क्या अब भी श्रीराम मंदिर की जरूरत?

                 
                                                डा. सुरेंद्र सिंह
क्या अब भी कोई मंदिर बनाए जाने की जरूरत है, खासतौर से धार्मिक नगरी  अयोध्या में भगवान श्रीरामजी का भव्य मंदिर? यह एक स्वाभाविक सा सवाल है जो हर उस पढ़े-लिखे इंसान के जेहन में कौंध सकता है, जो कोरोना काल के इस भयावह दौर से गुजर रहा है और विज्ञान में आस्था रखता है।
अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की बात यहां इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि जिस आस्था के साथ यह लड़ाई पिछले साढ़े तीन सौ साल से लड़ी गई, इसके लिए सैकड़ों निर्र्दोषों की जानें गई, संपत्ति का भारी नुकसान हुआ है, देश की राजनीति में भी काफी उतार- चढाव आए।  भारी जद्दोजहद के बाद अब इसके लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नौ नवंबर 2019 को आदेश जारी कर रास्ता साफ कर दिया है। अदालत  के आदेश पर सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीथ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन कर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है।  मंदिर के लिए 2.77 एकड़ वह जमीन मिल गई है जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले तीनों पक्षों के बीच विभाजित करने के आदेश दिए थे। इसके अलावा पीवी नरसिंह राव सरकार द्वारा अधिग्रहीत 67.703 एकड़ जमीन भी दे दी गई है।  मंदिर के निर्माण पर करीब 50 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।  इसके लिए चंदा आना  शुरू हो गया है। वास्तुविद सोमपुरा के अनुसार मुख्य मंदिर 270 फुट लंबा, 145 फुट चौड़ा और 141 फुट ऊंचा  अष्टभुजीय होगा।  इसके अलावा सरयू नदी के किनारे 251 फुट ऊंची श्रीरामजी की विशाल प्रतिमा स्थापित की जाएगी।  पांच सौ करोड़ रुपये की लागत से अयोध्या में एयरपोर्ट भी बनेगा।
इसके अलावा अब मंदिर और मस्जिद का कोई विवाद भी नहीं रह गया है। अदालत के आदेश पर मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन दूसरे स्थान पर दे दी गई है। उम्मीद है कि ‘मंदिर यहीं बनाएंगे’ के नाम पर अब भविष्य की राजनीति  नहीं हो सकेगी।
कोई शक नहीं, भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, वह  हर हिंदुस्तानी के घट-घट में वास करते हैं। ऐसे राम के बिना दुनिया की कल्पना नहीं की जाती है। लोग  मरते-जीते, उठते-बैठते  राम का स्मरण करते हैं। बहुत से लोग अपने बच्चों का नाम राम के साथ जोड़कर इसलिए रखते हैं ताकि वे अपनी जिंदगी में  राम नाम  बार-बार लेते रहें। खास तौर से अंतिम समय में इसका विस्मरण नहीं हो। ऐसा लोक विश्वास है कि मरते समय यदि राम का स्मरण हो जाए तो जीवन धन्य हो जाता है। कोई भी शुभ कार्य राम के नाम के बिना नहीं किया जाता है।
कौन नहीं चाहेगा, ऐसे राम की स्मृति  और आदर्श को चिरस्थायी बनाया जाए। ताकि आगे की पीढ़ियां राम के साथ  तादाम्य  कर सकें, उनके आदर्शों  पर चलकर  जीवन को सार्थक कर सकें। लेकिन यह क्या मंदिर से ही संभव हो सकेगा? भव्य और आलीशान मंदिर से। जैसा कि विश्वास है, शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है, श्रीराम सर्वशक्तिशाली, सर्वव्यापक और अंर्तयामी थे। वह चाहते तो न केवल श्रीलंका बल्कि बाली का राज्य और बहुत सारे राज्यों को हड़पकर दुनिया के सबसे बड़े सम्राट बन सकते थे। वह अपने लिए और अपने परिवार के लिए ताजमहल या मिश्र के पिरामिड जैसी या इससे और भी कोई बड़ी चीज बनवा सकते थे।  लेकिन  उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। तभी तो अयोध्या में उनके काल के अवशेष के नाम पर एक ईंट नहीं है। उनका ऐसी दिखावटी चीजों में विश्वास नहीं था। वह तो अधर्म का नाशकर धर्म की स्थापना के लिए अवतरित हुए। उन्होंने मानव जीवन और राजनीति के लिए जो आदर्श स्थापित किए वे अब बहुत दूर  की कौड़ी हो गए हैं। इनके लिए कोई राजनीतिज्ञ प्रयास नहीं करता है।
