कितनी बदली-बदली सी होगी दुनिया

                   
                                                 डा. सुरेंद्र सिंह

कोरोना तो जाएगा, जो आया है, उसे जाना ही होगा, उसे कोई नहीं रोक पाएगा लेकिन जाते-जाते अपनी निशानी जरूर छोड़ जाएगा। आदमी के स्टेटस का सिंबल बदल जाएगा। जो इंसान अभी तक अपने रूप- रंग, धन-दौलत, मान-मर्यादा पर इतरा रहा था, उसकी हेकड़ी निकाल जाएगा।
 जैसे अब दोपहिया चलाने वाला किसी को टक्कर मारके चला जाए, उसे चेहरे से नहीं पहचान सकते क्योंकि वह हेलमेट लगाया हुआ होता है, वैसे ही अब राह चलते लोगों की पहचान मुश्किल होगी,  खास भाई क्यों नहीं हो, चाहे पत्नी हो, हर एक के चेहरे पर  शानदार मास्क लगा होगा।  मास्क के भीतर से कौन मुस्करा रहा है और कौन गुस्सा कर रहा है, इन भावों का क्या होगा या भाव ही मर जाएंगे। मास्क का  बाजार इतना बढ़ जाएगा कि गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले  तक में मास्क उपलब्ध होंगे । तरह-तरह के फेशनेबिल मास्क आ जाएंगे। कुछ पारदर्शी, कुछ रंग- बिरंगे, कुछ केवल मुंह ढंकने वाले, कुछ पूरे चेहरे और  बालों तक को कवर करने वाले। मेडीकेटेड, आईएसआई मार्का, इंपोर्टेड मास्क भी मिलेंगे। संपन्न लोग सोने, चांदी के भी मास्क बनवा कर अपने रुतबे दिखा सकते हैं। राजनीतिक लोग अपनी पार्टी के एजेंडे के अनुसार ऐसे मास्क बनवा सकते हैं जिससे पार्टी का भी प्रचार हो जाए और बीमारी से भी बचे रहें। सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे।
लेकिन ऐसी स्थिति में क्रीम पाउडर के बाजार का क्या होगा। अभी जो पुरुषों और महिलाओं की तरह-तरह की क्रीमों से बाजार और टीवी चैनल अटे पड़े हैं, उनका  भगवान ही मालिक है। मास्क के भीतर कौन सुंदरता निखार रहा है?  कोरोना के नाम से विभिन्न प्रकार की दुकानें खुल जाएंगी। मार्केट भी बन सकते हैं। कोरोना का नाम खूब फले- फूलेगा। ज्ञानी लोग इसके संस्मरणों पर पोथी लिखेंगे। वीडियो और हिट फिल्में भी बन सकती हैं। नामी गुंडों और बदमाशों को कोरोना के नाम से विभूषित कर सकते हैं।
 हाथ मिलाने और चहक कर गले मिलने से बिदकेंगे, कुछ तो लड़ने पर उतारू हो सकते हैं। लोग इसे पुरानी घिसी-पिटी दकियानूसी परंपरा कह कर तिजांजलि दे देंगे।  हाथ जोड़कर नमस्ते को ज्यादा पसंद करेंगे। इसकी भी स्टाइल आ जाएंगी। शादी-समारोहों में भीड़ देखने के लिए तरस जाएंगे।  निमंत्रण पत्र मिल जाने के बावजूद लोग कन्नी काटेंगे, पता नहीं किसी को कोरोना हुआ तो? क्योंकि अभी तो इसका इलाज नहीं है? यदि इलाज आ जाएगा जिसकी पूरी संभावना है फिर भी आम जनता तक इसका लाभ पहुंचने में देर लगेगी।  इक्का-दुक्का केस निकलते रहेंगे। लोग डरते रहेंगे। परिवारीजन और रिश्तेदार मिल कर ही  ऐसे मामले निपटा लिया करेंगे।  कोर्ट मैरिज को बढ़़ावा मिलेगा। कोर्ट मैरिज में भी आन लाइन का प्रचलन ज्यादा होगा।  मैरिज होम, बैंडबाजे का धंधा प्रभावित होगा। नेताओं की बड़ी-बड़ी सभाएं इतिहास बन जाएंगी। सोशल मीडिया और मीडिया का बाजार बढ़ जाएगा। 
शिक्षा व्यवस्था पर व्यापक असर होगा। शिक्षा का स्वरूप पहले से ही बदलना चालू हो गया है। यह और भी बदलेगा। अभी भी कुछ शिक्षा आन लाइन दी जाने लगी है, इसमें और बढ़ोत्तरी होगी। कार्यालयों के स्थान पर घरों से ही काम कराने को बढ़ावा मिलेगा।  औद्योगिक संस्थानों ,वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में बड़े पैमाने पर छंटनी होगी।  करोड़ों लोग बेरोजगार होंगे। जो लोग नौकरी के लिए बचेंगे, उनकी सेलरी  भी कम की जा सकती है क्योंकि उनके स्थान पर कम पैसों पर काम करने के लिए लोग तैयार होंगे।
