कोरोना युग में पुलिस का नया अवतार

              
                 
                                     -डा. सुरेंंद्र सिंह
कोरोना के इस काल में पुलिस का नए रूप में अवतरण हुआ है। जो पुुलिस हमेशा से मारने-पीटने, तोड़-फोड़ करने के लिए कुख्यात  है। तमाम फर्जी मुठभेड़ें और निर्दोषोंं को फंसाने के मामले इसके नाम हैं। इसलिए पुलिस का नाम लेते ही लोग नाक-भों सिकोड़ने लगते हैं।  आमजन में यह मान्यता है, पुुलिस से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। दूर बने रहो तो ही अच्छा। इसलिए अनेक भद्रजन पुुलिस वालों को न तो अपनी लड़कियां ब्याहना चाहते हैं और न उन्हें मकान किराए पर देना। बैंक वाले लोन देने में कतराते हैं। ऐसी बहुत सी बातें हैं जिससे समाज में पुलिस की छवि सरकारी गुंडों से ज्यादा की नहीं हैं। लेकिन कोरोना के खिलाफ महासंग्राम में पुलिस लोगों की जिस तरह रहनुमा बनकर आई है, उसने सबको आश्चर्य चकित किया है।
ऐसा नहीं है कि पुलिस पूरी तरह बदल गई है,अब गाय के रूप  में आ गई है, अब भी  उसके खिलाफ बहुत सी शिकायतें हैं। अनेक स्थानों पर  उसने राह चलते लोगों को पीटा है, निर्दोषों की घर में घुसकर तुड़ाई की है। कहीं-कहीं पास होने के बावजूद लोगों से वसूली की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की यह शिकायत है। अनेक  लोगों से उठक-बैठक लगवाई हैं तो एकाध स्थान पर अफसरों को गुमराह करने की भी शिकायतें हैं। इस कारण दिल्ली के तीन पुलिस कर्मियों को निलंबित किया गया।  इसके बावजूद उसने इस बार जो मानवीयता दिखाई है, उसका पलड़ा  शिकायतों पर भारी है।
कोरोना महामारी के खिलाफ महा अभियान में डाक्टर, नर्सें, अन्य स्वास्थ्यकर्मी तो जी जान से जुटे ही हैं,सफाई कर्मी नियमित रूप से सफाई कर रहे हैं, पत्रकार भी पल-पल की खबरें देकर जनजागरूकता में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। पुलिस इनके साथ और इनसे अलग से भी  सबसे अग्रिम पंक्ति में है।  वह अनेक रूपों में काम कर रही है।  उदाहरण के लिए एक महिला डिलीवरी के दौरान असहाय अवस्था में थी, कोई उसकी मदद करने वाला नही  था। लौकडाउन के चलते पति उससे सैकड़ों किलोमीटर दूर था।  चारों तरफ रास्ते  बंद थे। किसी को आने-जाने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में एक पुलिस अधिकारी उसके लिए देवदूत बना। उसने अपनी गाड़ी से उसके पति को दूसरे स्टेट में महिला के पास  पहुंचाया जिससे उसकी समय से सुरिक्षत डिलीवरी हो सकी। इससे प्रभावित होकर महिला ने अपने बच्चे का नाम ही पुलिस अधिकारी के नाम पर रख लिया। एक  अन्य स्थान पर लड़का और लड़की के माता-पिता बहुत दूर होने पर शादी में आने में असमर्थ रहे तो पुलिस ने दोनों के मां-बाप की भूमिका निभाई। एक महिला अधिकारी ने पंडित बनकर ब्याह पढ़ा और अन्य रस्में अदा कराईं।  
दिल्ली के नजफगढ़  थाने में पिछले एक महीने से ज्यादा समय से रोज दो-ढाई हजार  प्रवासी मजदूरों के लिए खाना बनवा कर वितरित कराया जा रहा है।  खाना बनाने से लेकर वितरण तक का कार्य पुलिस कर्मी ही कर रहे हैं। एकाध  वीडियो इस तरह के सामने आए है जिसमें पुलिस कर्मियों ने किसी परिवार में बच्चे के जन्मदिन पर केक पहुंचाया। अनेक स्थानों पर कफ्र्यू जैसी स्थिति में मास्क बनवाने के लिए दुकानें खुलवाईं। खुद भी मास्क बनाकर वितरित किए, समाज सेवियों से सहयोग लेकर लोगों के लिए खाने-पीने के सामान और दवाएं उपलब्ध कराईं। जम्मू कश्मीर के सोहन सिंह नाम के दरोगा की क्षेत्र में इसलिए तारीफ की जा रही है कि उसने दर्जनों पीड़ितों के लिए खाने-पीने से लेकर अन्य जरूरी व्यवस्थाएं कीं।
 जन जागरूकता  के लिए मनोरंजन अच्छा माध्यम है। लेकिन पुलिस से कोई इस तरीके की अपेक्षा कैसे कर सकता है? पर पुलिस ने अनेक स्थानों पर ऐसा किया।  दिल्ली और एकाध अन्य स्थानों पर यमराज जैसा रूप धारण कर लोगों को घरों के अंदर रहने के लिए प्रेरित किया। कहीं-कहीं कोरोना वायरस की वेशभूषा में सड़कों पर घूम-घूम कर तो कहीं गीत गाकर कोरोना  से बचने को  सावधान किया।
 अपनी ड्यूटी को अंजाम देने के लिए जगह-जगह पुलिस बहुत ही मुस्तैदी से खड़ी दिखाई दे रही है। कहीं-कहीं तो अपने बूढ़े मां-बाप और बीमार पत्नी तक की परवाह नहीं की। उत्तर प्रदेश के  हापुड़ के एक पुलिस कर्मी ने अपनी शादी के लिए छुट्टी लेने की बजाय आनलाइन निकाह की रस्म अदायगी कर अपनी ड्यूटी को  पूरी शिद्दत से अंजाम दिया।  
