उत्तर प्रदेश के हों आठ हिस्से
उत्तर प्रदेश का
विभाजन होना चाहिए, इस बात से तो सभी सहमत हैं लेकिन इसके
कितने हिस्से हों, इस पर एक राय नहीं हैं। कोई कहता है कि
इसके दो टुकड़े हों तो कोई तीन, चार, और पांच हिस्से किए
जाने के पक्ष हैं। इसके पीछे उनके राजनीतिक नजरिए हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश का
विभाजन नागरिकों की सुविधा, उनके विकास की संभावनाओं के मद्देनजर रखकर
किया जाना चाहिए न कि राजनीतिक स्वार्स्थलिप्सा के लिए।
राज्य पुनर्गठन आयोग की 1955 में दाखिल रिपोर्ट में आयोग के एक
सम्मानित सदस्य केएम पानिक्कर ने उत्तर प्रदेश का विभाजन कर आगरा को राजधानी बनाए
जाने की सिफारिश की थी। उसी साल डा. भीमराव अंबेडकर की प्रकाशित पुस्तक थाट्स
आफ लिग्विस्टिक स्टेट डिवीजन में तब उत्तर प्रदेश की आबादी 6.30 करोड़ बताते हुए इसके तीन टुकड़े किए जाने पर जोर दिया था। उनका स्पष्ट रूप से
कहना था कि दो करोड़ की आबादी पर एक राज्य बनाया जाना चाहिए। चौधरी चरण सिंह ने भी
उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में छोटे-छोटे राज्य बनाए जाने के लिए ताजिंदगी
प्रयास किए। केंद्र में गृह
मंत्री रहने के दौरान इसके लिए ड्राफ्ट भी तैयार किया।
उत्तर प्रदेश की
आबादी अब 23 करोड़ को भी पार कर रही है। वैसे तो अपने
यहां एक करोड़ का उत्तराखंड और 68 लाख का हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य भी
हैं। लेकिन ये पहाड़ी क्षेत्र हैं। यहां आबादी का घनत्व कम है। पंजाब और हरियाणा जैसे छोटे आठ राज्य इसमें से बनाए जा सकते है। ये दोनों
राज्य मैदानी क्षेत्र हैं जैसा कि उत्तर प्रदेश है।
उत्तर प्रदेश के यह आठ हिस्से इस प्रकार हो सकते हैं- नंबर एक- आगरा और अलीगढ़ मंडल को मिलाकर एक नया प्रदेश बनाया जा सकता है। करीब ढाई करोड़ आबादी वाला यह क्षेत्र पर्यटन, उद्योगों, खेती और व्यवसाय के
क्षेत्र में अग्रणी है। करीब पौने दो सौ साल तक साल यह क्षेत्र देश और प्रदेश की राजधानी भी रहा है। इसके लिए यहां सभी
अवस्थापना से संबंधित सभी सुविधाएं हैं। नागरिक इस क्षेत्र को
ताज प्रदेश के नाम से नया राज्य बनाए जाने के लिए सालों से आंदोलन चला रहे हैं।
दूसरा राज्य सहारनपुर
और मेरठ मंडल को मिलाकर बनाया जा सकता है। पंजाब से भी ज्यादा करीब तीन आबादी वाला यह क्षेत्र उद्योगों और कृषि के क्षेत्र में अग्रणी है। महाभारत काल में यह क्षेत्र दुनिया भर का केंद्र और आकर्षण की मिसाल रहा है। क्षेत्र के नागरिक पिछले कई सालों से पश्चिम प्रदेश
के नाम से अलग प्रदेश बनाए जाने के लिए यहां आंदोलनरत हैं। तीसरा प्रदेश मुरादाबाद और बरेली मंडल को मिलाकर बनाया
जा सकता है। तीन करोड़ से भी ज्यादा आबादी का यह
क्षेत्र गन्ना, धान की खेती, उद्योग और व्यवसाय के लिए देश भर में मशहूर है। नया राज्य बनने से क्षेत्र के
विकास को चार चांद लगेंगे। इस प्रदेश को रुहेलखंड प्रदेश, तराई प्रदेश या अन्य कोई नाम दिया जा सकता है।
चौथा प्रदेश गोरखपुर
और आजमगढ़ मंडलों को मिलाकर बनाया जा सकता है। यह क्षेत्र खेती और व्यवसाय के मामले
में किसी से कम नहीं है। बाबा गोरखनाथ की शिक्षाएं दुनिया भर को प्रभावित करती
हैं। उनके नाम पर इसे गोरख प्रदेश नाम दिया जा सकता है। पांचवां प्रदेश इलाहाबाद, वाराणसी और मिर्जापुर मंडलों को मिलाकर
