ऐसे थे राजीव गांधी

                       
                                         -डा. सुरेंद्र सिंह
1991, मई का एक दिन था। लगता है जैसे आज ही की सी बात है। सायं करीब  साढ़े सात बज रहे थे। कुछ-कुछ अंधेरा हो चला था। खेरिया एयरपोर्ट से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी खुली गाड़ी में सवार हुए। वही सफेद कुर्ता और पाजामा पहने,  उत्साह से लवरेज। । खेरिया मोड़,  ईदगाह बस अड्डे के सामने से वीआईपी  रोड और माल रोड होते हुए सर्किट हाउस के लिए जा रहे थे। रास्ते में कुछ स्थानों पर  कांग्रेसी कार्यकर्ता  खड़े थे। लोग आम दिनों की तरह  आराम से आ जा रहे थे। आज के दिनों जैसी कोई रोका-राकी, टोका-टाकी नहीं थी। लोग देखते, अरे ये तो  राजीव गांधी हैं। वे चौकते,  चिल्लाते- राजीव गांधी। राजीव मुस्कराते, किसी को हाथ हिलाकर तो किसी कोे हाथ जोड़ कर अभिवादन करते। जहां कहीं कुछ ज्यादा लोग दिखे, गाड़ी रुकवाई , लोगों से हाथ मिलाने लगे।  लोगों ने देखा पूर्व प्रधानमंत्री हर किसी से हाथ मिला रहे हैं तो होड़ लग गई।  गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ती फिर हाथ मिलाने का सिलसिला लग जाता।  रास्ते में एकाध स्थान पर उन्होंने यह भी पूछा,-‘‘ सभा में कैसी भीड़ है’’? वह आगरा फोर्ट के सामने स्थित रामलीला मैदान में चुनावी सभा को संबोधित करने आए थे।  शातिर कार्यकर्ताओं ने बताया- ‘‘पुलिस गाड़ियों को शहर के बाहर  रोक रही है। कई गाड़ियां रोक रखी हैं’’।  इस पर वह नाराज से हुए और रास्ते में मिले एक दरोगा को डांटा-‘‘ गाड़ियों को क्यों रोका जा रहा है’’? वह यह नहीं जानते थे शहर के दरोगा की हैसियत अपने क्षेत्र से ज्यादा नहींं है। कुछ नेता सभा असफल रहने की दशा में उसका ठीकरा पुलिस पर फोड़ने के लिए इस तरह की फीडबैक देते रहते हैं। 
उन्होंने ‘आज’ अखबार की जीप को अपने आगे चलने की छूट दे रखी थी। इस कारण उनकी हर गतिाविधि यहां तक कि  उनकी बातचीत भी मैं सुन पा रहा था। हमारी गाड़ी का ड्राइवर और प्रेस फोटोग्राफर केवल शर्मा भी  राजीव से हाथ मिलाने का लोभ संभरण नहीं कर सके। हालांकि इस चक्कर में शर्मा की हाथ की घड़ी कहीं गिर गई। राजीव गांधी की घड़ी भी किसी ने चुरा ली या गिर गई।
रात्रि करीब दस बजे  रामलीला मैदान में राजीव सभा में आए तो सभा में जो भीड़ थी सो थी, मंच पर भी कई दर्जन कार्यकर्ताओं की भीड़ थी। उस पर इतनी जगह नहीं थी कि वह आराम से खड़े हो सकें। वह कार्यकर्ताओं से सटकर खड़े हुए। मंच के ठीक सामने बैठे लोग शोर करने लगे। ऐसी जगह हमेशा छोटे स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए होती है। एक दरोगा उन्हें शांत करने के लिए भरसक प्रयास कर रहा था। फिर भी लोग शांत नहीं हुए तो राजीव मंच से भीड़ केबीच कूद पड़े। उन्होंंने दरोगा को झकझोरा। उन्हें लगा था कि शायद दरोगा ही लोगों को परेशान कर रहा है। भीड़ फिर भी शांत नहीं हुई तो उन्होंने पुन: मंच पर आकर माइक संभाल लिया।  अपने संबोधन की शुरुआत इस तरह की कि आगरा के लोग बहुत ही जोशीले और उत्साही हैं। सभा में सन्नाटा पसर गया।
