चीतों से किया जाता था हिरनों का शिकार

 

       




                               

 देखिए अब क्या समय आ गया है, नामीबिया से आठ चीते लाकर मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय अभ्यारण्य में छोड़ जाने पर देश भर में उत्साह है क्योंकि सात दशक बाद देश में फिर से चीते आए हैं। चीतों के आने के कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिवस से जोड़कर और महत्वपूर्ण बना दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये चीते यहां के वातावरण में पनप पाएंगे। क्योंकि दुनिया भर में इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। दूसरे संरक्षण की अवस्था में ये प्रजनन में रुचि नहीं लेते। विशेषज्ञों के अनुसार मादा चीता एक बार में नौ बच्चे तक को जन्म दे देती है। लेकिन वह साधारणतया तीन से पांच बच्चों को जन्म देती है। नर चीते एक साल में वयस्क तो हो जाते हैं लेकिन बच्चे पैदा करने की स्थिति में तीन साल में आ पाते हैं। और माता चीते दो साल में वयस्क हो जाती है। सब कुछ ठीक रहा तो पुराने दिन लौट भी सकते हैं जबकि चीते यहां हवा की गति से तेज दौडेंगे और गुर्राहट से वातावरण में सिहरन पैदा कर देंगे।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र देश के लिए यह कुछ अजीव सा नहीं है क्या ? क्योंकि यहां कभी बड़ी संख्या में चीते थे। सम्राट अकबर के संरक्षण में करीब एक हजार चीते थे, कोई- कोई इनकी संख्या सात-आठ  हजार भी मानता है। एक बार अकबर जयपुर में चीते को शिकार पर ले गए। उसने इतनी फुर्ती से हिरण का शिकार किया कि सम्माट अचंभित रह गए। तुज्के--जहांगीरी में लिखा है कि 1608 में राजा वीर सिंह देव जहांगीर को एक सफेद चीता दिखाने लाए थे। इससे पहले उन्होंने कभी सफेद चीता नहीं देखा था। जाहिर है कि तब अपने यहां कई रंग के चीते थे। पुरातत्व अधिकारयों के अनुसार मुगल काल में फतेहपुरसीकरी के पास अभ्यारण्य था जिसमें कई हजार चीते थे। यहां चीते पाले भी जाते थे । उनका इस्तेमाल शिकार आदि के काम में किया जाता ।  जहांगीर काल में 1613 में एक पालतू चीते ने शावक को जन्म दिया था।

कहा जाता है कि प्राचीन मिस्र के निवासी इन्हें पालतू जानवरों की तरह पालते थे और शिकार करने के लिए प्रशिक्षित करते थे। विशेष रूप से हिरनों का शिकार कराया जाता था। शिकार के लिए पट्टी बांध कर इन्हें छोटे पहियों वाली गाड़ियों या हुड़दार घोड़ों पर लादकर ले जाया जाता था। चीतों से शिकारी कुत्ते उत्तेजित हो जाते थे। कुत्ते शिकार को घेरकर लाते। पास में शिकार आने पर चीतों के मुंह से पट्टी हटाकर छोड़ दिया जाता था। तब चीते उन्हें आसानी से दबोच लेते। यहां से यह परंपरा फारसियों तक पहुंची और फारसियों से भारत में आई।

 अपने यहां कई राजपूत राजा और भरतपुर के जाट राजा शेर और चीतों का शिकार करते थे। खेमकरन सोगरियां के बारे में यह इतिहास प्रसिद्ध है कि एक साथ दो चीतों का शिकार कर सकते थे। एक बार एक प्रतियोगिता के लिए इन्हें दिल्ली दरबार में बुलाया गया तो उन्होंने एक साथ दो शेरों का शिकार करके अपने को शेरों का शेर साबित किया।आगरा के फतेहपुरसीकरी से अलवर और उससे आगे तक के जंगल में बड़े पैमाने पर चीते थे। महाराजा सूरजमल के समय में इतने शेर और चीतों का शिकार किया गया कि उनकी चर्म से एक शिविर तैयार हो गया। सूरजमल के बेटे रतन सिंह इसे खासतौर से अपने साथ ले जाते थे। वृंदावन में 1769 में इसी शिविर में उनकी हत्या कर दी गई थी।

बिल्ली कुल के ये चीते पूरी दुनिया में अपनी सबसे तेज चाल के लिए जाने जाते हैं, यह थोड़ी ही देर में 120 किलोमीटर प्रति किलोमीटर की रफ्तार पकड़ लेते हैं। इसमें इनके लिए सबसे सहायक होता है इनका फुर्तीला और सुगठित शरीर। आंखों से नीचे आंसू धब्बे जो आंखों के कोने से लेकर मुंह तक खिंचे होते हैं, सूरज की किरणों की चकांचौंध आंखों पर नहीं आने देते। इससे ये ज्यादा दूरी तक देख पाते हैं । इनके बड़े-बड़े नथुने फेंफड़ों को ज्यादा मात्रा में आक्सीजन पहुंचाते हैं। इसके अलावा इनके लचकदार पंजे और सिकुड़न योग्य नाखून भी ज्यादा रफ्तार पकड़ने में मददगार है। विशेषज्ञों के अनुसार यह तेज जरूर दौड़ते हैं लेकिन ज्यादा देर तक दौड़ नहीं पाते। आमतौर पर साढ़े चार सौ मीटर तक। कभी--कभी ज्यादा दौड़ने के दौरान इनकी मृत्यु भी हो जाती है। चीते की पूंछ स्टीयरिंग के रूप में कार्य करती है, वह उसे तेजी से मुड़ने की अनुमति देती है। क्योंकि शिकार बचने के लिए ऐसे घुमाव का प्रयोग करते हैं।

 यह भी है कि चीता आराम पसंद जानवर हैं। इसीलिए यह बहुत अच्छे शिकारी नहीं होते। यदि एक बार में यह शिकार को नहीं पकड़ पाते  तो उसे छोड़ देते हैं। इस प्रकार ये करीब 50 प्रतिशत शिकार करने में ही सफल हो जाते हैं। ज्यादा रफ्तार से दौड़ने के कारण ये इतने थक जाते हैं कि गिर पड़ते हैं। फिर एक दम से शिकार को खाने के लिए टूटते नहीं है। सुस्ताते हैं, कभी-कभी आधा घंटा तक सुस्ताते हैं। ये रात में नहीं दिन में शिकार करते हैं खासतौर से सुबह और सायं के समय जबकि मौसम में ज्यादा गर्मी नहीं होती। यह भी कहा जाता है कि ये चीते इंसानों पर हमला करने से परहेज करते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा चीते मौजूदा समय में दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण पश्चिम एशिया में हैं। ईरान के खुरासान भी कुछ चीते हैं। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ऐशियाई मूल के कुछ चीते हो सकते हैं। भारत में भी एकाध चीता अभी छिपे होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

              

 


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