बनाया जा सकता है। कृषि के अलावा शिक्षा और धार्मिक पर्यटन का यह बड़ा केंद्र है।
साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा आबादी के इस नए राज्य को गंगा प्रदेश नाम दिया जा सकता
है।
छठवां प्रदेश अवध प्रदेश के नाम से फैजाबाद और बस्ती मंडलों को मिलाकर बना
सकते हैं। करीब ढाई करोड़ आबादी का यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन का अंतरराष्ट्रीय
केंद्र बनेगा। सांतवां प्रदेश लखनऊ को राजधानी रखते हुूए उत्तर प्रदेश के मूल नाम
से बने रहने दे सकते हैं। इसके साथ देवीपाटन मंडल को मिलाया जा सकता है। कानपुर, झांसी और चित्रकूट मंडलों को मिलाकर
बुंदेलखंड के नाम से आठवां राज्य बनाया जा सकता है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक और
धार्मिक पर्यटन के अलावा उद्योगों का बड़ा केंद्र है। खेती के मामले में भी किसी से
कम नहीं है। इस क्षेत्र के नागरिक भी अरसे से नए राज्य के लिए आंदोलनरत हैं। यह प्रस्तावित रूपरेखा है। इसमें जरूरत के हिसाब से राज्यों के नाम और उनके
आकार में कोई भी संशोधन भी किया जा सकता है।
सवाल यह है कि इससे
फायदा क्या होगा? । अभी तक जो उत्तर प्रदेश विकास के मामले
में देश में सबसे नीचे के पायदान पर यानि बिहार के आसपास है तब इसका हर हिस्सा तरक्की के आसमान को छूएगा। अस्सी से सौ किलोमीटर के दायरे में हरेक को प्रदेश मुख्यालय की हर सुविधा मिल
सकेगी। सरकारी खर्चे बहुत घट जाएंगे। सड़कों का बेमतलव टूटना बंद हो जाएगा।
नौकरियों के ज्यादा अवसर पैदा होंगे। प्रशासन चुस्त और दुरुस्त हो जाएगा। तब मुख्यमंत्री प्रधानों और थानेदारों तक के नाम याद रख सकेंगे। हर क्षेत्र की
समस्या उनकी उंगलियों पर होगी। किसी मुख्यमंत्री को अपने क्षेत्र के दौरे के लिए
हवाई जहाज या हेलीकाप्टर की जरूरत नहीं होगी। वे गाड़ी से ही एक दिन में पूरे
क्षेत्र का चक्कर लगा सकेंगे। भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकेगी। न्याय सस्ता और
सुलभ हो सकेगा। तब हाईकोर्टों की शाखाओंं के लिए संघर्ष खत्म हो जाएगा। सभी नए
राज्यों को हाईकोर्ट मिल जाएंगे।
अब सवाल यह है कि इसके लिए खर्चा कहां से आएगा। पहली बात तो यह है कि इन नए राज्यों के लिए लखनऊ जैसे विधान भवन की जरूरत नहीं होगी। छोटे-छोटे राज्य होंगे। उनके सीमित विधायकों के लिए कमिश्नरियों के सभागारों और भवनों का इस्तेमाल कर सकते हैं।जहां तक राज्य स्तरीय कार्यालयों की बात है, उनके लिए भवन मिल जाएंगे। प्रशासनिक व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करते हुए कुछ प्रदेश स्तरीय कार्यालय जिलों में शिफ्ट किए जा सकते हैं। वहां कुछ न कुछ भवन खाली जरूर मिल जाएंगे। रही विधायकों और मंत्रियों की बात तो उन सभी के आवास शहरों में ही हैं। वे अपने आवासों पर रहकर विधान सभा की कार्रवाई में भाग ले सकते हैं। अधिकारियों के लिए मंडल और जिला मुख्यालयों में तमाम भवन किराए पर मिल जाएंगे। यदि जन सेवा ही करनी है तो बिना कुछ ज्यादा खर्च के भी काम चला सकते हैं। नए राज्य बनने से जो सरकारी खर्चों में कमी होगी, उसकी बचत से आगे जाकर नए भवन बना सकते हैं। दुनिया बदल रही है, इसलिए व्यवस्था को भी बदलना चाहिए। सरकारी पैसा जनता की खून पसीना की कमाई से आता है, उसका इस्तेमाल ऐश करने के लिए नहीं जनता की सेवा के लिए ही होना चाहिए।
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