बेड़ा गरक-9

डा. सुरेंद्र सिंह
कक्षाएं दो महीने पहले से चालू हैं लेकिन बीकॉम और बीए इतिहास का अभी तक एक भी पीरिएड नहीं लगा। कैसे लगें? इनके लिए कोई प्रवक्ता नहींं है? कोर्स पिछड़ा जा रहा है, छात्र हल्ला करते हैं। कहां से आ जाएं प्रवक्ता? मैनेजर खर्च बढ़ाने के लिए तैयार ही नहीं हैं। उन्होंने लक्ष्मण रेखा खींच रखी है, इससे आगे कदम मत बढ़ाना। चाहे जो हो। कालेज कमाने के लिए खोला है, गंवाने के लिए नहीं।
जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तब प्रिंसिपल ने बड़ी हिम्मत के साथ बात चलाई, शायद बात बन जाए नहीं तो दो टके का जवाब सुनने के लिए वह पहले से तैयार हैं। -‘‘सर, न हो तो कॉमर्स और इतिहास के लिए एक-एक प्रवक्ता रख लें? थोड़े दिनों के लिए। चार-पांच महीने के बाद हटा देंगे। इतने में ही काम चल जाएगा’’। मैनेजर की त्योरियां चढ़ते ही प्रिंसिपल सकपका जाते हैं। वह बात संभालने की कोशिश करें तब तक वह गोली दाग देते हैं- ‘‘अकल कहां चरने चली गई है? लगता है, तुम्हारे वश की बात नहीं है। कहां से लाओगे हर प्रवक्ता के लिए आठ-दस हजार रुपये प्रति माह?’’ चपरासी से-‘‘बुलाओ एकाउटेंट मेहरोत्रा को। कोई काम है, इस पर। फीस आती नहीं है....दिन भर कुर्सी तोड़ता रहता है’’। -‘‘सर हुकम?’’ -‘‘कहां तक पढ़े हो मेहरोत्रा जी? आप होशियार आदमी हैं’’। -‘‘सर बीकाम की है’’। -‘‘ठीक है, पुरानी बीकाम है?’’- ‘‘हां सर’’। -‘‘लो बन गया काम। कल से आप बीकॉम की कक्षाएं भी ले लिया करो’’। -‘‘सर कोर्स बदल गया है’’। -‘‘इससे क्या, पढ़ाई तो बीकॉम की ही है। जितना आता हो, उतना पढ़ा देना। सारा कोर्स कौन पूरा कराता है? याद नहीं हो तो किताब में से देख-देख कर पढ़ा देना। कम से काम दो घंटा रोज लेना। इसमें से ही आगे चलकर तुम्हारे ट्यूशन बंध जाएंगे’ ठीक है, तुम्हारा भी फायदा’’।
-‘‘अब बुलाओ हिंंदी के प्रवक्ता शर्माजी को। हिंदी की भी कोई पढ़ाई है। इसे पढ़ो तो ठीक, न पढ़ो तो ठीक। हिंदी तो सब जानते हैं’’। -‘‘सर कैसे याद किया?’’ -‘‘शर्माजी हिंदी का कोर्स कहां तक पूरा हो गया? -‘‘सर आधे से ज्यादा’’। -‘‘शाबाश। ऐसे ही लगे रहो। देखो हमने आपको इसलिए बुलाया है कि इस फौज में से किसी में इतना शऊर नही है कि बीए के छात्रों को इतिहास पढ़ा सके। आप मेहनती हो। वैसे इतिहास में है ही क्या? गाइÞड ले लेना। अपने पुस्तकालय में ही मिल जाएगी। उसके ऊपर अबरी चढ़ा लेना ताकि कोई उसका नाम न देख सके। देख-देख कर पढ़ाते रहना मजे से। इतिहास तो वैसे ही मजेदार सब्जेक्ट है’’। -‘‘सर वह तो ठीक है, पर मैने कभी पढ़ा ही नहीं है’’। -‘‘इतिहास कोई पहले पढ़ा जाता है, जब मिल जाए तभी पढ़ लो। चलो पुस्तकालय से पुस्तक उठाओ और कल से चालू हो जाइए, इससे आपकी भी नॉलेज बढ़ेगी’’।
-‘‘देखो प्रिंसिपल साहब, हो गया न काम? ऐसे अकल से काम लो। ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे’। खर्च बढ़ाने के लिए तो बहुत हैं आपको इसलिए रखा है कि कुछ बचत करो। आगे ध्यान रखना, फिर कभी शिकायत नहीं मिले’’।

Comments

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की