मक्खी चूस

                       
                                               
                             -डा. सुरेंद्र सिंह
करन सिंह कोरोना के चक्कर में  दिन भर घनचक्कर होता रहता है।कभी छत पर तो कभी नीचे कमरे में।कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे में। आंगन में तो कभी बरांडे में। बाहर निकलना  दूर, गेट तक छूने की  इजाजत नहीं है। बिस्तर पर पड़ा है। टीवी पर लगातार संक्रमितों की बढ़ती संख्या और क्वारंटाइन सेंटरों पर लोगों की दुर्दशा के हाल सुन-सुन कर दिमाग खराब है। आशंकाओं की आंधी चल रही है। लगता है यह उसे कहीं का नहीं छोड़ेगी। ऐसे ही रहा तो दिमाग फट जाएगा।
उसे महसूस होता है, गला खराब है, बीच-बीच में खांसी आ जाती है। पड़ोसी की सूचना पर उसे  पकड़कर दूर के क्वारंटाइन सेंटर में बंद कर  दिया है। पता नहीं कौन सी दुश्मनी निकाल ली। यहां न कोई उसके हालचाल लेने वाला है न दवादारू की पूछने वाला। सुबह बीस लोगों के लिए दस चाय आई। चूंकि वह नया था, इसलिए उसे वंचित होना पड़ा। दोपहर को खाने में ठंडे नमकीन  चावल। डाक्टर ने चावल की मनाही कर रखी है लेकिन भूखा रहे तो कितना? घर में होता तो पत्नी  पर  फेंक कर मारता, गाली अलग सुनाता। पर अब परवश।  उसे ब्लड प्रैशर, हार्ट और डायबिटीज की हाई लेबल की बीमारी हैं। सायं को पूड़ी और आलू की सब्जी का पैकेट आ गया। इनका भी वह सख्त परहेज करता है। लेकिन अब जो मिले उसी में निर्बाह के अलावा कोई चारा नहीं।  पीने के लिए टंकी का कई दिनों से भरा बदबूदार गर्म पानी। ऊपर से मच्छरों का भयंकर प्रकोप।  हाल में पंखा है लेकिन आठ से दस घंटे बिजली नहीं रहती। एक-एक मिनट युगों की तरह बीतने लगा।
जाने किस जनम की सजा दे रहा है भगवान! कभी किसी को सताया तो नहीं। सामथ्र्य के अनुसार दान दान-दक्षिणा भी दी। सुबह-सायं विष्णु भगवान की आरती उतारी। एकात मं बैठकर नियमित रूप से रोजाना 108 बार ‘ऊं नम: शिवाय:’ का पाठ किया। किसी भिखारी को खाली हाथ नहीं लौटाया। कई बार रामायण का अखंड पाठ और भागवत कराई। हमेशा माथे पर तिलक लगाकर रखा। रास्ते में ंगुजरते कोई मंदिर ऐसा नहीं छूटा जिसके सामने  शीश नहीं झुकाया हो।  आंखों के सामने अंधेरा छा रहा है, शरीर पसीना से तरबतर। किससे क्या कहे क्या सुने? ढेरों सवाल हैं। क्वारंटाइनसेंटर का बाहर से ताला बंद है। बाहर कर्मचारी 200 मीटर की दूरी पर कुर्सी डालकर बैठा है। उसे आवाज देकर भी बुला नहीं सकता। वह तो तभी आएगा जबकि चाय या भोजन आएगा, वह भी  खिड़की से अंदर पटक जाएगा।
जान निकली जा रही है। रह-रह कर ख्याल आ रहा है उसने तो कमाई के लिए रात-दिन  एक कर दिए। छुट्टी के दिनों में भी काम किया। सोचा, बुढ़ापे में आराम से रहेगा। खूब सैर-सपाटे करेगा। पत्नी और बच्चों के साथ होटलों में खाने के लिए जाया करेगा। जब मन करेगा टैक्सी करके कुल्लू, मनाली, शिमला घूमेगा। चारों धाम की तीर्थ यात्रा भी करेगा।
बैंक में जमा पैसा और यह आलीशान बंगला अब किस काम आएंगे? तिनका-तिनका जोड़कर यह सब व्यवस्था की। ख्याल आने लगे, मक्खीचूस से भी गई बीती जिंदगी  बिताई। कपड़े जब तक घिस-घिस कर फट नहीं जाते बदलता नहीं था। पेंट फट जाती तो उससे नेकर और शर्ट से रूमाल, झोला बना लेता। जब इसके लायक नहीं रहते तो उन्हें पौंछा बनाने पत्नी को दे देता। सब्जी हमेशा सस्ती वाली खाई।  लौकी जब पांच रुपये किलो होती, महीनों वहींं चलती रहती। आलू जबकि सबसे सस्ता और फैंका जा रहा होता।  फसल के अनुसार तोरई, काशीफल का भी सेवन करता। उसका ख्याल था कि मौसम की सब्जी जब इफरात में हो तभी वह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक रहती है। बाजार की बाकी सब्जियों से उसका कोई लेना-देना नहीं था।  पनीर का स्वाद वह शादी-व्याहों में ही लेता।  र्सेंवंग का ब्लेड कम से कम एक महीने चलाता जब तक कि चेहरे पर दर्द नहीं करता,उसे बदलता नहीं था। दफ्तर जाने के लिए  आए दिन बहाने बनाकर दूसरे साथियों से लिफ्ट लेता। अपने पेट्रोल के पैसे बचाता रहता। बाजार में तरह-तरह की मिठाई की दुकानों को देख मुंह में पानी आता लेकिन उसे सिल लेता या निगाह फेर कर निकल जाता। शादी ब्याहों में जहां लिफाफा देने की बारी आती, कन्नी काट लेता। लिफाफा वहीं देने जाता जहां से दुगने वापसी की उम्मीद होती। एक-एक चीज का हिसाब रखता। पत्नी से एक-एक पैसे के लिए लड़ता-झगड़ता।  जिंदगी को मशीन से ज्यादा कभी नहीं समझा।
उसकी हालत बिगड़ती जा रही है। अब क्या होगा? कई लोग उधार पैसे ले गए थे, अब वे लौटाएंगे या नहीं? अब  कौन उनसे तगादा करने बैठा है। छोटे बेटे की इस बार बहुत ही धूमधाम से शादी करनी थी। इसके लिए फाइव स्टार उसके दिमाग में है। उसका क्या होगा?  बहन की तंग हालत है, उसकी मदद वह अब कैसे कर पाएगा? सारे अरमानों पर पानी फिरा जा रहा था। तभी डाक्टरों की टीम आ गई। इनमें से एक सीने पर स्थैतस्कोप लगाकर कह रहा है, अब कुछ नहीं बचा। इसे पौलीथिन में सील कर कर दो, कोई  हाथ नहीं लगाएगा। दूर-दूर तक कोई अपना  नहीं है। श्मशानघाट पर भी कोई दिखाई नहीं दे रहा। वह तो अड़ोस,-पड़ोंस और मिलने-जुलने वालों में जिसके मरने-गिरने की सुनता, जरूर जाता था। आप किसी के यहां जाएंगे तभी कोई आपके यहां आएगा।  ताकि जब वह मरे तो  अच्छी खासी भीड़ हो सके। दूसरे लोग विस्फारित आखों से कहें कि यह कोई बड़ा आदमी लगता है। यह सारी मेहनत व्यर्थ गई। तब तक पत्नी झकझोरती है,-सुनो , दोपहर के तीन बज गए हैं चाय पी लो। वह हड़बड़ा कर उठता है।


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