सैमरी या मैगी

डा. सुरेंद्र सिंह
मैगी! मैगी! मैगी! बच्चे लोग मैगी के पीछे पड़े थे, ऐसे ही जैसे नौजवान लड़कियों के पीछे। यही चाहिए, केवल यही चाहिए, चाहे जान चली जाए। दावत में सौ तरह के व्यंजन हैं, एक से एक बढ़कर, जायकेदार लेकिन बच्चों का जमघट  मैगी के ही इर्दगिर्द लगता। बच्चे ही नहीं हर वय के लोग इसके दीवाने हो चले थे। वह तो भला हो केंद्रीय ग्रह मंत्री जेपी नड्डा का उन्होंने आंखेंं खुलवा दी। इसके बात तड़ातड़ इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगने लगा है। देखते ही देखते आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में प्रतिबंध लग गया है।  पर कहीं महीने-दो महीने, तो कहीं तीन महीने के लिए। इससे ज्यादा नहीं। ऐसा करने में गुंजाइश रहती है, प्रतिबंध को और आगे बढ़ा सकते हैं और यहीं तक भी रहने दे सकते हैं। इसके अपने-अपने गणित हैं।
मैगी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, कुछ तो यह जानबूझ भी इसके फटे में पैर रख रहे थे। जब यह हानिकारक है तो स्वास्थ्य बर्धक कौन सी है, हर चीज में तो मिलावट है, आटे से लेकर मिर्च-मसाले, दूध, घी, पनीर, लौकी, तोरई, गोभी, टमाटर, यहां तक कि पानी भी शुद्ध नहीं है, फिर अकेले मैगी में क्या रखा है? किसी में थोड़ा ज्यादा तो किसी में थोड़ा कम,  ‘जैसे सेर वैसे सवा सेर’। मैगी में तो मोनोसोडियम ब्लूटामेंट, एमएसजी, सीसा आदि ही हैं, खाने की बहुत सी चीजों में तो प्रतिबंधित पेस्टीसाइड तक शामिल हैंं। अब आदमी की पाचन शक्ति बढ़ रही है। जब मच्छर पहले से ज्यादा गरमी और सरदी झेल सकते हंै तो फिर इंसान तो इंसान है। सभी जीवों पर राज करने वाला।
चीजों से नुकसान के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन उन पर प्रतिबंध एकाध पर ही लगते हैं, वह भी कभी-कभी, शुभ घड़ी की तरह। इसके बाद प्रतिबंध ससम्मान खुल जाते हैं। यह भी कह सकते हैं, प्रतिबंध हटने के लिए ही लगते हैं। प्रतिबंध के कुछ थोड़े नुकसान हैं तो अनेक फायदे भी हैं। कई लोगों के लिए ऐसे अवसर ईद के चांद की तरह आते हैं। कभी-कभी प्रतिबंधों से ही पता लगता है कि कुछ हो रहा है, कुछ किया जा रहा है। वरना वैसे किसी को क्या पता चले जब ‘न सावन सूखे न भादों हरे’ हों।
ये मैगी क्या है, स्विटजरलेंड की मशहूर कंपनी नेस्ले की मैगी या सनफीस्ट के नूडल्स या देसी सैमरी (सेंवई)? स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मैगी दुनिया के १३० देशो में बिकती है। अपने देश में ही इसका अरबों रुपये का कारोबार है। अंदाज ऐसे लगा सकते हैं कि हाल ही में प्रतिबंध से कंपनी को दस हजार करोड़ रुपये की क्षति हुई है। लेकिन बिना किसी मिलावट शुद्ध गेहूं के आटे से बनी स्वास्थ्यबर्धक सेमरी उसके सामने पानी भरती नजर आ रही है। कोई जमाना था जब उत्तर भारत में रक्षाबंधन से पहले घर-घर उत्सव की तरह सेमरी बनतीं। यह आपस में मेलजोल बढ़ाती, यह बहन-बेटियों के घर की इज्जत बनती। स्वाद भी लाजवाब चाहे दूध के साथ खाओ, चाहे दही के साथ, चाहे नमकीन बनाओ, चाहे मीठी।  लेकिन अब मैगी ने उसके स्थान पर अवैध कब्जा कर लिया है, सैमरी इंसाफ के लिए मारी-मारी, फिकी-फिकी और चप्पल चटकाती फिरती है।  ‘मेक इन इंडिया’ वाले कहां सोए हुए हैं? कुछ तो करो, अपनी भारतीय सैमरी की लाज रखो।

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