वर्षा रानी बड़ी सयानी

         
       डा. सुरेंद्र सिंह
बेमौसम जब कोई सब्जी आती है तो उसकी कद्र बहुत ज्यादा होती है। बरसात के दिनों में लौकी  फिकी-फिकी फिरती है, जानवर तक सूंघ कर हट जाते हैं। वही लौकी सर्दियों में ६०-७० रुपये किलो तक बिक जाती है। लोग पड़ोस में बताते फिरते हैं आज तो लौकी बनी है। बहुत से लोगों को बेमौसम तरकारी ज्यादा भाती है, इसकी शान ही अलग है। चाहें तो इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार इसके आधार पर सवाल कर सकते हैं कि बेमौसम बरसात के लिए इतनी हायतौबा क्यों? ‘समरथ को नाहिं दोष गुसाईं’।
 वर्षा वर्षा है। देवी की तरह इसके भी रूप अनेक हैं। वर्षा जीवन है, अमृत है, अर्थव्यवस्था है, प्राणों का संचार है, खजाना है। तकलीफ है, मौत भी है। यह होनी भी चाहिए और नहंीं होनी चाहिए। यह हंसाती है, सरसाती है, सुख देती है, दु:ख देती है, रुलाती भी है। यह आबाद करती है, बरबाद कर देती है।
वर्षा सतत परिवर्तनशील है, कहीं-कहीं रात-दिन होती है,  कहीं-कहीं सपने की तरह आती है। कहीं-कहीं कायदे कानून से आती हैं तो अनेक जगह कायदे कानून तोड़ती रहती है। इसका न कोई नियम है और न ईमानधरम। यह निष्ठुर है, इसे किसी के प्रति दया नहीं है, जो इनके ही सहारे रहते हैं और जो इसकी कोई परवाह नहीं करते। 
वर्षा समदर्शी है। किसी में अतर नहीं करती। न  छोटे, न बड़े में, न बीमार में और न स्वस्थ में। न गांव में, न शहर में। न किसी राज्य और देश विशेष में। न जीव में और नहीं जंतु और वनस्पति में। इसके लिए स्थावर-जंगम सब एक समान हैं। इसकी कोई सीमा नहीं है। यह धरती और आकाश में समान रूप से बरसती है।
यह देवता है, ऐसे ही जैसे सूर्य, वायु, अग्नि आदि। इसे खुश करने के लिए पूजन करते हैं और इसे रोकने के लिए भी टोना टोटके अपनाते हैं। इस सबके बावजूद यह अबूझ पहेली है। विज्ञान ने इसे समझने के लिए बहुतेरे प्रयास किए हैं, प्रयास जारी हैं,ं लेकिन यह अभी भी समझ से परे हैं। इसकी भविष्यवाणी के तमाम पैरामीटर बदलने के बावजूद इसकी कोई ऐसी भविष्यवाणी संभव नहीं है जिससे नुकसान को रोका जा सके। यह एक ऐसे पागल हाथी की तरह है जो जिधर चाहे उधर रौंदती ही जाती है।
यह अपने मन की मालिक खुद है। मदमस्त है। बेफिक्र है। किसी खुश है तो किसी से नाखुश। कोई मरे, कोई जिए, कोई खुश हो, दु:खी हो, परेशान हो, पागल हो जाए, इस पर कोई असर नहीं है। यह लोकतंत्र की तरह है,जिसमें कुछ भी करने से कुछ का ही भला होता है, बाकी का भला नहीं होता तो बुरा भी नहीं होता। लेकिन बहुतों का बुरा ही होता है।
वर्षा एक ऐसे राजनीतिक दल की तरह है जो बिना वोटर की राय जाने उसके ऊपर फैसला थोप देती है। बिना यह देखे कि वोटर के पास फुर्सत है या नहीं चाहे जब उसके गण पास आ धमकते हैं। यह ऐसे अधिकारी की तरह है, जो बिना लोगों की तकलीफ समझे, बिना उनकी जरूरत समझे उनके लिए फैसला करता है। यह न ऊपर के कानून को ठीक से  मानती है और नीचे के। यह सभी को एक ही डंडे से हांकती है।
वर्षा ऐसे अनाड़ी खिलाड़ी की तरह है जो न तो गेंद को ठीक संभाल पाता है और नहीं बल्ले का सही इस्तेमाल करना जानता है। यह ऐसे डाक्टर की तरह है जो सभी को अलग-अलग बीमारी होने पर भी एक ही प्रकार की दबा देता है। नाम भगवान का लेता है और काम खुद करता है। यह ऐसी मशीन है जो चाहे जब चल उठती है, चाहे जब बंद हो जाती है। यह चलाने वालों के भी हाथ काटने में संकोच नहीं करती।
यह रंगबिरंगी दुनिया की तरह है, जो कहीं किसी रूप में दिखती है और कहीं किसी रूप में। कहीं किसी भाषा में बोलती है तो कहीं किसी भाषा में। कहीं किसी भेष में रहती है तो कहीं किसी रूप में। कहीं किसी तरह रहती है तो कहीं किसी तरह। कहीं खुशहाली लाती है तो कहीं तरसा-तरसा कर रखती है।  यह कवियों की प्रिय रही है। इसके बिना किसी बड़े कवि की साधना सफल नहीं हो सकी है, चाहे कालिदास हो, तुलसीदास या अ्न्य कोई दास। चाहे नायिका भेद हो चाहे षटऋतु वर्णन, इसकी तूती हर जगह बोलती रही है।
यह और भी बहुत कुछ है। यह किसानों की प्रिय सहचरी है तो उनकी दुश्मन नंबर वन भी। इसके जितने गुण हैं, उतने ही अवगुण भी। इसकी जितनी प्रशंसा की जा सकती, उतनी बुराई है। इसके कारण फिलहाल फसल बरबाद होने पर उत्तरभारत के किसान जान दे रहे हैं, लेकिन यह बेफिक्र होकर ईलू-ईलू करती नाच रही है।  कोई इस निर्व्दंव्द की नाक की नकेल कस सके।
        

