गधे के सींग-2

                             
                                       -डा. सुरेंद्र सिंह
ऊपर से आदेश है, गांवों का विकास करना है। लौकडाउन के कारण वैसे तो पुलिस घर से निकलने नहीं देगी यदि निकले भी तो  हाथ-पैर तोड़ देगी। बड़ी मुश्किल है। लाख मुश्किल हो गांवों को तो कोरोना से बचाना ही होगा। एयरकंडीशनर में बैठकर चिंतन चल रहा है। कुछ न कुछ  करना ही होगा वरना माना जाएगा , हम नाकारा हैं, इतनी बड़ी महामारी . जहां सारे देश का अमला जुटा है, हम कुछ नहीं कर सके, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, निकम्मे कहीं के।  एक दूसरे से फोन पर सलाह- मशविरा किया।  सोचो भाई, सोचो। कोशिश करो, कोई न कोई रास्ता निकलेगा , जरूर निकलेगा०।
यकायक उधर से करन सिंह की आवाज आई।
-‘‘सर एक आइडिया है, कृषि मंत्रालय की गाइडलाइन किसानों को भेज देते हैं’’।
-‘‘लेकिन वह तो अंग्रेजी में है’’।
-‘‘तो क्या हुआ? सरकार ने भी तो अंग्रेजी में जारी की है। जैसा सरकार ने भेजा है, वैसा ही भेजो। सरकार के आदेश का अक्षरश: पालन करना है।
-‘‘लेकिन  भेजोगे किसे? किसान तो खेतों में काम कर रहे हैं, क्या उन सबके ह्वाट्सएप्प नंबर आपके पास हैं’’?
-‘‘प्रधानों के पास भेज दो। उनकी जिम्मेदारी है वह सारे किसानों को उपलब्ध कराएं’’।
फिर क्या था, कृषि मंत्रालय की कई पेज की गाइडलाइन धड़ाधड़ प्रधानों को फारवर्ड की जाने लगी। साथ में यह मैसेज भी फारवर्ड कर दिया कि प्लीज फारवर्ड दिस मैसेज टू आल विलेजर्स।
फिर तो  आइडिया पर आइडिया आने लगे। आइडिया की बाढ़ आ गई। ‘स्टे होम स्टे सेफ’. ‘वीयर मास्क’,‘वाश योर हैंड’, ‘सोशल डिस्टेंसिंग टू प्रोटेक्ट आवर कम्युनिटी’, ‘डाउनलोड आरोग्य सेतु’, ‘वर्क  फ्रोम होम’,’ हेल्प दी नीडी’, इसी तरह रोमन में ‘मुस्कराएगा इंडिया’ लिखकर और इसके कोलाज बनाकर धड़ाधड़  प्रधानों को जाने लगे। ‘कुछ ने गांवों को सेनेटाइज करने के तरीके के फोटो और खाना बनाने से लेकर उन्हें पैकेट में बंदकर वितरित करने के तरीके के फोटो  भी फारवर्ड कर दिए।
 चारों तरफ मुस्कराट  बिखर गई। ऊपर को भी मैसेज सैंडकर दिया कि गांवों में कोरोना के खिलाफ अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए  जा रहे हैं। इसका बहुत ही  अच्छा रिजल्ट आ रहा है। ऊपर से अच्छे काम के लिए ईमेल पर एप्रीसिएशन लैटर  आ गया। साहब गद्गद् ।
सायं को खेत से काम करके घर लौटे  प्रधानजी ने लड़के से पूछा-‘‘ देख इसमें क्या कोई मेसेज आया है’’? बच्चे ने देखा-‘‘पापा यह तो अंग्रेजी में है’’।
घर पर कई किसान भी आए हुए थे। उन्होंने पूछा-‘‘ क्या है प्रधानजी’’?
 -‘‘कंपनी के मैसेज आते रहते हैं’’। प्रधानजी ने फोन छीन अपनी जेब में रखा और हुक्का गुड़गुड़ाने लगे।

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