तो शायद लता मंगेशकर पार्श्व गायिका न बन पाती?

 



                     

                                               

 भारत रत्न लता मंगेशकर शायद स्वर साम्राज्ञी तो क्या पार्श्व गायिका नहीं बन पाती यदि उनके साथ कुछ अनहोनी नहीं होती। पिता दीनानाथ मंगेशकर की तो बिल्कुल इच्छा नहीं थी कि वह फिल्मों में पार्श्व गायिका के रूप में गाए। परिवार के अन्य लोगों को उनके गायन पर भरोसा नहीं था। चाचा गोपाल दास को तो रत्ती भर भी नहीं था। बचपन में कोई ऐसा लक्षण या प्रतिभा उनके अंदर नहीं दिखाई दी जिससे यह कहा जा सका कि पूत के पांव पालने में दिखने लगे। यह तब था जबकि उसके परिवार का माहौल नाट्य और संगीत का ही था। पिता, चाचा और अन्य परिवारीजन इसी कार्य में लगे थे। लता मंगेशकर ने अपनी जिदगी में जो कुछ हासिल किया चाहे वह उसकी परिस्थितियां और मेहनत का परिणाम हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

 पिता की मृत्यु के बाद भारी आर्थिक तंगी में परिवार का खर्चा चलाने के लिए उसने जो जी तोड़ मेहनत की, इससे उनका करियर बदला। लोग कहते हैं कि जो कुछ होता है वह अच्छे के लिए होता है, यह बात उनके लिए भी एकदम सही साबित हुई। पिता दीनानाथ मंगेशकर नाट्य कंपनी चलाते थे। इसके साथ बच्चों को नाट्य और संगीत की शिक्षा भी घर पर देते थे लेकिन लता को इससे दूर रखते थे। पर वह दूर बैठकर भी पिता के हुनर पर नजर रखती थी। वैसे हर बच्चा अपने पिता जैसा बनना चाहता है इसलिए स्वाभाविक रूप से मन ही मन इनके मन में भी नाट्य और संगीत के प्रति आकर्षण था। एक बार पिता घर पर नहीं थे, बच्चे उनकी अनुपस्थिति में घर आकर रियाज करने लगे। वह गलत प्रस्तुति दे रहे थे. तभी बालिका लता आई और उन्हें टोका। फिर उन्हें सही अभ्यास के लिए खुद गाकर दिखाया। उसी दौरान पिता भी आ गए तो वह शरमा कर भाग गई । बाद में पिता ने देखा ने महसूस किया कि उसकी बच्ची भी अच्छा सीख सकती है। उसे बुलाया और उसके गायन के लिया उत्साहवर्धन किया। अगले दिन से लता को शास्त्रीय गायन सिखाने लगे। सुबह जल्दी जगाकर उससे रियाज कराने लगे।

 सबसे पहले उन्होंने वसंत जोगलेकर द्वारा निर्देशित मराठी फिल्म कीर्ती हसालके लिए गाया। लेकिन पिता ने उसे फिल्म से निकलवा दिया था। पिता का कहना था कि वह फिल्मों में पार्श्व गायन नहीं करेगी। यह भी कहते हैं कि वह फिल्म मार्केट में नहीं आ पाई। इसलिए उसका पहला गायन लोगों के सामने नहीं आ सका। एक महीने बाद पिता की मृत्यु हो गई। उस समय लता मात्र 13 वर्ष की थी। परिवार में अपने सभी भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। मजबूरी में परिवार का खर्चा चलाने के लिए न केवल गाना पड़ा बल्कि छोटे-मोटे अभिनय भी करने पड़े। इसके लिए बहुत भागदौड़ करनी पड़ती थी। कई बार गाने की रिकार्डिंग के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था। लोकल ट्रेन से आना जाना होता। पैदल भी चलना पड़ता।

 एक बार कोल्हापुर में एक नाट्य महोत्सव का कार्यक्रम था। इसमें लता को भी बुलाया गया। वह कोल्हापुर में परिवार के साथ अपने चाचा गोपालदास मंगेशकर के यहां ठहरी। साथ में और भी रिश्तेदार थे। गोपासदास ने लता को टोका कि वह महोत्सव में गा भी पाएगी या भइया का नाम बदनाम करेगी। इस पर लता रोने लगी थी। तब मौसी ने ढांढ़स बंधाया और चाचा को भी आश्वस्त किया कि यह अच्छा गाएगी। लता का असली नाम लता नहीं था।

बचपन का उनका नाम हेमा था, हेमा मंगेशकर। पिता के नाटकभावबंधनमें उन्होंने लतिका नाम की एक युवती का रौल किया । यह अभिनय इतना अच्छा रहा कि लोग लता, लता कहने लगे। फिर तो नाम ही लता पड़ गया। बचपन में एक बार कुंदनलाल सहगल की फिल्म चंडीदासदेखकर उन्होंने कहा था कि वह बड़ी होकर कुंदनलाल सहगल से ही शादी करेंगी लेकिन वह संगीत के लिए इतनी समर्पित हो गई कि कुंदनलाल तो क्या किसी से भी शादी नहीं कर पाईं।

 जहां तक स्कूली शिक्षा की बात यह इन्हें नसीब ही नहीं हुई। स्कूल में पहले दिन ही इनकी टीचर से अनबन हो गई। हुआ यह था कि वह अपने साथ छोटी बहन आशा को भी स्कूल ले गईं लेकिन उसे कक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई। इससे लता इतने गुस्से में आई कि वह फिर कभी स्कूल ही नहीं गईं।

 गायिका नूरजहां की खोज करने वाले उस्ताद गुलाम हैदर एक बार लता को अपनी आने वाली फिल्म में पार्श्व गायन के लिए स्टूडियो ले गए। उस फिल्म में कामिनी कौशल मुख्य भूमिका में थी। खूब प्रयास के बावजूद लता को वहां अवसर नहीं मिला। इसके बाद हैदर दिग्गज फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी के पास ले गए वह शहीदनामक फिल्म बना रहे थे। लता को सुनने के बाद मुखर्जी ने भी उन्हें लेने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि लता की आबाज बहुत पतली है। कहने का मतलब है कि लता को शुरुआती सालों में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई जगह उन्होंने ठोकरें खाईँ। लेकिन हिम्मत नहीं हारी।

 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फिल्म आपकी सेवा मेंमें फिर इन्हें गाने का अवसर दिया। इस फिल्म के गानों की चर्चा तो खूब हुई लेकिन पहचान नहीं बन सकी। उनकी पहचान 1949 में महलफिल्म में ‘‘आएगा, आने वाला’’ गीत से मिली। उनका यह गीत मशहूर अभिनेत्री मधुबाला पर फिल्माया गया। फिल्म में मधुबाला और लता दोनों हिट रहे। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि 1948 में गुलाम हैदर ने‘‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं ना छोड़ा’’ गवाया। उनका यह गीत हिट हो गया। फिर उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, मराठी आदि 36 भाषाओं हजारों गीत गाए । फिल्मों के लिए सर्वाधिक गाने का उनका गिनीज बुक में रिकार्ड है। छह दशक के अपने करियर में वह संगीत का पर्याय बन गईं। उन्हें लेकर उनके जीवन में अनेक कथाएं चल निकलीं। जैसे लता मंगेशकर के गले में कोई खास बात है, जिसके कारण वह इतना सुरीला गाती हैं। मरने के बाद उनके गले की चिकित्सकीय जांच की जाएगी। अमेरिका तो पहले से ही लता मंगेशकर के गले के लिए लाखों रुपये देने के लिए तैयार है आदि-आदि।

                                                

 

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