मैं हूं कोरोना

                                 
                                          -डा. सुरेंद्र सिंह
 मैं समय-समय पर इस धरती पर आता रहता हूं। पहले भी आया था और आगे भी आता रहूंगा कभी किसी रूप में आता हूं तो कभी किसी रूप में। मेरे रूप अनेक हैं लेकिन मैं एक ही हूंं।  कभी अकारण नहीं आता हूं। मुझे किसी को परेशान करने का  शौक नहीं है और न लाखों लोगों को  मरते देख मुझे खुशी होती है। मैं तो  सभी को हंंसी खुशी देखकर ही प्रसन्न था। मैं इस वक्त भी हरगिज नहीं आना चाहता था। मैंने कई बार चेताया, मान जाइए, मान जाइए लेकिन आप लोग नहीं माने। आपने ही मुझे  मजबूर किया। मुझे आना पड़ा। अब भुगतो।
मैंने आपको सब कुछ दिया। खाने-पीने, पहनने- ओढ़ने, सैर-सपाटे करने, एक- दूसरे की मदद करने। आपके पास क्या नहीं है, क्या कमी है? जरूरत से बहुत ज्यादा खाद्यान्न है, फिर भी अकेले भारत में बीस करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सोते हैं। सड़ जाता है लेकिन गरीबों के मुंह नहीं पड़ने देते। दूसरे अनेक मुल्कों में तो गरीबों की देने की बजाय समुद्र में डाल दिया जाता है। फल, सब्जी, दूध की कोई कमी है? एक से एक बढ़कर रमणीक स्थल हैं। झर-झर बहती नदिया थीं जिनमें निर्मल शीतल पारदर्शी जल बहता था।  अपने स्वार्थ के लिए मेरे द्वारा बनाए सारे ताने-बाने को नष्ट कर दिया। पशु-पक्षियों तक को नहीं छोड़ा।  धरती की प्राणवायु को भी खत्म कर रहे हो।
यह नहीं कह सकते कि आप अज्ञानी हैं । न यह बहाना मार सकते कि भूल  हो गई। आपको ज्ञान भी खूब है, नित नई खोजें कर रहे हो। आप अच्छी तरह जानते हैं कि यह जीवन नश्वर है। इस जीवन के बाद कुछ नहीं है। आपका आपना कोई नहीं है। आपके काम में कोई नहीं आएगा। फिर भी आप होड़ा-होड़ी लगे हो। और संचय करो और करो।  अपने भर से संतोष नहीं है, आगे की पीढ़ी, उससे आगे की पीढ़ी और उससे भी आगे की पीढ़ी। सैकड़ों पीढ़ियों तक के लिए संचय कर लिया है। यहां की बैंक फुल हो गई हैं तो विदेशों में जमा करना शुरू कर दिया है। आपको अपनी चौथी पीढ़ी का नाम याद नहीं हैं। लिहाजा आपको भी कोई याद नहीं रखेगा। फिर भी चैन नहीं है। सड़कें, पुल घटिया बना रहे हो, खाने-पीने की चीजों में मिलावट कर रहे हो। नकली दवाएं बनाने से लेकर धोखाधड़ी तक क्या-क्या नही कर रहे। एक-दूसरे का गला काट रहे हो। पैसे और सुविधाओं की अंधी दौड़ में सारे नाते- रिश्ते खत्म कर लिए, अड़ोसी-पड़ोसी, मां-बाप, भाई-बहन, कुछ नहीं बचा।  पैसा और पैसा, हाय पैसा।  अपने स्वास्थ्य की भी परवाह नहीं है। 
एक से एक सशक्त राष्ट्र हैं, पूरी दुनिया में डंका है। लेकिन आपको चैन नहीं है। हथियारों का अंबार लगाते जा रहे हो। आप  इस दुनिया को कई-कई बार नष्ट करने की क्षमता रखते हो।  फिर भी किसी को फूटी आंख देखना नहीं चाहते। घमंड में इतने चूर हो कि दूसरा कोई आगे आना चाहता है तो टांग खींचते हो। एक-दूसरे पर अनर्गल आरोप लगाते हो। अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ते हो।  पीड़ितों और कमजोरों की मदद की बजाय ताकत और सुविधाएं एकत्रित करने तथा एक दूसरे को  आपस में लड़वाने में लगे हो। गोला बारूदों का व्यापार कर रहे हो, निर्दोष लोगों को मरवा रहे हो।  आप गलत फहमी में हैं। इस धरा पर आप ही सब कुछ नहीं हैं। मैं भी हूं। मैं कोरोना हूं। 
