ऊपर का चक्कर

डा. सुरेंद्र सिंह
ऊपर का चक्कर बहुत महान होता है, जो काम हनुमानजी भी नहीं करा सकते उसे ऊपर का चक्कर करा सकता है।  सारी दुनिया एक तरफ और ऊपर का चक्कर एक तरफ। यदि दोनों में छिड़ जाए तो फतह सौ आने ऊपर के चक्कर की होगी।
मैंने डिक्शनरियों में देखा, गूगल पर बहुत तलाशा लेकिन इसका मीनिंग कहीं नहीं मिला। फिर भी ध्यान लगाया। ऊपर का चक्कर चीज ही ऐसी है- निराकार, साकार, अव्यक्त, चर-अचर, अजर-अमर, सर्वव्यापक। बहुत पहले भी इसका चक्कर था और अब जबकि लोग २१ सदी में पहुंचने के बाद २२ सदी में जाने की तैयारी चल रही है तब भी इसके प्रभाव में कहीं कोई कमी आती नहीं दिख रही।। जब जेम्सवाट की खोज पर बनी दुनिया में पहली रेलगाड़ी चली तो बहुत से लोग समझे, इस पर ऊपर का चक्कर है।
कई साल पहले एक बाबा आते थे, होटल में रुकते। प्रेस कांफ्रेंस करके बताते कि वह बाबरी मसजिद विवाद हल कर सकते हैं। मैंने पूछा कैसे? यह तो बहुत बड़ा काम है, इसके नाम पर जाने कितने ही दंगे फसाद हो चुके हैं। जो काम बड़े-बड़े नेता नहीं कर सके, सरकार भी इसके सामने लाचार है...। वह रहस्यपूर्ण मुद्रा में बताते- ऊपर के चक्कर से। मैं पूछता- यह ऊपर का चक्कर क्या होता है? वह बताते- ‘‘रूहों के माध्यम से।  उन्हें शांत करके’’। अगले दिन अखबारों में छपता।  बाबा की दुकान चलती रहती। 
पिछले दिनों मेरे एक मित्र ट्रेन में बिना टिकट धर लिए गए। बड़ी मुश्किल, बदनामी का डर। मोहल्ले में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते।  मैंने कोई उपाय न देख ऊपर का चक्कर चलाया।  टीटी के कान में कहा, -‘‘कहां हाथ डाल दिया, इनका ऊपर का बड़ा चक्कर है। बहुत काम के आदमी हैं’’। टीटी ने फौरन उन्हें सेल्यूट किया और सम्मान के साथ विदा किया।
मेरे एक रिश्तेदार के बेटे की नौकरी नहीं लग रही थी जाने कितने बार फार्म भरे, टेस्ट दिए। लेकिन नौकरी हाथ में आते-आते फिसल जाती।  पढ़ने में उससे जो बहुत कमजोर थे, वे बाजी मार ले गए। उसने भी ऊपर का चक्कर चलाया। पैसे तो खर्च हुए लेकिन काम बन गया। तब उसकी समझ में आया, बेटे से बेकार तैयारी के नाम पर मेहनत करा रहा था काम तो ऊपर के चक्कर से होते हैं।
गांव में खेत में बकरी घुस जाने को लेकर फौजदारी हो गई।  एक पक्ष ने दूसरे पक्ष के लोगों को लाठी-डंडों से से खूब पीटा। पुलिस ने पिटने वाले पक्ष को ही थाने में बंद कर दिया। उन्होंने खूब फरियाद की, शरीर के घाव दिखाए लेकिन पुलिस नही मानी। दूसरे पक्ष का ऊपर का जो चक्कर था। बड़ी मुश्किल से जान बची, ऊपर का चक्कर चलाकर।
उत्तर भारत के एक प्रमुख सरकारी हास्पिटल में भेड़ बकरियों की तरह मरीज भरे रहते हैंं।  ज्यादातर ठीक होते हैं तो कुछ भगवान को प्यारे हो जाते हैं। एक मरीज कई दिनों से भरती। एक दिन गांव के लोग एक तिलक छापे वाले आदमी को साथ लेकर आए। उसने मुंह से कुछ बुदबुदाया जैसे ध्यान लगा रहा हो, फिर बोला- ‘‘इस पर ऊपर का चक्कर है। यहां यह हरगिज ठीक नहीं होगा, कोई भी दवा करा लो, दवा काट  ही नहीं करेगी, जब तक इससे ऊपर का चक्कर नहीं हटेगा’’। गांव के लोग मरीज को हास्पिटल से यह कहते हुए उठा ले गए, अब गांव में बाबा से ही ऊपर के चक्कर का इलाज कराएंगे।
एक दिन मैं एटीएम से पैसे निकालने गया। मशीन के पास एक आदमी फोन पर चिल्ला रहा था-‘‘चाचा काम बन गया’’। फोन करने वाले के चेहरे पर आत्मविश्वास और संतोष का भाव था। खुशी भी झलक रही थी।  वह कहे जा रहा था- ‘‘फीस तो उसने ४४० रुपये ली लेकिन फायदा तुरंत हुआ, चाचा! ऊपर का चक्कर बताया है। पुड़िया में बंद एक गोली अपने सामने खिलाई थी। पानी भी पिलवाया था। पेट का दर्द तभी से बंद है। आठ साल से परेशान थी। कभी सिर में दर्द तो कभी पेट में तो कभी छाती में दर्द। डाक्टरों पर हजारों रुपये खर्च हो गए थे. लेकिन कोई फायदा नहीं। उसने मिनट भर में ठीक कर दिया। शनिवार को और बुलाया है। फिर कभी नहीं जाना पड़ेगा’’। जब उसने फोन बंद किया तो मैंने तपाक से पूछा-‘‘कौन है ऐसा भाई साहब?’’ बोला-‘‘बाबा जालिमदास’। बहुत पहुंचा हुआ आदमी है। कोई बात हो तो आप भी आजमा सकते हैं। उसकी ऊपर के चक्कर पर बहुत पकड़ है’’।


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