कड़ाई से ड्यूटी का पालन करने के चक्कर में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, अलीगढ़, दिल्ली, गुजरात में कई स्थानों पर पुलिसकर्मी पिटे, पत्थर खाए, लेकिन जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। उस स्थिति में भी नहीं जबकि उसके पास कोरोना से बचाव के लिए खास साधन नहीं हैं। जहां स्वास्थ्य कर्मियों ने पीपीई किट को लेकर अनेक जगह  धरना और प्रदर्शन किए, कुछ डाक्टर  बहाने बनाकर ड्यूटी करने ही नहीं आए।   सुरक्षा उपकरणों की उनसे भी ज्यादा कमी पुलिस वालों पर है। स्थिति यह है कि अधिकांश पुलिस कर्मियों को सेनेटाइजर तक नहीं मिले, मास्क भी कुछ को मिले हैं तो  कुछ को समाज सेवियों ने उपलब्ध कराए हैं तो कुछ ने अपने पैसे से लिए हैं। ग्लब्स अधिकांश पुलिस कर्मियों के पास नहीं हैं। पीपीई किट मामूली पुलिस कर्मियों को मिली हैं, लेकिन वे जैसी हैं, वे ज्यादा देर पहनी नहीं जा सकतीं। ऐसी स्थिति में पुलिस कर्मी 12 घंटे की ड्यूटी दे रहे हैं।  इस कारण स्वास्थ्य कर्मियों की तुलना में सबसे ज्यादा पुलिस कर्मी कोरोना की चपेट में आ रहे। 18 मई तक डेढ़ दर्जन से ज्यादा पुलिस कर्मियों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। उदाहरण के लिए पंजाब मेंं लुधियाना  के एसीपी अनिल कोहली तो कोरोना की चपेट में आने के बावजूद ड्यूटी से नहीं हटे। वह तभी हास्पिटल में भर्ती हुए जबकि गंभीर रूप से बीमार पड़ गए, अंतत: उनकी  दुखद मृत्यु हो गई।  इंदौर के पुलिस इंसपेक्टर देवेंद्र चंद्रवंशी की जान चली गई। मुंबई के हैडकांस्टेबिल चंद्रकांत पेडरकर, शिवाजी नारायण नरवड़े और कांस्टेबल संदीप सुरवे को भी जान से हाथ धोना पड़ा।  महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दस पुलिस कर्मी कोरोना के कारण  शहीद हुए। दिल्ली में अमित राणा नाम के सिपाही को समय पर इलाज तक उपलब्ध नहीं हो सका। आगरा में एक महिला पुलिस कर्मी की जान चली गई। अद्र्धसैनिक बलों के भी  कई जवान जान से हाथ धो बैठेहैं।  पंजाब के पटियाला में  एक  मंडी के पास लौकडाउन का उल्लंघन कर जाते हुए निहंगों के एक जत्थे को पुलिस ने रोका तो उन्होंने उप निरीक्षक हरजीत सिंह का हाथ ही कृपाण से काट दिया। बाद में डाक्टरों ने उसके हाथ को फिर से जोड़ दिया। इसके बावजूद  कोरोना से जनमानस को बचाने के हरजीत सिंह के जोश में कमी नहीं है। पंजाव का हर पुलिस कर्मी अब कह रहा है कि वह हरजीत सिंह है। यानी चाहे कुछ भी कर लो लेकिन वे अपनी जिम्मेदारी से नहीं हटेंगे। पंजाब के एक गुरुद्वारे द्वारा हजारों भूखे लोगों के लिए भोजन का इंतजाम करने पर पुलिस कर्मियों ने गुरुद्वारे में श्रद्धाभाव से सामूहिक रूप से  मत्था टेका और परिक्रमा भी की। इसी तरह नई दिल्ली में डाक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का हौसला बढ़ाने के लिए एम्स की भी परिक्रमा की।
कोरोना से पुलिस कर्मियों के ग्रसित होने के देश भर में हजारों मामले लगातार आ रहे हैं। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के 1200 से ज्यादा पुलिस कर्मी  संक्रमित हुए  हैं। इनमें सबसे ज्यादा मुंबई से हैं। दिल्ली में डैढ़ सौ ज्यादा पुलिस कर्मी सक्रमित हुए हैं।  चार सौ ज्यादा जवान अद्र्धसैनिक बलों के गिरफ्त मेंआ गए।
इसी कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 अप्रैल को  अपनी ‘मन की बात’ में कोरोना के खिलाफ महासंग्राम में पुलिस की सकारात्मक भूमिका की तारीफ करना नहीं भूले। आम जनता और  बुद्धिजीवी भी पुलिस के इस बदले रूप की तारीफ कर रहे है। इसलिए  पुलिस की अब बड़ी जिम्मेदारी बनती है, वह अपनी इस छवि को न केवल यथावत बनाए रखे बल्कि और बेहतर बनाए।
यहां यह उल्लेखनीय है कि देश में आजादी से पहले अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हैस्टिंगज ने  देहात के लिए पुलिस की व्यवस्था की थी। लेकिन पुलिस आज जिस रूप में है, उसकी नींव लार्ड कार्नवालिस ने पुलिस एक्ट 1861  के जरिए डाली।  इसमें पुलिस की नियुक्ति से लेकर उसके अपराध नियंत्रण के अधिकार और कर्तव्यों की व्यवस्था की गई है।   देश को आजाद हुए करीब पौन शताब्दी  बीत चुकी है तब से देश का अवाम भी बहुत बदल गया ह। ब्रिटेन में तब से लेकर अब तक पुलिस एक्ट में ढाई दर्जन संशोधन हो चुके हैं लेकिन अपनी पुलिस अभी तक उसी एक्ट से संचालित हो  रही है। (पुलिस अधिकारी इसका अपवाद हैं, उनके लिए अलग नियम हैं)  इसका परिणाम यह है कि जहां ब्रिटेन में पुलिस कर्मियों को  भद्र इंसान माना जाता है, वहीं अपने यहां ठीक इसके विपरीत। इसलिए अब समय  आ गया है कि अपनी  पुलिस को  भी बदला जाना चाहिए, जो नामुमकिन नहीं है कोरोना के खिलाफ संघर्ष में उसने यह साबित कर दिया है। 