Comments

  1. वर्षा भारत के लि‍ये नि‍यामत है।दुभागय से अपनी खेती के लि‍ये लाभकारी साबि‍त होने वाले पानी का प्रबंधन अब तक नहीं कर सके।1940 से 1982 तक जरूर जलप्रबधन के लि‍ये कुछ करने की इच्‍छा शक्‍ति‍ रखने वाले राजनीति‍ में भी भागीदरी रखते थे ।इसके बाद तो लोग आये हैं जि‍नका वर्षा जल और नदी प्रंबंधन से कोई लेना देना नहीं है केवल उन ठेकों से ही मतलब है जो कि‍ सि‍चाई वि‍भाग उठाता है।अगर मौका मि‍ले तो अपर गंगा नहर को बनाये जाने की पूरी कहानी पढे।इसी प्रकार ताजेवाला हैडवकर्स को बनाने का सौ साल पुरानी प्रोसीडि‍ंग पढे।ताजेवाला का तो जब से पंजाब से अलग होकर हरि‍याणा बना है पूरा का पूरा पैसा ही राज्‍य के राजनीति‍ज्ञ खाते रहे है।फलस्‍वरूप ईस्‍टर्न और वैस्‍टर्न यमुना केनाल वाला यह डैम बठ गया और केन्‍द्र सरकार को हथनी कुंड बैराज बनवाने के लि‍ये वि‍देशी कर्ज से हरि‍याणा को धन उपलब्‍ध करवाना पडा।हाल में ही देखने का मौका मि‍ला इस नये बने बैराज के अनुरक्षण के काम को भी नदारत पाया।यही रहा तो अगले 25 साल में तीसरे डैम को बनवाने की नौबत आ जायेगी।
    जहां तक खेतों का वर्षाजल से बचाने की बात है,अगर जल नि‍कासी के लि‍ये पुराने बने हुए नालों को ही लोकल कैचमेट एि‍रया के हि‍साब से रि‍मौड्यूल कर दि‍या जाये तो गैर मानसूनी वर्षा के पानी का तो मानसून काल के पानी से कही अधि‍क उपयोग है।कमांड एरि‍य के अलावा खेतों को जल नि‍कासी उपयुक्‍त और जलठहराव रहि‍त बनाना अब पहले की तुलना में कही आसान और सस्‍ता है।एस्‍केवेटर और जेसी बी मशीनों के उपयोग से एक दम काया पलट हो सकती है।लेकि‍न जि‍ला प्‍लान में माईक्रो लैड र्रि‍फार्म प्‍लानि‍ग को शामि‍ल करना होगा।उपरोक्‍त प्रयोग नये नहीं हैं पूर्व मैसूर रि‍यासत जो कि‍ अब कर्नाटक का भाग है में हुऐ हैं।सर वि‍श्‍व सरैय्या की मेहनत इनके पीछे रही थी।हालांकि‍ कर्नाटक इरीगेशन वि‍भाग भी पुरान इरीगेशन इस्‍ट्रैकचरों के साथ न्‍याय नहीं कर सका।देव गोडा और बोमई सरकारों के काल में तो कर्नाटक के खेती के प्रोजेक्‍टों को ही सबसे अधि‍क क्षति‍ पहुंची थी।

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  2. वर्षा सबके लिये ज़रूरी है इसमें कोई शक नहीं.. ये किसी में भेदभाव नहीं करती ये भी सत्य है. ये हर जगह बरसना चाहती है. लेकिन.... मानव ने यहां भी टांग अढ़ा दी है. जिस तरह टीवी के सिग्नल सही तरह से आने के लिए एंटेना सही होना ज़रूरी है. उसी तरह सही बारिश के लिए जंगल होना ज़रूरी है. वृक्ष बारिश के लिए एंटेना का काम करते हैं. वो बारिश को आकर्षित करते हैं. लेकिन मनुष्य ने प्रकृति के ये एंटेना काट डाले... परिणाम.... कहीं बारिश नहीं तो कहीं इतनी की सैलाब आ रहा... अब अगर पेड़ हों तो वो इस सैलाब को रोकें.. लेकिन वो हैं ही नहीं जिसका नतीजा महाविनाश के रूप में अक्सर सामने आता रहता है...

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