकता’’। -‘‘चिंता क्यों करता है, हम हैं न। तुम्हारा ख्याल नहीं रखेंगे तो किसका रखेंगे?  -अब जरा उधर चलो’’। दूसरे को बुलाकर-‘‘तू तो मेरा शेर है। तेरे पर मुझे बहुत भरोसा है ’’। -‘‘नेताजी आपका सेवक हूं। पढ़ा्ईृ-लिखाई छोड़ आपकी ही सेवा में हूं’’। -‘‘क्यों चिंता करता है। हम हैं न। नौकरी में क्या रखा है, हमारे साथ रह। जिंदगी बदल जाएगी।’’  जंगल में एक ही शेर रहता है लेकिन नेताजी ने जाने कितने शेर पाल रखे हैं, वही जानें।
डाक्टर के यहां भीड़ लगी है, मरीजों की। कई की हालत गंभीर है। कोई-कोई पंखा झल रहे हैं, मरीज को कुछ तो आराम मिले। कोई-कोई मरीज को सांत्वना दे रहा है वश, अब नंबर आने ही वाला है। कोई मोबाइल फोन पर टाइम देखकर कोस रहा है कि साला... तीन घंटे हो गए अभी तक नंबर नहीं है। कोई-कोई घंटों से अपने नंबर के इंतजार में बैठा है, अभी तो ३५वां नंबर चल रहा है, ६९ वां नंबर आने में अभी एक घंटा और लग सकता है। । एकाध होशियार कंपाउंडर के पास जाकर उसके कान में जुगाड़ लगाने की फिराक में है ताकि नंबर से पहले मरीज को दिखा घर के दूसरे काम कर सके। अचानक विषमता पार्टी के लोग तीन-चार गाड़ियों से दनादन उतरते हैं जैसे पुराने जमाने में डकैत, बिना किसी को बताए धम्म से। । कई के हाथ में बंदूक, राइफलें हैं, कमर में रिवाल्वर लगी हंै । उनसें से एक छुटभैय्या गेट को धक्का मार और मरीजों को धकियाते हुए अंदर जाता है-, ‘‘नेताजी आए हंै’’। बाकी बाहर खड़े हो जाते हैं मोर्चा लेने की शक्ल में। उनमें से कुछ एक मरीजों को ऐसे घूरते हैं जैसे ये निरीह प्राणी हों। नेताजी के पहुंचते ही डाक्टर साहब कुर्सी से ऐसे उठ खड़े होते हैं जैसे कोई बवाल आ गया, जो मरीज देखे जा रहे थे, वे सभी बाहर। अब थोड़ी देर में आना।  नेताजी का फुलचेकअप जिसकी जरूरत नहीं है, उसका भी चेकअप। चाय पिलाई। इधर-उधर की हांकी फिर नेताजी यह कहते चल दिए- ‘‘डाक्टर साहब कोई चिंता मत करना, हम हैं ना’’। फीस देने का तो सवाल ही नहीं उठता, वश चले तो चंदे के नाम पर और ले लें।

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