बड़े-बड़े मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल बंद हैं।  बड़े-बड़े धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजनों पर रोक लगा दी गई है।  दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में दुनिया भर के तबलीगी समाज के हजारों लोग इस विश्वास के साथ एकत्रित हुए थे कि इस्लाम धर्म का प्रचार करेंगे। हमारे देश में किसी भी धर्म के लोगों को अपने धर्म के प्रचार की छूट है।  कार्यक्रम के दौरान इस तरह की तकरीरें की गई कि कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हालात गवाह हैं कि उनमें करीब एक दर्जन जमाती मर चुके हैं तो सैकड़ों बीमारी की हालत में अस्पतालों में भर्ती हैं, उनमें से कितने लोग  बच पाएंगे इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि वे बचेंगे भी तो अपनी इम्युनिटी पावर और डाक्टरों की बेहतरीन देखभाल से। अल्लाह की दया से नहीं।   दुनिया अपनी आंखों से देख रही है कि चाहे कोई भगवान  हो, किसी भी धर्म का हो, कोई भी धर्मस्थल हो, कोई भी ताबीज या गंडा,  कोरोना पीड़ित का इलाज करने में अममर्थ है, शारीरिक दूरी (सोशल डिस्टिेंसिंग) ही इसका बचाव है।  इससे धर्म की दुकानों का प्रभाव घटेगा और साइंस के प्रति विश्वास में वृद्धि होगी। धर्म के प्रति अंधश्विास में कमी आएगी।
लोग अभी तक काम के लिए मशीन बने हुए थे हाय काम और काम, और पैसा, और पैसा। किसी  को संतुष्टि नहीं हो रही थी। दुनिया के अमीर देशों में लोगों को देख रहे हैं कि बड़े-बड़े पैसे वाले विवश हैं, चाहे कोई कितना भी रसूखदार हो, कोई काम नहीं आ रहा है। दोनों विश्व युद्धों ने पश्चिमी दुनिया को जिस तरह क्षणवादी (अस्तित्ववादी) बना दिया था, वैसे ही यह महामारी लोगों के जीवन के संबंध में सोच-समझ में परिवर्तन लाएगी।   लोग समझने लगेंगे। जिंदगी केवल पैसा नहीं है, सारे सुख पैसे में नहीं है, घर में परिवार के साथ रह कर भी अच्छा समय गुजारा जा सकता है।  लौक डाउन खुलने के बाद जब लोग घरों से बाहर निकलेंगे, सहमे-सहमे से होंगे। खुली हवा में सांस लेने के लिए बाहर आएंगे तो खुश तो होंगे, जैसे पिंजरे में बंद चिड़िया को जब बाहर निकाला जाता है तो वह घूम फिर कर फिर से वहीं ं आ जाती है क्योंकि तब तक उसे पिंजरे में रहने की आदत पड़ चुकी होती है। इसका असर इंसान की आदत पर भी पड़ेगा।
लौकडाउन के कारण  करोड़ों लोग शहरों से गांवों में आ गए हैं, कुछ लोग अभी भी रास्ते मेें अटके हुए बेहद तकलीफ झेल रहे हैं, उनके ख्राने-पीने के कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं। मजबूरी में ये सब अटके हुए हैं। इनमें से अनेक लोग अपने स्वजनों को खो चुके होंगे,  ये सभी लोग शहरों से सबक लिए हुए हैं, लौक डाउन खुलने पर इनमें से बहुत से फिर से शहर लैोटने की हिम्मत नहीं करेंगे।  वह कहेंगे, चाहे एक जून की खा लेंगे लेकिन शहर हरगिज नहीं जाएंगे, राम बचावे ऐसे शहर से।  इससे गांवों पर जीवनयापन का बोझ बढ़ेगा। शहरों में काम के लिए मेनपावर में कमी आ सकती है।
अभी तक लोग शाम होते ही यार-दोस्तों के यहां या क्लबों और रेस्तराओं में समय काटने के लिए चले जाया करते थे, इसमें भी परिवर्तन आएगा।  लोग एक दूसरे से जुदा-जुदा से रहेंगे। दोस्ती की औपचारिकताएं मोबाइल से पूूरी करेंगे। बहुत से लोग अपने बच्चों को विदेशों में भेजकर इतरा रहे थे, उनके तेवर ढीले पड़ जाएंगे। बहुत से तो अपने बच्चों को वापस बुला लेंगे, कहेंगे, रूखी-सूखी अपने देश की ही भली है।
सरकारें अभी जो स्थिति का मुकाबला करने के लिए लुटा रही हैं, उनकी आमदनी में भी कमी आएगी। सरकार में इफरात में कुछ नहीं होता है, सब नपातुला  है।  इसकी भरपाई के लिए सरकार को विकास कार्य तो सालों तक टालने ही होंगे। नागरिकों पर आर्थिक बोझ भी डालना होगा।  चाहे वह किसी भी तरह से हो, झेलना सब नागरिकों को ही होगा।
कोरोना महामारी किसकी देन हैं, कोई देश विशेष इसके लिए जिम्मेदार है या यह प्रकृति प्रदत्त है,  क्या इस हानि की भरपाई की जा सकेगी,? ऐसे बहुत सारे सवाल अपनी जगह हैं, बहरहाल इससे देश और दुनिया में बहुत सारे परिवर्तन होने जा रहे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है, किसी को संदेह नहीं है।  अर्थव्यवस्था तो बदलेगी ही, कोई वर्ग और व्यक्ति इससे अछूता नहीं रहेगा। देशों की स्थिति में बदलाव होगा।  सामाजिक तानाबाना और बहुत सी मान्यताओं में परिवर्तन होगा, जिंदगी को लेकर सोचने का नजरिया ही बदल जाएगा।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि यह दुनिया बदल जाएगी, महामारी से पहले और उसके बाद की जिंदगी एक जैसी नहीं रहेगी।

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