नाम में ही सब कुछ

 



 कोई-कोई कहता है, नाम में क्या रखा है? काम करो। घोंचू जमाना बदल गया है, काम करो, मत करो, नाम जरूर करो। नाम में ही सब कुछ है। नाम नहीं है तो कुछ नहीं है, जैसे बिन पानी सब सून। वैसे ही नाम बिना सब सून। पुराने जमाने में हमारे पूर्वज अपने नाम से बचते थे, चले गए बेचारे, कौन पूछ रहा है। किसी को पता हो तो याद करें। नए जमाने के लोग हैं, दूसरों की रचनाओं को अपने नाम से छपवा डालते हैं। दूसरे के कामों पर अपने नाम से पत्थर लगवा देते हैं। बाद में होते रहें विवाद, चलते रहें मुकदमे। इसमें भी नाम है। जितना ज्यादा उछलेगा, उतना ही नाम।

 इसीलिए हमारी सुयोग्य सरकारें काम की जगह नाम परिवर्तन का काम ज्यादा करती हैं। अनेक शहरों, रेलवे स्टेशनों के नाम रातोंरात बदल दिए। अकबर ने आगरा का नाम अकबराबाद किया, नहीं चला। शाहजहां ने दिल्ली का नाम शाहजहांबाद किया, नहीं चला। पहले पब्लिक की चलती थी, बने रहिए सम्राट। पर अब एक आदेश जारी करने की जरूरत है,किसी की क्या मजाल, कोई टस से मस हो जाए। हमेशा-हमेशा के लिए नाम अमिट। नाम बदलने के बहुत सारे फायदे हैं। हल्दी लगी न फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा। इलाहाबाद का नाम बदलकर फिर से प्रयागराज कर दिया। मुगलों का रट्टा ही खत्म। अब कभी सौ-दो सौ साल बाद कोई इसके नाम पर शोध करेगा तो उसे योगीजी के नाम का बार-बार स्मरण करना पड़ेगा। एक संत थे, उन्होंने देश के प्राचीन गौरव को स्थापित किया।

 आगरा में एक तेज तर्रार मंत्री जी ने पहले शाहजहां गार्डन का नाम बदलकर गीता गोविंद किया। जैसे ही पता चला कि इसका नाम तो पहले ही बदलकर मोतीलाल नेहरू हो चुका है तो नया आदेश जारी कर जोनल पार्क का नाम गीता गोविंद पार्क कर दिया। एक नाम ही है जिसे क्षण भर में बदला जा सकता है, काम कराने में तो सालों लग जाते हैं।

नाम बदलने में ज्यादा कुछ आता-जाता नहीं है, कागज के एक टुकड़े पर एक छोटा सा आदेश करना होता है, बमुश्किल चार-पांच लाइन का। वह भी बाबू करता है। आदेश जारी करने वाले को तो बस जीभ हिलानी होती है। इतने से ही बहुत की समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। आप कहेंगे, वह कैसे? भाई मान लीजिए, आपने ताजमहल का नाम बदलकर शिव मंदिर रख दिया। तब लोग मुमताज और शाहजहां को क्यों याद करेंगे। इतना टाइम किसके पास है। वह तो सोचेंगे भगवान शिवजी और पार्वती के प्रेम की यह अमर कहानी है। चाहेंगे तो दान पेटिका भी लगा सकेंगे।

 ऐसे ही आगरा किले का नाम अंगिरा सदन कर दें तो आगरा से मुगलों का रट्टा की खत्म। इसी तरह देश का नाम बदलकर इंडिया और भारत की जगहअच्छे दिनरख दें तो कई सा्रे कलंक धुल सकते हैं। तब कोई नही कह सकेगा कि आपका देश अंग्रेजों का गुलाम रहा, मुगलों का भी सैकड़ों साल कब्जा रहा। फिर भी कोई सिरफिरा कहे तो आप तपाक उसके गाल पर चांटा जड़ सकते हैं, अबे ओ पागल। गुलाम रहा होगा तेरा देश। हमारा देश तो अच्छे दिनहै। लो क्या कर लो बात। ऐसे ही बेरोजगारी का बदलकर रोजगार किया जा सकता है, भुखमरी और मृत्यु के नाम बदलकर तमाम सारी समस्याओं का जड़ से उन्मूलन किया जा सकता है।

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