अब जबकि वैश्विक महामारी के प्रकोप को लोग अपनी खुली आंखों से देख रहे हैं कि देश और दुनिया के बड़े-बड़े विशालकाय,  प्रागैतिहासिक मंदिर जिनमें साक्षात  भगवान का वास माना जाता है, जो भगवान के लीला स्थलों सेजुडे हैं,वे अब इंसान की मदद करने में असहाय हैं। ऐसे सभी मंदिरों के पट यह मानते हुए बंद कर दिए गए हैं कि ये अब इंसान के किसी काम नहीं आएंगे। इस दौरान लोग यदि मंदिरों में दर्शन के लिए आए तो कोरोना की चपेट में आ सकते हैं जिसका कोई इलाज नहीं है। ये मंदिर  किसी की कोई मदद नहीं कर सकते। कोरोना के इस मामले से लोगों की न केवल मंदिरों  बल्कि अन्य सभी धार्मिक स्थलों में आस्था को ठेस लगी है। ऐसी स्थिति में क्या अब भी श्रीरामजी का मंदिर बनाने की आवश्यकता है?
किसी भी सरकार की पहली आवश्यकता नागरिकों का जीवन सुखी, सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने की होती है। ये आवश्यकताएं देश, काल और परिस्थिति के अनुसार  बदलती रहती हंै। मौजूदा सरकार को भी यह अच्छी तरह ज्ञात होना चाहिए कि अब उसकी  पहली प्रथमिकता क्या होनी चाहिए?  कोरोना अपने चरम की ओर है, सरकार अपने नागरिकों की मदद करने में कमजोर पड़ रही है. दूसरे लोगों की छोडं़े केवल कोरोना संक्रमितों को ही लें तो इनके लिए न तो पर्याप्त हास्पिटल हैं और न वैंटीलेटर आदि जीवन रक्षक उपकरण। यहां तक कि जांच के लिए भी अच्छी सुविधा नहीं है। मरीजों के लिए स्कूल, कालेजों, होटलों और रेल के डिब्बों में इंतजाम किया जा रहा है। ऐसा न हो, अमेरिका या यूरोप जैसी आपदा हमारे यहां पैदा हो जाए, तब क्या होगा? सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
भगवान श्रीराम को और भी कई तरह से याद किया जा सकता है। उनके नाम पर अयोध्या में ही मेडिकल कालेज और  उच्च श्रेणी के अस्पताल बनाए  सकते हैं। विश्वविद्याल और स्कूल, कालेज स्थापित किए सकते हैं। श्रीराम को स्कूल कालेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जा सकता है। बीए, एमए  में हिंदी में पहले से ही तुलसीदास कृत रामचरितमानस पाठ्यक्रम का हिस्सा है। अन्य सारे पाठ्यक्रमों  से इसे शामिल किया जा सकता है।
यही नही प्रभु  श्रीराम की नीतियों पर शासन चलाने के लिए  यानि फिर से रामराज्य लाने के लिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है। ऐसी नीतियां बनाई जा सकती हैं, जिससे भगवान श्रीराम के आदर्श शासन व्यवस्था में अपनाए जा सकें। उनकी नीतियों का अनुसरण किया जा सके। देश में बड़े-बड़े स्थलों का राम के नाम पर नामकरण किया जा सकता है। उनके नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं चलाई जा सकती हैं। और भी बहुत बहुत से काम किए जा सकते हैं। देश का नाम बदलकर श्रीराम किया जा सकता है। सारे देश को राममय बनाया जा सकता है। पार्टी का नाम राम राज्य पार्टी रखा जा सकता है। यदि चढ़ावे और भोलेभाले लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ही मंदिर बनाना है तो फिर इस पर किसी तरह की चर्चा  की आवश्यकता नहीं रह जाती ।

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