भक्तों के दर्शन को व्याकुल

                         
                                         -डा. सुरेंद्र सिंह
पहले भक्त मंदिरों में गुहार लगाते थे-‘‘ मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोय..’’।  वे उनके दर्शन को व्याकुल रहते थे।  अब मंदिरों के बड़े-बड़े मंहत और पुजारी गुहार लगा रहे हैं, मंदिरों को खुलवाइए वरना भूखों मर जाएंगे। कोरोना की यह कैसी विचित्र माया है। जो मठाधीश पहले भक्तों से दिनभर चरणस्पर्श कराते थकते नहीं थे, अब वे उनके दर्शन के लिए व्याकुल है।ं भक्त आएं तो उनका काम चले। भक्तो ! संभल जाइए। जो कुछ है, आप ही के पास है।  आपके ही अंतर्मन में है। मंदिरों की बिल्डिंग और मूर्तियों में नहीं। जो पुजारी दिन भर भक्तों को आश्वस्त करते थे कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता। मंदिरों में दिन-रात रहकर भी अब वे खाली हाथ हैं। 
दो महीने से ज्यादा समय के लौकडाउन में मंदिरों में हाहाकार मच गया है। कई जाने-माने मंदिर जिनमें साक्षात विष्णु का वास माना जाता है, जिनकी आमदनी का देश भर में रिकार्ड है, अब उनके पुजारियों को घर चलाने के लाले पड़े हैं। उन्हें सेलरी नहीं मिल पा रही ।  अखाड़ा परिषद तो मई के पहले हफ्ते से ही गुहार लगा रही है। खुलवाइए, मंदिरों को खुलवाए।  सबको अपनी पड़ी है। भक्त कोरोना की चपेट में आएं तो आएं लेकिन उनका काम नहीं रुकना चाहिए। उनके कोषागार भरते रहें। इसलिए दिल्ली के प्रसिद्ध शनिमंदिर के महंत दाती महाराज  भक्तों को गुपचुप पूजा करा रहे थे।  अरे आप और आपके मंदिर में शक्ति है तो खुलकर करिए। साबित करिए। नहीं कर सकते न। सरकार को भी मालूम है। पुलिस को भी, इसलिए धर लिए गए। बाद मेंजमानत पर छूटे।  लौकडाउन की  अवधि में कुछ जाने-माने मंदिरों की मूर्तियों के आन लाइन दर्शन कराए गए। उन्हें डर है कि यदि भक्तों को बिना दर्शन रहने की आदत पड़ गई तो उनका क्या होगा?  कुछ मंदिरों में आनलाइन पैसा लेकर पूजा भी कराई गई। पैसा आना चाहिए।  इसका क्रम नहीं टूटना चाहिेए।
कनार्टक के  पुजारियों के अनुरोध पर मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने प्रधानमंत्री  मोदी से गुहार लगाने के बाद एक जून से राज्य के मंदिरों को खोलने का फैसला ले लिया है। मंदिरों में मेले और महोत्सव नहीं होंगे लेकिन दर्शन होंगे। यानी चढ़ावा ले सकते हैं। येदियुरप्पा की मुश्किल समझी जा सकती है। राज्य में 34 हजार से ज्यादा मंदिर हैं। इनमें काम करने वालों की संख्या लाखों में हैं। इनकी आमदनी से इनके परिवार चलते हैं। यानी कई लाख लोगों की रोजी-रोटी का सवाल है। रोजी-रोटी तो सबकी चलनी चाहिए। रोजी-रोटी ही सबसे बड़ा धर्म है।
लेकिन एक सवाल है, इटली, ईरान और दक्षिण कोरिया में कोरोना के मामले धार्मिक आयोजनों के कारण ही बढ़े।  क्या उनसे सबक नहीं लिया जाना चाहिए? देश में कोरोना का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। भारत दुनिया के टाप टेन देशों में शामिल हो गया है। यह माना जा रहा है कि यदि कोरोना संंक्रमितों की बढ़ोत्तरी की यही रफ्तार रही तो भारत इटली, ब्रिटेन, ब्राजील से पीछे नहीं रहेगा। ठीक है कर्नाटक अभी देश के कई राज्यों से पीछे हैं, यहां अभी तक करीब ढाई हजार मामले ही सामने आए हैं और करीब 75 लोगों की मृत्यु हुई है। पर कोरोना अभी गया नहीं है। जहां कम केस हैं, वहां यदि लापरवाही की गई तो बढ़ते देर नहीं लगेगी। 
हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण के कहा था कि देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं, भुखमरी की नौबत आ गई है। ऐसी स्थिति में क्यों न मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों के पास रखे करीब 75 लाख करोड़ के सोने का इस्तेमाल कर लिया जाए। उनका यह भी कहना था कि मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों को उनके सोने की कीमत पर मामूली ब्याज दे दिया जाए।  इस पर धार्मिक क्षेत्र में भूचाल आ गया था। बड़े-बड़े महंत उबल पड़े, ऐसा कैसे हो सकता है, यह उनका पैसा है। काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत ने तो सबसे एक कदम आगे बढ़कर ऐलान कर दिया कि वे पृथ्वीराज चह्वाण और उनके परिवार के सदस्यों को अपने मंदिर में प्रवेश नहीं करने देंगे। 
इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि इन महंतों को पैसे से कितना प्यार है। उन्हें भगवान पर उतना भरोसा नहीं जितना पैसे पर है। भाई यह पैसा भी तो जनता से आया है, यदि जनता के काम आ जाएगा तो जनता फिर देगी। पार्टी विशेष के लोगों ने यह भी कहा कि कांग्रेस को मंदिरों का पैसा दिखता है। दूसरे धर्मों का नहीं। अरे भाई अच्छी पहल के लिए किसी के
 इंतजार की कहां जरूरत है। पहल आप करेंगे तो दूसरे भी प्रभावित हो सकते हैं। भक्तों को मंदिरों के इस खोखलेपन के बारे में  इतने से समझ जाना चाहिए। अपने पैसे को संभालना सीखिए। 

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