गली के कुत्ते

डा. सुरेंद्र सिंह
गली के कुत्ते भी कुत्ते होते हैं, उनमें और दूसरे कुत्तों में इतना ही अंतर है, जितना फाइव स्टार आदमी और सड़क के आदमी में। फाइव स्टार कुत्ते कारों में चलते हैं, एयरकंडीशंड में रहते हैं लेकिन गली के कुत्ते गलियों में जहां अक्सर भों-भौं करते कुटते-पिटते, डांट खाते रहते हैं। फाइव स्टार कुत्ते केवल अपने मालिक की रक्षा करते हैं, लेकिन गली के कुत्ते पूरे मोहल्ले की। कितना ही इन्हें तिरस्कृत कर लो, लात-लाठी से मार लो, लेकिन ड्यूटी से विचलित नहीं होते। हर वक्त सोते-जागते एक ही धुन, क्या मजाल रात में कोई अनजान इंसान आ जाए। यहां तक कि अपनी बिरादरी वालों को भी फटकने नहीं देते।
ये अपनी ड्यूटी के लिए ऐसे ही मुस्तैद हैं जैसे शिक्षा मित्र और अनुबंिधत कर्मचारी। ये ड्यूटी देते हैं, परमानेंट वाले वेतन और रिश्वत लेते हैं। गली के कुत्ते रिश्वत नहीं मांगते। चुगलखोरी नहीं करते। विश्वासघात भी नहीं करते।  जिम्मेदारी से नहीं हटते।  कुत्ते जिसकी खाते हैं, उसकी बजाते हैं और आदमी...
जब कोई फाइव स्टार कुत्ता कार में जा रहा होता है तो वह गली के कुत्तों को ऐसे घूरता है-जैसे उसके सामने वे तुच्छ प्राणी हों। गली के कुत्ते उसे झपटने को कार के पीछे दौड़ लेते हैं, आ तुझे देखते हैं, साले, एक बारगी कार से भी आगे निकल जाते हैं। तब कार मालिक को उसकी प्राण रक्षा करनी पड़ती है।
गली के कुत्ते भी अलग-अलग भांति के होते हैं। कुछ कटखने फाड़ कर रख दें, तो कुछ गऊ जैसे। मेरी गली के कुत्ते बासी रोटी नहीं खाते तो नहीं खाते। कम्बख्तों के सामने कितनी ही बार डालो, प्यार से बुलाओ, इतनी इज्जत रख लेंगे कि बुलाने पर आ जाएंगे लेकिन सूंघा और इस तरह हट जाते हैं जैसे रोटी नहीं, जहर हो। मुंह उठाकर ऐसे देखते हैं-‘‘मुझे क्या उल्लू समझ रखा है? ’’ पराठे खाते हैं, वे भी ताजी।
एक परिवर्तन और आ रहा है, कुत्ते आलसी हो रहे हैं। अब ‘स्वान निद्रा बको ध्यानं’ कह बच्चों को प्रेरित नहीं कर सकते। बच्चे झट से मुंह बिगाड़ देंगे, देखो, सामने गाड़ी आ गई, कु्त्ता नहीं हट रहा।  शायद यह गुण ये आदमियों से ले रहे हैं।
जब सब बदल रहे हैं, देश की तरक्की हो रही है अच्छे दिन आ रहे हैं तो कुत्ते ही क्यों पीछे रहें।  मेरी दादी बताती थी, १९ वीं सदी में अकाल के दौरान आदमी जिंदा रहने को पेड़ों की छाल तक खा गए। अब लोग रोटी नहीं पिज्जा पसंद करते हैं। किसी जमाने में गुड़ को मिठाई कहते थे, अब टॉफी पर आ गए हैं।  पहले सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते थे, अब हवाई जहाज से चलते हैं। अपनी संस्कृति को छोड़ पराई को पसंद कर रहे हैं। रहना-सहना, पहनना-ओढ़ना, गाना-बजाना, आना-जाना सब बदल गए हैं।  २१ सदी में आ गए हैं।  धरती को छोड़ चद्रमा और मंगल पर बसने की तैयारी है तो तरक्की के  इस दौर में कुत्ते क्यों न आगे बढ़ें?
मोदी पहले चाय बेचते थे, केजरीबाल धरना करते थे, अब वे राज कर रहे हैं। पहले जो काम नहीं करते थे, वे काम कर रहे हैं और जो काम करते थे, वे शासन कर रहे हैं। पुराने मोबाइल फोन बेकार हो गए हैं, नए एंड्रोयड फोन आ गए हैं। इनकी जगह और नए किस्म के फोन आने जा रहे हैं जो आपका हेल्थ चेकअप भी करेंगे।
इसलिए अब ये मत सोचो-कुत्ते क्या-क्या कर रहे हैं बल्कि यह सोचो कि वे आगे और क्या-क्या कर सकते हैं। कुत्ते भी कालोनियां बनाकर रह सकते हैं। सात पुश्तों के लिए जोड़ना शुरू कर सकते हैं। अभी तक आदमी कुत्तों को पालते हैं, आगे कुत्ते भी आदमियों को पाल सकते हैं। आदमी अपने प्यारे कुत्तों के नाम संपत्ति की वसीयत कर जाने लगे हैं। थोड़ा सा ही तो फासला है, इंतजार करिए, वक्त  बदलने में अब देर ही कितनी है? आदमियों ने कुत्तों से दुम हिलाना, भौंकना आदि काफी कुछ अपने मतलब की आदतें सीखना शुरू कर दिया है। अब आदमी आदमी की कुत्तों से तुलना करने लगे हैं। साले कुत्ते तुझे देख लूंगा। गली का कुत्ता।

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