जय हो क्वारंटाइन सेंटर

                        
                                 -डा. सुरेंद्र सिंह
क्वारंटाइन सेंटर भी क्या खूब हैं।  इन्होंने आजकल बड़े बड़ों की हुलिया टाइट कर दी है। लोग हाथ जोड़ते हैं, पैरों पड़ते हैं,- चाहे कहीं भेज दो, जेल भेज दो, परलोक भेज दो लेकिन क्वारंटाइन सेंटर  मत भेजो। कांग्रेस के नेता बड़ी उछलकूद कर रहे थे। एकाध को ही पकड़ा। सब ठंडे हो गए। उन्हें पता है क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया तो भगवान ही मालिक है। और दिन होते तो जेलों को ठसाठस भर देते। भला हो क्वारंटीन सेंटरों का,  कोरोना को ठीक करने के अलावा  कानून व्यवस्था बनाए रखने में भी सहायक बन गए हैं। यदि ऐसे सेंटरों की व्यवस्था को सुधारने के लिए उत्तर प्रदेश के डीजी मेडिकल ने इनमें मोबाइल पर प्रतिबंध लगा दिया तो क्या  गुनाह कर दिया था? सो इसके विरोध को तूल पकड़ते देख आदेश को वापस ले लिया गया।
क्वारंटाइन सेंटरों से जो लोग परेशान हैं, वह परेशान होंगे, इसके मजे लेने वाले भी कम नहीं हैं। हरेक आदमी की क्षमता और फितरत अलग-अलग होती है। बिहार के समस्तीपुर जिले के एक क्वारंटाइन सेंटर को ही ले लो, भाइयों ने  महिलाओं से खूब अश्लील डांस कराया। बाद में इसके वीडियो  बनाकर वायरल कर दिये। उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर के एक क्वारंटाइन सेंटर पर एक सिपाही ने बाप का माल समझकर नवविवाहिता के साथ छेड़छाड़ कर दी, उसके कपड़े भी फाड़  दिए। गनीमत रही, उसकी आबरू बच गई। दुस्साहस देखिए, वह दीवाार फांद कर सेंटर के भीतर घुस गया था। मामले को लेकर लोगों ने थाने पर प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश के सागर जिले एक क्वारंटाइन सेंटर पर नहाते हुए एक महिला को वीडियो बना लिया गया। इसके बाद उसे ब्लेकमेल भी करने लगे।  बिहार के सीवान क्षेत्र के एक क्वारंटाइन सेंटर पर एक मौत हो गई। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के एक मेडिकल कालेज में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में एक मरीज ने आत्महत्या कर ली। 
किस-किस की चर्चा करें, जितने क्वारंटाइन सेंटर हैं, उनकी उतनी ही कहानियां हैं। नित नई और एक से एक रोचक कहानियां हैं। इसलिए अखबार और टीवी चेनल वालों ने क्वारंटाइन सेंटरों की अलग से वीट बना दी है। रिपोर्टरों को सख्त हिदायत है, दिन भर में कोई और काम नहीं, सिर्फ और सिर्फ क्वारंटाइन सेंटरों के हालात जानने हैं। चाहें तो क्वारंटाइन सेंटरों के लिए अलग से एक टीवी चैनल भी चला सकते हैं। देख लेना, सबसे ज्यादा टीआरपी उसी के नाम रहेगी।
वैसे क्वारंटाइन सेंटर कोई नई व्यवस्था नहीं है, जैसा कि भाई लोग समझ रहे होंगे। सैकड़ों साल पहले भी क्वारंटीन होते थे। जैसे और बहुत सारे शब्दों का स्रोत विद्वान लोग लैटिन में खोजते हैं, इसका मूल स्रोत भी लैटिन में ही है। इसके मायने है चालीस। जब जहाजों से संक्रामक बीमारी आने का संदेह होता था तो उस जहाज को बंदरगाह से दूर 40 दिन तक खड़ा रखा जाता था। प्लेग फैलने के दौरान ग्रेट ब्रिटेन में पहले पहल इसका प्रयोग हुआ। इसका हिंदी अर्थ ‘संगरोध’ भी है। कोरोना ने अब इसे सर्वव्यापकता दे दी है। 
जाने-माने विद्वान कह रहे हैं कि कोरोना कोविड -19 अभी जाने का नहीं है। हो सकता है कि यह कभी नहीं जाए। इसलिए हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। जाहिर है कि जब कोरोना रहेगा तो  क्वारंटाइन सेंटर भी रहेंगे। दोनों का अन्योन्याश्रित संबंध है। स्कूल कालेजों को तो हमेशा इसके लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। इस हालत मेंं क्वारंटाइन सेंटरों का अच्छा खासा व्यवसाय चल सकता है।  तरह-तरह के  क्वारंटाइन सेंटर बना सकते हैं, वातानुकूलित  क्वारंटाइन सेंटर, साधारण क्वारंटाइन सेंटर, लग्जरी क्वारंटाइन सेंटर आदि-आदि अनेकों श्रेणियां हो सकती हैं। वैसे होम  क्वारंटाइन की व्यवस्था है लेकिन बहुतों को इसमें मजा नहीं आएगा। जब मन आएगा क्वारंटाइन हो जाया करेंगे। होटल, मैरिज होम का व्यवसाय मद्धिम पड़ने की संभावना है, ऐसे में वे उन्हें क्वारंटाइन सेंटरों में तब्दील कर सकते हैं। सरकार चाहे तो क्वारंटाइन सेंटरों के लिए अलग से गाइड लाइन बनाकर उनसे आमदनी  की व्यवस्था कर सकती है। अब जमाना क्वारंटाइन सेंटरों का है। जय हो क्वारंटाइन सेंटर। 

 

Comments

  1. हा हा हा हा.... बहुत सटीक कटाक्ष.... quarentine centre कुछ के लिए जेल तो कुछ के लिए धूर्तता का centre बन गए हैं.. उनको लेकर जो नित नई शिकायतें मिल रही हैं वो ज्यादातर सही हैं...system में बैठे लोगों ने centre तो बना दिए लेकिन उनमें व्यवस्थाएं कैसी चल रही हैं ये देखने कोई नहीं जाता. व्यवस्था के नाम पर कुछ छोटे स्तर के कर्मचारी लगाकर ड्यूटी पूरी कर ली.

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