अब तो जग जाइए

      
            डा. सुरेंद्र सिंह
अब किसका इंतजार है। खतरा बहुत निकट आ गया है। ताजा भूकंप ने  उन स्थानों पर भी तबाही मचाई है, जहां पहले ऐसा नहीं हुआ। भूकंप का इतिहास कभी दोहराता है तो कभी नहीं। इसलिए अब तो बनाइए भूकंपरोधी भवन। इसके लिए अब इंतजार किसका?
जाहिर है कि प्रकृति के बहुत से रहस्यों की तरह भूकंप भी अभी अबूझ पहेली की तरह है। इसकी न भविष्यवाणी संभव है और न इससे होने वाले नुकसान का आकलन। भूकंप रोज आते हैं, हर मिनट पर आते हैँ। बहुत से भूकंप चुपचाप गुजर जाते हैं बहुत से भूकंप तबाही मचा देते हैं। इस तरह भूकंप कब कहां आएगा, यह कोई नहीं जानता।
१९९१ में उत्तरकाशी में आए भूकंप से ४२४०० मकान ढहे। इसने उत्तर भारत के लोगों का कुछ ध्यान खींचा। इसके बाद गुजरात के कच्छ क्षेत्र में १६ जनवरी २००१ को सुबह ८.४५ पर ७.७ रिक्टर पैमाने पर आए भूकंप ने हमें जगाया। इसमें २० हजार लोगों की जानें गई, करीब चार लाख लोग मरे।
इसके बाद ध्यान आया कि हमें भूकंपरोधी भवन बनाने चाहिए। तब महानगरों में भूकंपरोधी भवन बनाने के लिए इंजीनियरों को प्रशिक्षण दिए गए। बड़े अधिकारियों ने फालतू बैठे इंजीनियरों को प्रशिक्षण दिलाकर अपना पल्ला झाड़ लिया। इन इंजीनियरों ने भी बेगार जैसी टाली। कमाई के लिए दूसरे लोग और फालतू के काम के लिए हम? उन्होंने मन से प्रशिक्षण नहीं लिया। सरकारी मकानों के सर्वे भी कराए गए। शायद ही कोई भवन ऐसा नहीं मिला जो भूकंप सहन करने की क्षमता रखता हो। दूसरे तमाम कागजी प्रशिक्षणों की तरह कुछ राजमिस्त्रियों को भूकंप रोधी प्रशिक्षण दिला कर कागजी खानापूरी कर ली गई। इसके लिए जो धनराशि आई, वह हंसीखुशी ठिकाने लग गई।
तब से इतने साल हो गए। प्रशिक्षण प्राप्त इंजीनियरों में से ज्यादातर रिटायर हो गए। जो बचे हैं वे तकनीक को ही भूल गए। नये इंजीनियरों की पढ़ाई में यह तकनीक शामिल है लेकिन भूकंपरोधी भवन नहीं बनाए जा रहे। यह प्रावधान जरूर किया गया कि बहुमंजिली इमारतों के मानचित्र भूकंपरोधी तकनीक के साथ स्वीकृत किये जाएं। सो भूकंपरोधी स्ट्रक्चरल डिजाइन के साथ मानचित्र तो पास हो रहे हैं, लेकिन केवल मानचित्र ही पास हो रहे हैं, भवन नहीं बन रहे। यह सबको पता है। किसको धोखा दे रहे हैं? यदि उत्तरकाशी में आए भूकंप के बाद यह सजगता बरती गई होती तो भुज की तबाही को कम किया जा सकता था। यदि भुज से ठीक प्रकार से सबक लिया गया तो अब नेपाल और भारत में हुई तबाही को कम किया जा सकता । २५ और २६ अप्रैल को आए भूकंप से नेपाल में चार हजार से ज्यादा और भारत में १६० लोगों की जानें ले ली हैं। मकानों में क्षति इससे कई गुना ज्यादा हुई है।
ठीक है भूकंपरोधी तकनीक महंगी है लेकिन आदमी की जाने से ज्यादा तो नहीं। फिर सस्ती तकनीक भी तो बनाई जा सकती है।
एक अखबार के अनुसार आगरा भूकंप से तीसरे जोन में है लेकिन ताजा भूकंप चौथे जोन का यानि तेज गति से आया है। कहते हैं चार-पांच सौ साल पहले आगरा भूकंप से तबाह हो गया था। मौजूदा आगरा नया बसा है। जाहिर है कि जोनों के निर्धारण भी सही नहीं हो सकते।  कब कहां कितनी तीव्रता से भूकंप आएगा, यह भगवान भरोसे है। इसलिए सावधानी हर जगह बरती जानी चाहिए। अब तो फिर से जग जाना चाहिए।
   
   
      

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