पुलिस की भारी कमी
अपने देश में पुलिस का अच्छा व्यवहार नहीं होने का एक कारण उस पर काम का ज्यादा बोझ भी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानकों के अनुसार प्रति एक लाख की आबादी पर 222 पुलिस कर्मी होने चाहिए यानी प्रति 450 व्यक्तियों पर एक । इसकी तुलना में भारत में  प्रति एक लाख की आबादी पर 144 पुलिसकर्मी हैं यानी प्रति 694 व्यक्तियों पर एक पुलिस कर्मी। इसके अलावा काफी संख्या में पुलिस कर्मियों को  नेताओं और अफसरों की बेगार में लगाया जाता है।

Comments

  1. वैसे तो पुलिस भी इंसान ही होती है इसलिए उससे इंसानियत की अपेक्षा रहती है लेकिन आमतौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता.. उसके कई कारण हैं.. एक तो फोर्स की कमी जिसकी वजह से उस पर काम का भारी बोझ उसमें खिसियाहट पैदा करता है... दूसरा राजनीतिक हस्तक्षेप उसे मानव नहीं बनने देता.. तीसरा कारण भ्रष्टाचार है.. जब सब कोई अपना घर भरने में लगा हो तो लाखों खर्च कर नौकरी पाने वाला पुलिस वाला पीछे क्यों रहे, लिहाजा वह मानवता को किनारे रख कर जुट जाता है कमाई करने में...

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