आपने देख लिया न। ज्यादा दिन नहीं हुए। सारी अकड़ ढीली हो गई। सारी सुख सुविधाएं जिन पर इतरा रहे थे, किसी के कोई काम नहीं आ रही। आलीशान बंगले, महंगी से मंहगी गाड़ियां,पांच और सात सितारा होटल, हवाई जहाज, लड़ाकू विमान, मिसाइलें, पनडुब्बी,  परमाणु बम। दूसरे ग्रहों पर कब्जे के प्रयास में थे।  ये सब अब किसी काम  नही आ रहे। मैं आप सभी  से सारी दुनिया के लोगों से हाथ जोड़ कर कह रहा हूं अभी भी समय है, मान जाइए। घरों पर रहो, अपने परिवार के साथ रहो। बाहर मत निकलो। घर में जो है, उस पर संतोष करो। आपके आसपास जो कोई गरीब और पीड़ित हैं, उनकी मदद करो। रास्ते में जा रहे भूखे-प्यासे मजदूरों की भी सहायता करो। उन्हें परायापन मत महसूस होने दो। 
 मैं फिर कह रहा हूं  धरती पर किसी चीज की कमी नहीं है। सब पर सब का हक है। आप ये चीजें कहीं से लाए नहीं थे और इन्हें कहीं ले भी नहीं जा सकते। यहीं की हैं, यहीं रहेंगी। आप लोग इतने दिनों से घरों में सुकून से हैं, पहले कभी इस तरह आराम किया। और करो अभी और इसकी जरूरत है। देख लेना, आपके करने और नहीं करने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। जिंदगी  पहले भी चल रही थी,  आगे भी चलती रहेगी। 
परेशान मत हो, थोड़ा धैर्य रखो, मैं चला जाऊंगा, अभी आसमान की हवा कुछ साफ हुई है। सुबह घर की छत पर उसे महसूस करो।   परिंदे पेड़ों और घरों की  मुडेरों पर दिखाई देने लगे हैं। उनकी चहचाहट का आनंद लो। जंगली जानवर भी कहीं-कहीं शहरों के चक्कर लगा रहे हैं, आश्चर्यचकित हैं, आपकी लीला देखकर। इन्हें भी मजा लेने दो। उत्खनन से धरती के गर्भ में जमा तेल अब चैन की सांस लेने लगा है। यदि  ऐसे ही चलता रहता तो उसका भी पेट खाली हो जाता। अगली पीढ़ियों के लिए उसे भी बचा रहने दो। नदियों और झीलों का पानी  सुधरने लगा है। समुद्र आनंदित है। मछलियां किलोलें कर रही हैं। सांप, बिच्छू, कीड़े- मकोड़े भी मौज में हैं। ये आपको नहीं सुहाते लेकिन ये मेरा हिस्सा हैं। इन सभी का रहना भी उतना ही जरूरी है, जितना आप। वे सभी हैं तो आप भी हैं। ध्यान  रखें, सब एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं।  ये सभी धरती के ईको सिस्टम का हिस्सा हैं।
ये सभी पर्यावरणीय व्यवस्थाएं पूरी तरह सुधर जाएंगी तो मैं चला जाऊंगा। लेकिन तब तक आप घर पर रहें। बहुत जरूरी होने पर ही बाहर निकलें। वह भी मुंह पर गमछा या मास्क लगाकर। किसी से हाथ न मिलाएं। शारीरिक दूरी बनाए रखें। अपने हाथों से मुंह, आंख और नाक को नहीं छुएं। घर आते ही हाथों को बीस सैकंड तक साबुन से धोएं। कपड़े भी बदल दें। प्रकृति ने आपको बहुत सी औषधियां दी हैं, जैसे अदरक, काली मिर्च, गिलोय, दाल तीनी आदि। इनका काढ़ा बनाकर पीते रहें। गर्म पानी का गरारा भी करें। यह सावधानी रखेंगे तो अब भी  मैं आपका  कुछ नहीं बिगाड़ सकता। 
लेकिन ध्यान रखना। फिर प्रकृति के साथ पहलेजैसी खिलवाड़ न करना। आपसी संबंधों को निभाते रहना। पैसे और साधनों के पीछे मत भागना। जीओ और जीने दो के सिद्धांत को याद रखना। वरना फिर मैं आ जाऊंगा। तब वह वैक्सीन भी काम नहीं आएगी, जिसके लिए आप लोग जी जान से जुटे हैं। मैं तब और नए रूप में आऊंगा। मुझे फिर से मत बुलाना। आगे वाली पीढ़ियों को भी यह बताना मत भूलना। 
कोरोना के नुकीले कांटेदार मुकुट धारण किए भयंकर रूप को देख और उसकी धमकियां सुन-सुन कर मेरा बहुत बुरा हाल था। पसीन से तरबतर हो रहा था, दिल घवरा रहा था। तभी पत्नी ने झकझोरा- ‘‘अजी सुनते हो। सुबह के पांच बज गए। उठो,  छत पर जाकर कुछ एक्सरसाइज करो’’।

Comments

  1. सब कुछ नश्वर.. फिर भी सब कुछ पा लेने की अंधी दौड़.. इसके लिए मनुष्य ने प्रकृति के साथ बलात्कार किया, मानव धर्म को प्रगति के रथ तले रोंद डाला.. जिस तरह धरा पर पाप का बोझ बढ़ने पर कोई अवतार होता है, उसी तरह जब प्रकृति का चीरहरण होता है तो प्रकृति अपना कोप दिखाती है.. ये corona के रूप में भी हो सकता है और अन्य किसी रूप मेंभी. बहुत सुन्दर कटाक्ष.....

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