झूठ के एक से एक खिलाड़ी

                                
                                      -डा.सुरेंद्र सिंह
यदि झूठ बोलने की प्रतियोगिता हो तो बहुत से तैयार हो जाएंगे। इसमें क्या है, झूठ ही तो बोलना है। लेकिन जीतने में छक्के छूट जाएंगे। एक से एक महारथी  हैं। झूठ बोलें और ताली भी पिटवा लें। कुछ झूठ भी न बोल पाएं और हूट हो जाएं। कायदे से झूठ बोलना हर किसी से वश की बात नहीं है। कुछ बड़े विरले लोग ही हैं, उनमें एक से एक बढ़कर खिलाड़ी हैं, जो सीना तान के बोलते हैं।
कुछ सिद्धहस्त लोग राई को पर्वत, तिल को ताड़ बना देते हैं तो कुछ झूठ के पहाड़  बना सकने में माहिर हैं। सफेद झूठ भी कोई चीज है।  हाल ही में एक केंद्रीय मंत्री  ने एक टीवी पत्रकार को दिए  इंटरव्यू में  कहा कि देश में 80 करोड़ राशनकार्ड धारकों को खाद्यान का वितरण करा दिया है। एक राशनकार्ड में औसत पांच सदस्य होते हैं। किसी में कम तो किसी में ज्यादा।  इस हिसाब से देश की आबादी हुई  400 करोड़। यदि एक राशनकार्ड पर चार सदस्य मान लें तो  देश की आबादी  320 करोड़। जबकि सभी नागरिकों के पास राशनकार्ड नहीं हैं। देश की आबादी है125 करोड़। इसे कितना प्रतिशत मानेंगे?
 उन्होंने यह भी कहा कि देश की नौ करोड़ गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार वितरित कर दिया गया है।  देश में इस समय युवा महिलाओं की संख्या करीब 35 करोड़ है तो क्या इस वक्त हर चौथी महिला गर्भवती है? यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार एक जनवरी 2020 को एक दिन में देश में 67385 बच्चों ने जन्म लिया जो पूरी दुनिया में एक रिकार्ड है। यदि इसी रफ्तार से भारत की महिलाएं पूरे नौ महीने बच्चे पैदा करती रहें तो वे एक करोड़ 81 लाख बच्चे पैदा करेेंगी। बाकी 7.19 करोड़ किन महिलाओं को पौष्टिक आहार किन्हें दे दिया?
एक मुख्यमंत्री  ने 17 मई को कहा कि उन्होंने अपने प्रदेश में 16.50 लाख प्रवासी मजदूरों को बुला लिया है। यह बात उन्होंने ऐसे सीना ठोक कर कही जैसे मजदूरों के वे सबसे बड़े मददगार हैं। प्रदेश के जिम्मेदार अधिकारियों के अनुसार 18 मई तक उत्तर प्रदेश में करीब 590 विशेष रेलगाड़ियां आई। यदि उन सभी में केवल उत्तर प्रदेश के ही मजदूर थे और सारी विशेष रेलगाड़ियों में 1200 मजदूर थे  तो उनसे कुल सात  लाख मजदूर  ही आए। बाकी मजदूर क्या  हवाई जहाज से बुलाए गए?  या जो पैदल आ रहे हैं किसी तरह पिट-कुच कर उन्हें भी उन्होंने ही बुलाया है।  उनके ये वचन अपने भारी भरकम पद के अनुरूप ही माने जाने चाहिए।
कोरोना संकट से निपटने के सरकार के बीस लाख करोड़ के पैकेज के अंतर्गत एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि मनरेगा में सरकार ने 40 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त स्वीकृत कर दिए हैं। इससे पहले करीब साठ हजार करोड़ स्वीकृत किए जा चुके हैं। इसका प्रचार ऐसे किया जा रहा है कि अब गांवों में कोई मजदूर भूखा नहीं रहेगा। योजना में यह अब तक की सबसे भारी भरकम मदद है। अब इसकी भी  परख कर लें। इस कुल धनराशि से देश के पांच लाख से कुछ कम मजदूरों को साल में सौ दिन काम मिल पाएगा, उनकी मजदूरी होगी 202 रुपये प्रति दिन। इन मजदूरों को साल में 265 दिन खाली हाथ बैठना पड़ेगा? देश में 40 करोड़ मजदूर हैं। इनमें से अधिकांश गांवों में रहते हैं। ग्रामीण मजदूरों को बीस करोड़ भी मानें तो 15 करोड़ से ज्यादा  मजदूरों को एक दिन भी काम नहीं मिलेगा।
ये लोग अकेले नहीं हैं, इस मैदान में। दूसरी सरकारों के मंत्री और मुख्यमंत्री  भी झूठ बोलते रहे हैं। बरसों पहले विदेश में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि नेता सबसे ज्यादा झूठ बोलते हैं करीब 85 प्रतिशत और डाक्टर सबसे कम झूठ करीब 15 प्रतिशत। वकील भी झूठ बोलते हैं लेकिन नेताओं से कम पर डाक्टरों से ज्यादा। पत्रकार वकीलों से पीछे हैं लेकिन डाक्टरों से आगे। देश में उस समय कांग्रेस का राज था। अब शायद यह बढती मंहगाई का असर है या नित नई क्रांति का प्रभाव अथवा विकास की रफ्तार।
 झूठ सनातनकाल से चला आ रहा है। रामायण में कहा गया है-‘‘हनुमान की पूंछ में लग न न पाई आग, लंका सारी जरि गई, गए निशाचर भाग’’। जब सारी लंका जल ही गई थी,  निशाचर भाग गए थे तो हनुमानजी सीताजी को लिवाकर ले आते। रामचंद्रजी को वेबजह खूनखराबे का शौक नहीं था। जब तुलसीदास जैसे संत झूठ बोल सकते हैं तो आधुनिक दौर के लोगों को ही दोष क्यों दें।
झूठ बोलने का आनंद ही और है। जो मजा झूठ में है,  सच में कहां? बचपन में जब-जब झूठ बोला, मां ने ऐसे कान उमेंठे, अभी तक दर्द होता है। गुरूजी ने डंडों से हाथ सुजा दिए। पापा की मत पूछो। उन्होंने जूतों से नीचे कभी बात नहीं की। वह सब याद है। सत्य को कौन याद रखता है?,  झूठ ही जिंदा रहता है?

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