सोशल डिस्टेसिंग पर एक शोध

                     
                                  डा. सुरेंद्र सिंह
आजकल सोशल डिस्टेसिंग सबसे महत्वपूर्ण शब्द बन गया है। यदि कभी इस पर शोध हुआ - जो बहुधा ऐसे विषयों पर  होते रहते हैं - तो निष्कर्ष निकाला जाएगा कि इसका उपयोग कोरोना काल में राम के नाम से भी ज्यादा हुआ। राम के नाम को संत लोग जप-जप कर और पोथा पत्री लिख-लिख कर मर गए लेकिन राम उन्हें कभी नहीं  मिले। राम के नाम पर बड़े-बड़े मंदिर और मठ बन गए। रुपये-पैसे, सोना-चांदी के अंबार लग गए। लेकिन शांति किसी को नहीं मिली। सोशल डिस्टेसिंग शब्द  इससे ज्यादा व्यापक यानी सर्वव्यापी  रहा। इसने झोंपड़ी से लेकर महलों, पुलिस के डंडे से लेकर प्रधानमंत्री  के मनमोहक वाणी पर राज किया। संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर डेढ़  सौ से ज्यादा देशों को अपनी उंगली पर नचाया। अखबार, इलेक्ट्रानिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया का यह सबसे प्रिय शब्द रहा। यहां तक कि उद्योग और व्यापार में  इसकी बदौलत क्रांति हुई।
उदाहरण देकर बताया जाएगा कि प्राइम टाइम में टीवी चेनलों द्वारा कितनी-कितनी बार इसका उल्लेख किया जाता। अन्य खबरों के साथ दिन पर इसका रट्टा रहता। विश्वविद्यालयों और अन्य शैक्षिक संस्थानों द्वारा शुरू की गई वेबिनारों में भी इसका सिक्का जमता। विद्वान कायदे की कोई बात यदा-कदा ही कहते लेकिन सोशल डिस्टेसिंग के नाम पर कई-कई मिनट गुजार देते। कोई किसी की परवाह नहीं करता कि यह सुन-सुन कर लोगों के कान पक जाते। लोग मानसिक बीमारी से ग्रसित होकर डाक्टरों की सलाह लेने लगे।
जैसे सूर, तुलसी, कबीर को लेकर हिंदी साहित्य में विवाद है, वैसे ही इसके नाम और अर्थ को लेकर विद्वानों मेंखूब  विवाद रहा। कुछ विद्वानों का मत था कि यह शब्द ही गलत है, इसके शब्द और अर्थ के बीच कोई तालमेल नहीं है। उन्होंने इसकी जगह फिजीकल डिस्टिेसिंग या शारीरिक दूरी शब्द का प्रयोग करने पर जोर दिया। लेकिन बहुमत के आगे उनकी एक नहीं चल सकी। यह शब्द बुलेट ट्रेन से भी ज्यादा तेज गति से चला। अंत में अलग राय रखने वाले विद्वानों ने भी सोशल डिस्टेसिंग शब्द का प्रयोग करने में ही अपनी भलाई समझी। 
उद्धरण देकर बताया जाएगा कि कोरोना वारियर्स  जब रात- दिन की ड्यूटी से थक-हार कर घर भोजन के लिए जाते तो पत्नी और बच्चे उन्हें सोशल डिस्टेसिंग के नाम पर गेट के बाहर ही बैठा देते। दूर से सरकाकर उन्हें खाने की थाली देते, दूर से ही रोटी और सब्जी  परोसते। महिला कर्मी अपने लाड़लों को छाती से चिपकाने की बजाय दूर से विश करके चली आतीं। बच्चे गोदी में आने को मचलते लेकिन वे अपनों और  मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए अपने दिलों पर पत्थर रख लेतीं। तमाम डाक्टरों ने कारों को ही घर बना लिया था।
महानगरों में बनाए गए शिविरों में खाने के लिए किलोमीटरों लंबी लाइनें लगती तो पुलिस वाले सोशल डिस्टेसिंग के नाम पर सबको दूर-दूर खड़े करते। सड़क पर एक-एक मीटर की दूरी पर गोले बनाते। लेकिन पेट की आग इतना जोर मारती कि अनेक मजदूर भूखों मरनेकी बजाय करोना से मरने के विकल्प को चुन सोशल डिस्टेसिंग तोड़ आगे बढ़ जाते। जो सोशल डिस्टेसिंग को लक्ष्मण रेखा मानते, वे भूखे रह जाते। जब तक उनका नंबर आता खाना खत्म हो चुका होता। अगले दिनों में उन्होंने भी लक्ष्मण रेखा लांघने में ही भलाई समझी।
बस  और रेलवे स्टेशनों पर सोशल डिस्टेसिंग के चक्कर में तमाम लोग हफ्तों तक पड़े रहे। साथ में कभी पानी  तो कभी खाने के लिए इसकी मर्यादा को तार-तार करते रहे। बिहार के एक  रेलवे स्टेशन पर चंद बिस्किट के लिए मजदूरों में जो गुत्थमगुत्था हुई तब सोशल डिस्टेसिंग भी सिर पकड़कर खूब रोई। हाय, वह कहां फंस गई?
बदलते समय के साथ पुलिस पर भी अंकुश कसता जा रहा था,  पहले जैसी निरंकुशता और स्वेच्छाचारिता नहीं रह गई थी।  जरा सा किसी को हाथ लगाओ लोग वीडियो बनाकर वायरल कर देते। फिर लाइन हाजिर से नीचे पिंड नहीं छूटता। लौकडाउन के चक्कर में उन्होंने राह चलते जिसे मन आया, उस पर हाथ और डंडे खूब आजमाए, कहीं-कहीं मुर्गा बनाया, उठक-बैठक लगवाई। गाली भी  बकी- ‘‘साला सोशल डिस्टेसिंग का उल्लंघन कर रहा था’’। 
जैसे-जैसे लोकडाउन की अवधि बढ़ती रही सोशल डिस्टेसिंग की परिभाषा भी बदलती रही। पहले एक मीटर की दूरी को सोशल डिस्टेसिंग का मानक माना गया। बाद में इसे बढ़ाकर दो गज कर दिया गया। इसके बाद अमेरिका और एक अन्य देश में रिसर्च का हवाला देकर 18 फुट तक कोरोना के वायरस की बूंदें गिरने के तर्क देकर इसे और बढ़ाने पर जोर दिया गया ।

Comments

  1. वैसे distancing तो social हो ही नहीं सकती... social word society से निकला है जिसका मतलब group of people या group of animals of same kind होता है... जब distancing ही आ जाएगी तो वहां social रह ही क्या जायेगा. प्राचीन समय के महापुरुष पापियों से distance बनाके चलते थे लेकिन अब समय उल्टा है... आज लोग पापियों को गले लगाते हैं मगर एक पीड़ित, बीमार, लाचार (कोरोना संक्रमित ) से distance बना कर चल रहे हैं.. पापी से ज्यादा बुरा ये मुआ वायरस हो गया है...

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