हनीमून से हनीमून तक

          डा. सुरेंद्र सिंह
ये अपने बाबा रामदेव भी क्या खूब हैं। या तो इन्हें याद नहीं रहता कि पहले उन्होंने किसी से क्या कहा था या फिर वह अपनी बात पर स्थिर नहीं रहते।  कभी कुछ कहते हैं तो कभी कुछ, पल में राई पल में पहाड़।  या फिर इन्हें किसी की परवाह नहीं, उनकी बला से। ये तो ‘मस्त मस्त हैं मस्त’।
बीजेपी वाले जरूर सूंघ रहे होगे कि बाबा को क्या सांप सूंघ गया है सो इस उम्र में बहकी-बहती बात कर रहे हैं। साठ बरस के तो नहीं हुए पर सठिया गए हैं क्या? वरना यह कहने की क्या सूझी थी-‘‘राहुल विपक्ष का नेतृत्व करें, विपक्ष न हो तो सत्ता निरंकुश होती है।..इसलिए अब उन्हें पार्टी की कमान सौंप देनी चाहिए’’। या फिर वह यह सब जानबूझ कह रहे हैं कि ताकि कमजोर के हाथ में विपक्ष की बागडोर रहेगी तो विपक्ष कायदे से पनप ही नहीं पाएगा। मोदीजी निदर््वंद्व होकर राज कर सकेंगे।
कुछ न कुछ ‘दाल में काला’ जरूर है, पूरी दाल भी काली हो सकती है वरना ऐसा नहीं हो सकता कि धरती और आसमान एक हो जाएं। कांग्रेस वालों ने बाबा के साथ क्या-क्या सलूक नहीं किया- ‘मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए’। यह वही कांग्रेस है जिसकी सरकार ने उन्हें  ४ जून २०११ को रामलीला मैदान के सत्याग्रह में जनानी वस्त्र पहनने पर मजबूर कर दिया था। तब बाबा ने यह तोहमत लगाई थी कि यह सरकार उन्हें मार देना चाहती थी। एफआईआर दर्ज हुई। कांग्रेस की ही सरकार के रहते बाबा के खिलाफ सीबीआई समेत अनेक जांच हुई, मुकदमे भी दर्ज हुए।  क्या बाबा यह सब भूल गए? ये बाबा उन बाबाओं में से नहीं हैं ‘जो दे उसका भला, जो न दे उसका भी भला’। हजारों करोड़ का कारोबार है। सभी सुविधाओं से सुसज्जित हैं, आपको भले ही लौकी ज्यूस पीने की सलाह दें लेकिन अपुन..
यह पता करने की बहुत जरूरत है कि राहुल के प्रति ही अचानक उनका प्रेम क्यों उमड़ा। मुलायम सिंह यादव के प्रति क्यों नहीं? जबकि उन्होंने तो अपनी सरकार के रहते बाबा को हरिद्वार में मुफ्त में काफी जमीन देने की घोषणा की थी। अब वह पुनर्जीवित जनता दल के नवनियुक्त अध्यक्ष भी हैं। पूरे देश की इस वक्त उन पर निगाहें हैं। 
कोई न कोई गहरी बात जरूर है,  कुछ तो है जिससे बाबा का हृदय बदला है। बाबा कोेरे योगी और कोरे संत नहीं, वह राजनीतिज्ञ भी हैं। याद होगा कि उन्होंने मोदी को समर्थन ऐसे-वैसे नहीं दिया, अपनी शर्तो के साथ खूब ठोंक बजाकर सबके सामने दिया ताकि वायदे से मुकर नहीं सकें। मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए उन्हंोंने दिन-रात एक कर दी। उन्हीं को ही बल प्रदान करने उन्होंने अप्रैल २०१४ में कहा था- ‘‘राहुल दलितों के घरों पर हनीमून और पिकनिक मनाने जाते हैं’’। मामले में उनके खिलाफ एफआईआर हुई। बयान से भी पलटना पड़ा।
ये वही बाबा हैं जिन्होंने कालेधन के खिलाफ देश भर में अभियान चलाया। इसके बाद मोदी ही सरकार भी बनी और अब उसे बने दस माह से ज्यादा भी हो गए हैं। अब मोदी बाबा की आर्थिक नीति से देश चला रहे हैं या अपनी नीति से? यह बाबा जानें या फिर मोदी? या फिर बाबाजी का ठुल्लू।
हमेशा चर्चा में रहना, यह उनकी फितरत में है, बाबा हों और उनकी चर्चा नहीं हो तो उन्हें पानी भी नहीं पचेगा। चाहे टीवी वालों को पैसे देकर अपने बड़-बड़े साक्षात्कार कराने हों या अप्रैल २०१४ में एक स्टिंग में टीवी चैनल पर अलवर से भाजपा प्रत्याशी महंत चंदनाथ के साथ उनकी कालेधन पर मजेदार चर्चा। और भी बहुत कुछ है उनके पिटारे में।
बाबा हवा का रुख भांपने में माहिर है, ये उड़ती चिड़िया के पंख गिन सकते हैं। तभी तो अन्ना हजारे के नेतृत्व में अनशन के दौरान कांग्रेस सरकार ने हवाई अड्डे पर उनके स्वागत में क्या-क्या नहीं किया। पलक पांवड़े बिछाए, उनके जरिए समझौते का भी प्रयास किया। लेकिन बाबा झांसे में नहीं आए तो नहीं आए। शायद अब उन्हें हवा का रुख बदला लग रहा हो तो?
सुनो,सुनो, सुनो, एक गंभीर बात और है, राहुल अभी गुप्त स्थल पर छुट्टियां मनाकर आए हैं, ‘जहां न जाए रवि, वहां पहुंचे कवि’।  इसके बाद ही बाबा का उनके पक्ष में बयान आया है। राहुल इस वक्त ऊर्जा से सराबोर हैं, बहुत कुछ है, उनके पास, भविष्य की राजनीति के लिए। कहीं कुछ खिचड़ी तो नहीं पकी? भाजपा वालों को यह भी पता करना चाहिए। अब बाबा किससे हनीमून मनवाएंगे, यह भी जांच का विषय हो सकता है। 







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