हाथ धोते रहना


                     

                         
                                              -डा. सुरेंद्र सिंह
करन सिंह साबुन से बीस सेकंड मल-मल कर हाथ धोकर बाथरूम से निकला ही था, यकायक  फोन की घंटी  बजी, देखा  चालीस साल  पुराने दोस्त का फोन। मन मयूर खुशी से झूम उठा, चलो अपने दोस्त अभी भूले नहीं हंै, कुछ तो अभी हैं चाहने वाले। उसके साथ की अनेक स्मृतियां दिमाग में घूम गई। फिर एक क्षण में ही मन आशंका से भर गया- क्या बात हो गई? क्यों फोन  किया। क्या काम हो सकता है? आजकल बिना काम किसे  बात करने की फुर्सत?  मन हुआ फोन नहीं उठाए। फिर कुछ सोच कर रिसीव कर लिया। उधर से आवाज आई -‘‘अरे भाई कैसे हो, कोरोना है, बचकर रहना, एक-एक घंटे बाद हाथ धोते रहना। मास्क लगाना नहीं भूलना,  घर में ही रहना, हमारे और आप जैसों के लिए ही सबसे ज्यादा खतरा है’’। फिर कोरोना से बचने के और तरीके बताने लगा। यह चर्चा करीब बीस मिनट चली। तब जाकर फोन बंद हुआ। सोचा, क्या एक बार फिर से हाथ धो आए?  धोए भी तो कितना धोए। वह हाथ धो-धोकर पहले से ही परेशान है। दिन में कई बार हाथ धोता है।  खाना खाए  या नहीं खाए लेकिन हाथ जरूर धोता रहता है। अखबारों  को देखो तो हर पन्ने पर वही कोरोना से बचाव। मोबाइल भी इसके अनगिनत मैसेज और वीडियो से भरा पड़ा है ।
इसके बाद  वह सुबह की चाय पीने को प्याला उठा रहा था, लड़की की ससुराल से फोन आ गया, -‘‘समधी साहब,  बचकर रहना, कोरोना से, हाथ धोते रहना, घर से बाहर मत निकलना’’ बगैरा-बगैरा। वह कैसे उन्हें समझाए, उसे उनसे ज्यादा मालूम है,कोरोना हो गया तो उसका कोई इलाज नहीं है, ज्यादा उम्र वालों पर ही इसका ज्यादा संक्रमण है। पर मना भी करे तो कैसे? कुछ कह दे तो बात का बतंगड़ बन जाए। नई-नई रिश्तेदारी है। बीस-पच्चीस मिनट में जैसे-तैर्से ंपड छुड़ाया। इतनी ही देर में सब्जी वाला ठेल लेकर दरबाजे के बाहर आ गया, सोचा सब्जी ही ले ले। वह बाहर आया ही था,सामने वाले त्रिपाठी  जी आ गए। वह भी सब्जी  ले रहे थे। समझाने लगे-‘‘भाई साहब, जरा बचकर रहना आदि-आदि।
वह सब्जी अंदर रखकर ठेल वाले को पैसे देने पुन: बाहर आया ही था कि निगम साहब रास्ते से निकल  रहे थे, करन सिंह ने उनसे औपचारिकतावश हालचाल क्या पूछ लिए। वह भी सलाह देने के लिए पीछे पड़ गए-‘‘अंकल जी, बचकर रहना, हाथ -----’’। फिर वही हाथ। क्या करे क्या नहीं करे इन हाथों का? हर कोई आ  चला आ रहा है, इस अदना सी बात की सलाह देने के लिए।  एक जाता है, दूसरा आ जाता है।  अरे भाई मैं पढ़ा लिखा हूं, जाहिल नहीं, ये बाल ऐसे ही सफेद नहीं हुए। अपना-भला-बुरा सब जानता हूं। लेकिन कोई माने तब न,‘ मान न मान, मैं तेरा मेहमान’। वह  सिर पर पैर रखकर भागा,  फिर कोई आ जाएगा और बिना पूछे हाथ धोने की सलाह  देने लग जाएगा।
उसने घर के अंदर आकर ठंडी  सांस ली। कसम खाई, न बाहर जाएगा और न कोई सलाह  देगा। तब तक  अमेरिका से बेटे का फोन आ गया-‘‘पापा बचकर रहना, आपके लिए सबसे ज्यादा खतरा है ’’। वह हाथ धोने बगैरा-बगैरा की सलाह देने वाला ही था.उसने सुनाई, - ‘‘अब तू इतना बड़ा हो गया क्या? बाप को सलाह देने लगा है’’। इसके बाद दे दनादन कई गाली सुना डाली। जोर-जोर की आवाज सुनकर पत्नी आई- ‘‘क्यों नाराज हो रहे हो, बच्चे पर,  एक तो वह इतनी दूर पड़ा है, आपको तो उसकी कोई चिंता नहीं है, वह किसी तरह टाइम निकालकर फोन कर रहा है, आपके भले के लिए ही तो बचकर रहने की सलाह दे रहा है। धो लिया करो हाथ, वैसे ही पड़े-पड़े क्या करते हो, हाथ धोने में भी पटका पड़ रहा है’’। पत्नी ने फोन छीन लिया। बेटा- ‘‘आजतक ये बहुत चिड़िचिड़े  हो गए हैं। चिंता मत कर मैं इनके हाथ धुलवाऊंगी’’।
करन सिंह ने फोन बंद  कर अलमारी में रख दिया। ‘न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी’। अब देखेगा, आए कोई सलाह देने, हाथ-पैर तोड़कर रख देगा, उसके। मन हलका करने के लिए सोचा टीवी खोल लूं, समाचार का चेनल लगाया, उद्घोषक कह रहा था-, ‘‘कोरोना से बचने के लिए चलो हाथ धो आइए, टीवी तब तक आपके लिए रुका रहेगा’’।  स्क्रीन पर हाथ धोते हुए सीन आने लगे। उसने चैनल बदल कर  फिल्म पर लगा दिया, वहां भी यही राम कहानी। उसने खीजकर टीवी बंद कर दी।
फिर वह बिस्तर पर आकर लेट गया। यहां तो कोई सलाह देने नहीं देगा। तब तक घर में काम बाली आ गई। सब उधर-उधर पड़ा था। कोरोना के चक्कर में कई दिन से आई नहीं थी। फोन करके बुलाया था।  कमरे में झाड़ू लगाने जा रही थी, बोली-‘‘अंकलजी आप बचकर रहना। आप तो होशियार हो-----’’। वह उसे होशियार भी बता रही थी साथ में हाथ धोने और घर से बाहर नहीं निकलने आदि की सलाह भी देती आ जा रही थी।  वह उठा और दोनों कानों मेंकसकर रुई लगा ली।


                   
                       

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