आगरा के बाद उन्होंने यहां से करीब 60 किलोमीटर दूर  मथुरा में चुनावी सभा संबोधित की। वह सड़क मार्ग से गएऔर सड़क मार्ग से ही वापस सर्किट हाउस पर आए।  रात्रि के करीब तीन बज रहे थे। मेरे साथ हमारी प्रेस के तत्कालीन सिटी इंचार्ज ओम ठाकुर, आरबी सिंह यादव और विनोद अग्रवाल पहले से मौजूद थे। हमने इंटरव्यू के लिए बात करनी चाही तो वह सहज तैयार हो गए। सर्किट हाउस के बाहर ही खड़े-खड़े सारी बात हुईं। उन्होंने बहुत ही बेबाकी से स्वीकार किया कि उत्तर प्रदेश के पार्टी संगठन में जबर्दस्त गुटबंदी है। साथ में चिंता जताई और बड़े उद्देश्य के लिए एक साथ काम करने की उम्मीद भी जाहिर की। इसके बाद उन्होंने इत्मीनान से उस दरोगा की भी सुनी और अपनी गलती का अहसास किया। उन्होंने दरोगा को दिल्ली आने का निमंत्रण भी दिया। पूरी रात न सोने के बावजूद उनके चेहरे पर थकान नाम की चीज नहीं थी। 
इसे काल की नियति ही कहा जाएगा कि इसके कुछ दिनों बाद जब मैं अपनी खबरें समाप्त कर घर जाने को था तो तत्कालीन संपादक शशि शेखर ने मुझे अपने कार्यालय में बुलाकर सूचना दी तो मैं सन्न  रह गया। मेरे दिमाग में स्मृतियों का पहिया घूम गया। यदि किसी की बदनीयती होती तो आगरा में उन्हें कहां क्षति नहीं पहुंचाई जा सकती थी? रास्ते में आने के दौरान से लेकर सभा स्थल और सर्किट हाउस सभी जगह पर तो वह असुरक्षित थे। वह कितने सरल और सहज इंसान थे। आगरा में यह उनका आखिरी कार्यक्रम और प्रेस को दिया आखिरी इंटरव्यू था। 
इससे पहले राजीव जब पायलट थे तो इंडियन एयरलाइंस के विमान लेकर  अक्सर आगरा आते थे। वह हमेशा घर से अपना लंच बाक्स साथ लाते और दोस्तों से साथ कार्यालय में बैठ खाते, गप्पें लड़ाते। उस समय इंडियन एयरलाइंस का कार्यालय होटल क्लार्कशिराज के परिसर में था। बहुत ही मिलनसार थे। कोई अपरिचित इंसान यह कतई नहीं कह सकता था कि यह प्रधानमंभी का पुत्र है। उनके दोस्तों में उस वक्त ओलंपियन  जगबीर सिंह भी शामिल थे। एक रोचक वाक्या है। विभाग का एक कर्मचारी कई बार से प्रमोशन के लिए परीक्षा दे रहा था लेकिन वह हर बार कुछ नंबरों से रह जाता। एक दिन लंच के दौरान उसने  दोस्तों से चर्चा में ऐसे ही कहा शायद इस बार नंबर आ जाए, यदि नंबर नहीं आया तो बहुत तकलीफ होगी। दोस्तों ने कहा राजीव तो रोज दिल्ली जाते हैं उनसे कह दो वह  पता कर लेंगे। उसने राजीव गांधी से कहा तो उन्होंने कहा- इसमेंक्या है, वह पता कर लेंगे। सायं को राजीव जब विमान  उड़ाकर दिल्ली गए तो चैयरमैन के कार्यालय में उसकी जानकारी करने के लिए पहुंच गए। चेयरमैन ने समझा राजीव गांधी अपने दोस्त की सिफारिश कर रहे हैं। पहले इसी तरह इशारे से सिफारिशें हुआ करती थीं। प्रधानमंत्री के पुत्र की सिफारिश को टालने की किसमें हिम्मत थी।  दोस्त का प्रमोशन लिस्ट में टौप पर नंबर आया। राजीव गांधी को यह अहसास ही नहीं था कि उनके पूछने भर को सिफारिश माना जा सकता है।  ऐसे थे हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी।

Comments

  1. बहुत सुखद स्मृति.... ये काफ़ी हद तक सत्य है कि राजीव जी व्यवहार कुशल और काफ़ी हद तक भोले भी थे... उनके इसी भोलेपन का कुछ लोगों ने बेजा इस्तेमाल किया... उन्हें चाटुकारों ने घेर लिया जिसका परिणाम हुआ कि उनकी इमेज ख़राब होती चली गयी.... बाद में क्या हुआ जगजाहिर है....

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